पुणे में अंडरवर्ल्ड का आतंक

विवेक अग्रवाल

पुलिस दस्तावेजों के मुताबिक, पुणे में 28 गिरोह अवैध धंधों और आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। पुलिस जांच से पता चला है कि कोथरूड इलाके में अपराधियों के तीन गिरोह जबर्दस्त ढंग से सक्रिय हैं। पुणे पुलिस के रिकॉर्ड में वर्ष 2005 में महज सात गिरोह सक्रिय थे, लेकिन वर्ष 2011 आते-आते इन गिरोहों की संख्या 28 हो गई। पुणे ग्रामीण क्षेत्रों के भी कई गुंडों और उनके गिरोहों की ऐसी गतिविधियों में लिप्त होने की जानकारी पुलिस के पास जमा होती रही है। पुणे पुलिस की अपराध शाखा इन गिरोहों पर नजरें जरूर जमाएं रही, लेकिन प्रभावी तौर पर उन्हें निष्क्रिय करने के लिए कुछ नहीं कर सकी है। इन गिरोहों के गुर्गों की गतिविधियों और अपराध की सूचनाएं इकट्ठा करके विशेष तौर पर रिकॉर्ड भले ही तैयार होते रहे, अधिकारी समय-समय पर उसे अपडेट भी करते रहे। यहां तक कि पुलिस यह भी जानकारी हासिल करती रही कि किस गिरोह का गुर्गा इन दिनों क्या कर रहा है? किसके संपर्क में है? वह किस तरह पैसे कमा रहा है? फिर भी पुलिस को इन सूचनाओं का फायदा नहीं हो रहा था, क्योंकि इन गिरोहों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए पुलिस का मनोबल ही टूट चुका था।

इन गिरोहों में आपसी संघर्ष की खबरें हमेशा ही सामने आती रहती हैं। इससे पूर्व आंदेकर और मालवदकर गिरोह में छिड़ी गैंगवॉर ने पुणे पुलिस के लिए खासी समस्या खड़ी कर दी थी। पुलिस सूत्रों के अनुसार, इन गिरोहों में 50 से अधिक गुर्गे हैं। इनमें से कई गुंडे इन दिनों किसी अपराध में लिप्त नहीं हंै। इनमें से कुछ गिरोहों के सरगना राजनीतिक दलों से जुड़ गए हैं और इन्हें राजनीतिक प्रश्रय प्राप्त है। अब ये गिरोह सरगना खुल कर अपराध में सीधे शामिल नहीं होते हैं, जिससे उनके अपराध खुल कर सामने नहीं आ रहे हैं।

गिरोहों में वर्चस्व की जंग :
मौजूदा दौर में पुणे में बाबा बोड़के गिरोह का साम्राज्य है। शहर में होने वाले तमाम बड़े अपराधों में इसी गिरोह के गुर्गों और सरगना का नाम बार-बार सामने आ रहा है। इस समय बाबा बोड़के गिरोह में लगभग 41 गुर्गे शामिल हैं। पुणे के 28 गिरोहों में से एक नीलेश धायवल गिरोह भी अपराध जगत में अपनी खास जगह बना चुका है। नीलेश गिरोह में लगभग 30 गुर्गे हैं। नीलेश गिरोह की एक खास कार्यशैली भी है। गिरोह ठीक उसी तरह से चल रहा है, जैसे मुंबई अंडरवर्ल्ड में होता है। किसी कॉरपोरेट कंपनी की तरह नीलेश गिरोह में भी गुर्गों को मासिक वेतन दिया जाता है।

कोथरूड क्षेत्र के साथ-साथ मुलसी तालुका में गजानन मारणे और गणेश मारणे गिरोह का दबदबा है। यह वह इलाका है, जहां शरद मोहोले अपनी पकड़ बनाने के लिए बेचैन है। वह गजानन मारणे और गणेश मारणे को चुनौती देता रहता है। अपराध जगत के सूत्रों की मानें, तो शरद की गिरफ्तारी के बाद बाबा बोड़के और निलेश धायवल भी इलाके पर पकड़ मजबूत करना चाहते हैं। इलाके पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए इनके बीच गैंगवार चल रहा है। ये गिरोह आपस में न केवल मार-काट मचाए हुए हैं, बल्कि एक-दूसरे के शूटरों, फाइनेंसरों, सहयोगियों और आर्थिक व्यस्थाएं देखने वालों को भी निशाना बनाते हैं। गिरोह के गुर्गों की हत्याएं होने पर बदले में सरेआम न केवल गोलीबारी और चाकूबाजी की जा रही है, बल्कि एक-दूसरे के प्यादों को पेट्रोल छिड़कर जिंदा जलाने जैसी अमानवीय और क्रूर तरीकों से हत्याएं भी की जा रही हैं।

