उम्मीद का साल 2025' किसानों को रौंदते, महंगाई की मार से रोते, दलितों को दमित करते, सेना की शहादत भुनाते, मस्जिदों की खुदाई करते, लड़कियों से बलात्कार करते, एक और साल बीत गया! . नए साल बावजूद इसके, तुझसे कुछ उम्मीद रखूंगा जरूर, ना थकूंगा, ना हारूंगा, लड़ूंगा भरपूर, खुद से कुछ उम्मीद रखूंगा जरूर। तुझसे भी कुछ उम्मीद रखूंगा जरूर। - विवेक अग्रवाल
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