बनाते हैं आतंक का माहौल : पुणे में अंडरवर्ल्ड गिरोहों के गुर्गे एक-दूसरे के इलाकों में घुसपैठ करके मार-काट मचाते हैं और आतंक का माहौल खड़ा कर रहे हैं, ताकि दूसरे गिरोह से उसका इलाका कब्जा सकें। पिछले लगभग दो दशक से पुणे में इनका आतंक है।

यरवदा जेल में गिरोहों का राज : इन गिरोहों की हिंसक दुश्मनी के कारण पुणे पुलिस परेशान है। गुंडों के खिलाफ प्रतिबंधात्मक कार्रवाई करने, उन्हें तड़ीपार करने, उन्हें विभिन्न मामलों में गिरफ्तार करने पर भी हिंसा का सिलसिला रुक नहीं रहा है। इससे महाराष्ट्र की शिक्षा और संस्कृति राजधानी पुणे का नाम लगातार खराब होता जा रहा है। दूसरी तरफ ये गिरोह सरगना जेलों से अपने अपने गिरोहों का संचालन बखूबी कर रहे हैं।

जेल से गैंग का संचालन : दरअसल, ये गिरोहबाज भले ही जेल जाते हैं, लेकिन वहां से भी गैंग का संचालन बखूबी करते हैं। उनके गिरोहों के गुर्गे भी साथ ही जेल में होते हैं। जिन गिरोह सरगनाओं के साथ उनके गुर्गे जेल में नहीं होते हैं, वे किसी-न-किसी तरह से अपने सहयोगियों का जत्था भी जेल के अंदर बुला लेते हैं, ताकि उनका सहयोग तो मिलता ही रहे, साथ ही जेल से ही उनकी बादशाहत भी चलती रहे। पुलिस अधिकारियों के  मुताबिक, जैसे ही कोई गिरोह सरगना जेल जाता है, उसके इलाके में दूसरे गिरोह का सरगना जा पहुंचता है और स्थानीय लोगों को परेशान करना शुरू कर देता हैं। पिछले दिनों तो एक गिरोह के गुंडों ने तीन लोगों को उनकी दुकान में रात को महज इसलिए जिंदा जला कर मार दिया था, क्योंकि उन्होंने हफ्ता देने से इंकार कर दिया था।

जेलर ने भी कायम किया था आतंक :
यरवदा जेल में कुल 21 गिरोह सक्रिय हैं। पता चला है कि इन गिरोहों को संरक्षण देने और इनका कामकाज जेल में भी अबाध रूप चलता रहे, इसके लिए एक जेलर भी बाकायदा काम कर रहा था। यह सच्चाई जब सामने आई, तो   बड़ा हंगामा मचा। 16 वर्षों तक यह जेलर यरवदा जेल का प्रभारी था। जब उसके खिलाफ शिकायतों का अंबार लग गया, तब जाकर कहीं सरकार की नींद खुली और उसका तबादला हुआ। चूंकि उसके सिर पर राजनेताओं का हाथ था, इसलिए कोई खास कार्रवाई नहीं की जा सकी। यह कहा जाता है कि यह जेलर अपने वरिष्ठ अधिकारियों की बात भी नहीं मानता था, क्योंकि न केवल उसे राजनीतिक संरक्षण हासिल था, बल्कि तमाम गिरोहों के सरगना भी उसके एक इशारे पर खून-खराबा करने पर आमादा हो जाते थे। इस जेलर का तो इन गिरोहों से भी अधिक आतंक था। जेलर का कोल्हापुर जेल तबादला हो गया, लेकिन वह नहीं गया।

जेल प्रशासन ने उसके तबादले का नोटिस उसके घर के दरवाजे पर चिपका दिया था। 16 वर्षों तक एक ही जेल में बने रहने के बावजूद, यह जेलर इतना उद्दंड हो चला था कि उसने तबादले के खिलाफ मैट में दस्तक दी थी। खुफिया सूत्रों का कहना है कि इस जेलर से शरद और आलोक की भी खूब बनती थी। वे दोनों खुलेआम इस जेलर के दफ्तर में घंटों बैठे गप्पें मारते थे। स्वाभाविक रूप से जेल के अंदर भी इन गिरोहों की ही सल्तनत थी। इस जेलर के कारण ही बाहर का सामान, नशा, सिगरेट, बीड़ी और मांसाहार बड़े आराम से जेल में उपलब्ध हो जाता था। जो कैदी पैसे चुकाते हैं, उनकी कभी भी तलाशी नहीं होती है।  यहां तक कि वे जेल के बाहर भी मजे से आते-जाते हैं और उनका कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है। इन सबके कारण यरवदा जेल एक तरह से इन गिरोहों के लिए सुरक्षित अड्डा थी। जो गिरोह सरगना सुरक्षित रहना चाहते हैं, उन्हें उनके एक सहयोगी के साथ ‘अंडा सेल’ में रख दिया जाता है, जैसे शरद मोहोल को रखा गया था। बता दें कि यरवदा जेल के ‘अंडा सेल’ में महज 15 कैदियों को ही रखने की व्यवस्था है, लेकिन यहां भी पैसे लेकर आरोपियों को सुरक्षित रखने का खेल जेल के अंदर चलता है।

जिस दिन कतील सिद्दिकी की हत्या हुई थी, उस दिन ‘अंडा सेल’ में कुल 13 कैदी अपने सेल में ही मौजूद थे। इनकी सुरक्षा के लिए कुल 6 अधिकारी और ‘अंडा सेल’ का प्रभारी मौजूद थे। सुबह छह से सात बजे के बीज सेल के बरामदे में इन कैदियों को छोड़ा गया था। इसी दौरान कतील के पास शरद और उसका साथी आलोक भालेराव गए। उस समय शरद ने कतील की बैरक में पेशाब भी की थी। उसी के बाद दोनों ने मिल कर कतील का कत्ल किया था। हत्या करके दोनों चुपचाप अपने बैरक में आकर सो गए थे। इसके पहले उन्होंने हत्या के बारे में जानकारी दो अन्य कैदियों को दे दी थी। अब सवाल यह उठता है कि कतील के कत्ल के बाद पुणे की इस ऐतिहासिक जेल में क्या होता है? व्यवस्था और कानून का राज होता है, या फिर शरद के आतंक का?

माफिया की कमाई हैं जमीनें : माफिया जमीनों की खरीद-फरोख्त में जबरन मध्यस्थ बन कर और बिल्डरों से हफ्तावसूली करके खासी कमाई कर रहे हैं। इसके अलावा मुंबई माफिया की तर्ज पर वह भी हफ्तावसूली और आतंक के जोर पर खासी कमाई कर रहे हैं। वे अपरहण कर फिरौती भी वसूल कर रहे हैं और मोटी कमाई कर रहे हैं। पुणे के गिरोह सरगना विवादों से घिरी जमीनों के मामलों में मांडवली करके भी चांदी काट रहे हैं। पुराने वाड़ों को किराएदारों से जबरन खाली करवा कर बिल्डरों को जमीनें उपलब्ध करवाने से भी उन्हें अच्छी कमाई हो रही है। व्यापारियों को संरक्षण देने के नाम पर हफ्तावसूली करने का काम भी वे करते हैं। अवैध धंधे करने वाले जितने भी छोटे-मोटे अपराधी हैं, उनसे भी शरद गिरोह इस इलाके में हफ्तावसूली करता है। इससे वे करोड़ों रुपये कमा रहे हैं और अपने गिरोह का संचालन कर रहे हैं।

धनकवड़ी में आतंक : पुणे के धनकवड़ी इलाके में गुंडों ने आतंक बरपाया और 100 से अधिक गाड़ियों को तहस-नहस कर दिया। इस तरह उन्होंने आमलोगों के मन में भयानक दहशत बैठा दी कि जो उनकी मुखालफत करेगा, उसके साथ कुछ भी हो सकता है। दत्ता माने और बैजू नवगुणे गिरोह में भिड़ंत होने के बाद यह मामला हुआ था। धनकवड़ी में हमले के बाद बैजू नवगुणए की अस्पताल में मौत हो गई थी, जिसके बाद धनकवड़ी में दहशत का माहौल था। रात में दोनों गिरोह आपस में भिड़े। बैजू पर हमले के बाद लगभग 40 गुंडे तलवारें लेकर पहुंचे और जो भी सामने आया, उस पर हमला करने लगे। गुंडों ने घरों और दुकानों के बंद दरवाजों पर भी तलवारें चलार्इं। एक कार भी जला दी। सौ से अधिक वाहनों में तोड़फोड़ की और फरार हो गए। पुलिस ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। वह काफी देर से पहुंची। इन इलाके में पुलिस चौकी की मांग काफी समय से हो रही है, लेकिन सरकार कानों में तेल डाले सो रही है। सांसद सुप्रिया सुले ने लोगों को जल्द पुलिस चौकी बनाने का आश्वासन तो दिया, लेकिन वह भी सिर्फ एक मौखिक जमा-खर्च ही साबित हुआ था।

गिरोहों में मार-काट :
बता दें कि फिरोज बंगाली की मौत के बाद अनवर शेख और खड़ा वसीम में दुश्मनी इस कदर बढ़ गई कि वर्ष 2011 में ही दोनों के गिरोहों ने न केवल आपस में खासी मार-काट मचाई, बल्कि दोनों ही गिरोह के सरगना की भी हत्या हो गई। इन हत्याओं के बाद कोंडवा इलाके में थोड़ी शांति अब दिखाई दे रही है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, फिरोज बंगाली, मेघनाथ शेट्टी, प्रदीप सोनवणे, रफीक शेख, राजा मारटकर, अनिल हेगड़े के गिरोहों का मुखिया ही पिछले दिनों आपसी मार-काट में मारे जा चुके हैं। हालांकि उनके गिरोहों के कुछ गुर्गे आज भी सक्रिय हैं।   पिंपरी चिंचवण इलाके में बापू नायर, राकेश भरणे, प्रकाश चव्हाण, बालू वाघिरे, शेख वानखेड़े के गिरोहों के गुर्गे आज भी यहां सक्रिय हैं। इन गिरोहों के खिलाफ पुलिस ने काफी कोशिश की है, ताकि उनका सिर दबाया जा सके। फिर भी वे जमानत हासिल होते ही दुबारा सक्रिय हो जाते हैं। इससे कारण पुलिस अधिकारियों के लिए परेशानी बढ़ रही है। कोथरूड़ इलाके में सबसे अधिक गिरोह सक्रिय हैं। इस इलाके के गिरोहों में बाबा बोड़के, गजानन मारणए, गणेश मारणे, नीलेश धायपड़ प्रमुख हैं। इनके प्रमुख गुंडे फिलहाल भले ही जेल में हों, लेकिन आज भी उनकी दहशत इलाके में कायम है और वे हफ्तावसूली से लेकर शराब की तस्करी तक हर अपराध को अंजाम दे रहे हैं। इससे कारण पुणे की शांति भंग होती रहती है। शरद मोहोल का इलाका पुणे ग्रामीण का है। वहां पर उसका गिरोह खासा सक्रिय है।

डॉक्टर से हफ्ता 25 लाख :
फिरौती के लिए लवासा इलाके के दासवे गांव के सरपंच को कोथरुड से अगवा कर के कुछ समय बाद ही शरद मोहोल गिरोह ने एक डॉक्टर को धमका कर 25 लाख रुपये वसूलने की कोशिश की। कोथरुड के डॉक्टर को 10 नवंबर, 2011 को शरद मोहोल ने धमकाया कि 25 लाख रुपये नहीं दिए, तो वह उन्हें जान से मार देगा। अगर फोन काटा या पुलिस को सूचना दी, तो मांग डबल हो जाएगी। रात को आठ बजे फिर फोन आने पर पैसे लेकर आने का पता मिलेगा। डॉक्टर ने पुलिस को सूचना दी, तो तुरंत जाल बिछाया और संजय वरघड़े ओर प्रसाद वाघ को गिरफ्तार किया।

खड़ा वसीम गिरोह ने किया कत्ल : कोंढवा में रात में हुई गैंगवार में गोलियों के साथ पत्थर भी चले। रात सवा दस बजे सात बदमाशों ने अनवर शेख की बेरहमी से हत्या कर दी। हमले में एक व्यक्ति घायल भी हुआ। रात कोंढवा इलाके में एक सैंट्रो का पीछा कर हत्यारों ने बीच रास्ते पर कार में बैठे अनवर शेख पर गोलियां बरसा दीं। जब शेख कार से उतर कर बचने की कोशिश करने लगा, तो हमलावरों ने उस पर पत्थर से हमला किया। उसकी मौके पर ही मौत हो गई।

जिंदा जलाते हैं गैंगस्टर :
विरोधियों को पुणे के गिरोहबाज न केवल विरोधी गिरोह के गुर्गों की हत्या कर रहे हैं, बल्कि उन्हें जिंदा जला कर राख करने जैसे घृणित और अमानवीय कृत्य भी कर रहे हैं। शरद मोहोल गिरोह के दत्ता तिकोने और माउली कांबले की हत्या के मामले में ग्रामीण पुलिस ने गणेश मारणे गिरोह के पांच गुर्गों को गिरफ्तार किया, तो पता चला कि इनकी हत्या कर शव जला कर हड्डियों समेत तमाम सुबूत नदी में बहा दिए हैं। इस मामले में पुलिस ने गणेश गिरोह के अरुण राईकर, विकी चौधरी, निखिल शिंदे, रवि शिंदे और समीर पदालकर को गिरफ्तार किया था। इन्होंने मिलकर दत्ता और माउली का अपहरण किया और उनकी गला दबा कर हत्या कर दी थी।

मुठभेड़ से राहत : मुंबई की तरह पुणे में भी पुलिस ने माफिया के खिलाफ मुठभेड़ को ही अपना अंतिम हथियार बनाया। पुणे के अकुर्दी इलाके में गुंडे महाकाली की मुठभेड़ के बाद शहर में शांति का माहौल देखने में आया, क्योंकि इलाके से तमाम गुंडों ने पलायन कर लिया। करीब 24 गुंडों को पिछले 20 वर्षों में पुणे पुलिस ने खात्मा किया है। ये गुंडे बहुत खतरनाक और दहशत का दूसरा नाम बन चुके थे। इंस्पेक्टर दत्ता टेमघरे ने पुणे पुलिस के मुठभेड़ों का खाता 1992 में तब खोला था, जब जग्या म्हस्के को मुठभेड़ में मार गिराया था। दत्ता टेमघरे की टीम ने अरुण गवली के दाएं हाथ किरण वालावलकर और रवि करंजकर को भी मुठभेड़ में मार गिराया था। इन मुठभेड़ के बाद शहर में शांति बन रही थी कि 2000 में फिर एक बार गिरोहबाजों ने सर उठाना शुरू कर दिया। प्रमोद मालवदकर, विश्वनाथ कामत, दिलीप गोसावी संगीन मामलों में वांछित थे। ये पुलिस गिरफ्त से बाहर थे और जब पुलिस दस्ता उन्हें पकड़ने पहुंचता, तो उन पर हमला कर देते थे। ये इतने खूंखार थे कि इन्हें पकड़ने गए पुलिस दस्ते पर भी कई बार जानलेवा हमले किए गए थे। इनका काल बने थे पुणे पुलिस के लिए 12 मुठभेड़ करने वाले इं. राम जाधव। इनकी बदौलत ही पुणे माफिया पर कुछ रोकथाम लग सकी थी। लेकिन ये गिरोह अब फिर से एक बार सिर उठा चुके हैं और उन्हें रोकने वाला फिलहाल कोई दिखाई नहीं दे रहा है।

पुणे में नशे का कारोबार

शिक्षा-संस्कृति और उद्योगों का केंद्र पुणे नशे का अड्डा बन चुका है। पुणे पुलिस ने शहर के पूर्वी इलाके में छापेमारी कर एक बार दो टन चरस बरामद की थी। इतनी मात्रा में चरस बरामद होना किसी को भी चौंकाने के लिए काफी है। देश-विदेश के पर्यटकों और छात्रों की भारी भीड़ अब इस शहर में लग गई है और उसी कारण पुणे में नशे का कारोबार भी तेजी से फल-फूल रहा है। दक्षिणी राज्यों से यहां नशे की आपूर्ति होती है। स्थानीय तौर पर तो इसकी खपत होती ही है, मुंबई समेत अन्य इलाकों में भी पहुंचाए जा रहे हैं। कुछ समय पहले पुणे पुलिस ने 39 नशा तस्करों को हिरासत में लिया, जिनसे 26 लाख रुपये का नशीला पदार्थ बरामद किया गया था। पुलिस ने 16 आरोपियों को इस कारोबार से जुड़े होने के कारण तड़ीपार भी कर रखा है।

पुणे के नशा कारोबार का सबसे बड़ा और प्रमुख गिरोह अयूब आमिर खान का है। अयूब से 265 किलो चरस बरामद हुई थी और इस मामले में उसके बेटे मोहसिन अयूब खान और पत्नी सुरैया खान को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उसके बाद पुलिस को चकमा देने के लिए अयूब और   उसके परिवार ने पुणे ग्रामीण इलाके में काम शुरू कर दिया था। अयूब ने कोंढवा में मोटर गैरेज बनाए और उनकी आड़ में नशे का कारोबार शुरू किया। इन गैरेजों की जानकारी मिलने पर पुलिस ने छापेमारी की, तो वहां से 950 किलो चरस बरामद हुई थी, जो आंध्र प्रदेश और कर्नाटक से आई थी।

पुलिस को पता चला है कि नशा कारोबार में और भी कुछ गिरोह शामिल हैं, जो छोटे पैकटों और पार्सलों में गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में निजी लक्जरी बसों से नशे का सामान भेज रहे हैं। नशे का धंधा पुणे ग्रामीण इलाके में इस कदर फैल चुका है कि वहां हमेशा रेव पार्टियां होती रहती हैं और उनमें यही नशा पहुंचता है। पिंपरी-चिंचवड़ तथा यरवदा इलाकों से भी पुलिस हेरोइन, अफीम, चरस जैसे नशीले पदार्थ बरामद कर चुकी है। इन्हें राजस्थान से यहां भेजा गया था। पूरा पुणे इन दिनों गिरोहों की आपसी मार-काट से तो जूझ ही रहा है, नशा कारोबारियों के कारण और भी बड़े खतरे का सामना कर रहा है।

पुणे का गिरोह युद्ध

11 अप्रैल, 2009 : दाऊद गिरोह का गुर्गा काबू
आसिफ शेख गिरफ्तार पुणे की पिंपरी पुलिस ने दो साल से फरार दाऊद गिरोह के आसिफ शेख उर्फ दाढ़ी को गिरफ्तार किया। आसिफ पर हत्या और अपहरण के कई मामले दर्ज हैं। वह पहले भी मकोका में गिरफ्तार हो चुका है। पुणे में तीन हत्याओं के मामले में उसे पकड़ा गया।

12 जनवरी, 2010 : गैंगवार में एक बदमाश ढेर
पुणे में गैंगवार से तब सनसनी फैल गई, जब बदमाशों के एक गैंग ने दूसरे गिरोह के हिस्ट्रीशीटर किशोर मारणे को निलयम थिएटर के पास गोली मार दी। किशोर असल में गणेश मारणे गैंग का गुर्गा था।

29 नवंबर, 2010 : एक और गैंगस्टर गया

पुणे के गिरोहों के बीच लड़ाई थमने का नाम नहीं ले रही है। यह गैंगवार आज भी उफान पर है। पार्वती इलाके के एक रेस्टोबार के बाहर 29 नवंबर, 2010 की शाम गोलीबारी हुई थी, जिसमें दो बार हमले झेल चुका गिरोह सरगना किशोर मारणे मारा गया था। वह अपने दो साथियों विजय मारणे और भरत गुजर के साथ वहां चाय पीने शाम छह बजे आया था। यहां से बाहर निकलते समय उन पर तीन लोगों ने गोलियां चलार्इं और मौके से फरार हो गए। इस हमले में कशोर मारणे की मौत हो गई थी, जबकि उसके दोनों सहयोगी घायल हो गए थे।

31 अक्टूबर, 2011 : सरपंच का अपहरण
पुणे के भीड़ भरे कर्वे नगर इलाके से दसवे गाव के सरपंच शंकर धिड्ले को कुछ गुंडों ने अगवा कर लिया। लवासा लेक सिटी के दायरे में आने वाले दसवे गांव के सरपंच शंकर को 47 लाख रुपये की फिरौती चुकाने पर गिरोह ने रिहा किया। दो बाइक पर आए पांच अपहर्ता उन्हें अपने साथ रिवॉल्वर दिखा कर मुथा गांव ले गए और उनसे मारपीट की। उनके घर की चाबियां लेकर उनके ही कार चालक के साथ घर गए और पुणे स्थित फ्लैट से 47 लाख नकदी लेकर भाग गए।

5 जनवरी, 2012 : हथियारों का जखीरा बरामद
शरद मोहोल गिरोह से पुलिस ने राहू गांव से 10 देसी रिवाल्वर और 83 गोलियों का जखीरा बरामद किया। इसके साथ ही अजय कडु तथा अनिल खोले को गिरफ्तार कर लिया।

28 जनवरी, 2012 : कपड़ा व्यापारी को जलाया

बैजू नवघणे गिरोह के गुंडों ने एक कपड़ा व्यापारी की दुकान जला दी, जिसमें एक की मौत हो गई और दो बुरी तरह से घायल हो गए। आठ नकाबपोश गुंडे उनकी दुकान में घुसे और मारपीट के बाद आग लगा कर फरार हो गए।

30 जनवरी, 2012 : धनकवड़ी गैंगवार में गिरफ्तार
धनकवड़ी गैंगवार में दो लोगों- हनीश जैन और स्वप्निल मोरे की हत्या और सन्नी मोरे को बुरी तरह घायल करने के आरोप में पुलिस ने सचिन उर्फ पप्पू दत्तात्रय घोलप (21) को गिरफ्तार किया। सचिन पर पहले से चार मामले चल रहे हैं।

23 मार्च, 2012 : गैंगवार में पांच गुंडे गिरफ्तार
धनकवड़ी गैंगवार में शरद मोहोल गिरोह के दो गुर्गों- दत्तात्रय विजय तिकोने और उसके चचेरे भाई ज्ञानेश्वर उर्फ माऊली कांबले की हत्या 14 मार्च, 2011 करने के आरोप में पुलिस ने विरोधी गिरोह गणेश मारणे के पांच गुंडों- उमेश उर्फ नय्या अरुण राईकर, प्रकाश उर्फ विक्या चौधरी, भाहुली, निखिल शिंदे, रवि शिंदे, समीर पाढलकर को गिरफ्तार किया।

7 अप्रैल, 2012 : धनकवणी गैंगवार में फिर मौत

संभाजीनगर इलाके में गैंगस्टर ज्ञानेश्वर जाधव की हत्या के मामले में वांछित आरोपी अशफाक उर्फ गब्या शेख के भाई रफीक बाबूलाल शेख की विरोधी गिरोह ने चाकू से गोद कर हत्या कर दी। उसने बैजू उर्फ प्रमोद नवघणे की 21 अक्टूबर, 2011 को धनकवड़ी इलाके में हुई हत्या के मामले में पुलिस में रपट भी विरोधी गिरोह के खिलाफ दर्ज करवाई थी। तभी से विरोधी गिरोह उसे ठिकाने लगाने की फिराक में था।

This news published in Weekly Humvatan on Wednesday, 20 June 2012
http://humwatan.in/index.php?option=com_content&view=article&id=3155:2012-06-20-05-58-37&catid=3:newsflash

Comments

  1. Sham ramchandra Dabhade aur uski Dabhade gang ke bare mai bhi likhiye shayad vo in sabse bahot alag khatrnak aur disperate the

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