महाराष्ट्र त्रस्त है आतंक से
विवेक अग्रवालशिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे ने पिछले दिनों कहा कि महाराष्ट्र का मराठवाड़ा क्षेत्र 'नया पाकिस्तान' बन जा रहा है। 26/11 मुंबई हमले के आतंकियों को हिंदी और हिंदू तौरतरीकों का प्रशिक्षण देने वाला तथा आतंक के कंट्रोल रूम में बैठ कर आतंकियों को निर्देश देने वाला जहीउद्दीन अंस्री उर्फ अबू जुंदाल मराठवाड़ा के बीड़ जिले का मूल निवासी है। मुंबई समेत महाराष्ट्र के विभिन्न ठिकानों पर पिछले कुछ बमकांडों ने बड़ी चिंताजनक हालात की ओर इशारा किया है। इन बमकांडों को लेकर पुलिस और खुफिया एजंसियों का ध्यान एक खास बात की ओर गया कि महाराष्ट्र में भी आतंक के छोटे-छोटे किले बनने लगे हैं... और वे कहीं और नहीं छोटे शहरों और गांवों में हैं। ये न केवल मुंबई के काफी करीब हैं बल्कि देश के अन्य हिस्सों से सड़क और रेल से अच्छी तरह जुड़े हैं।
पार्टी के मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में शिवसेना सुप्रीमो ने लिखा था, 'मराठवाड़ा, जिसे संतों की भूमि के रूप में हम जानते रहे हैं, आतंकियों की भूमि में बदलता जा रहा है…' उनका दावा है कि पिछले पांच-छह सालों में देश भर की आतंकी वारदातों के तार मराठवाड़ा से जुड़े हैं, जो आतंकियों का भर्ती केंद्र बन चला है… यह सरकार और गृहविभाग की कार्यशैली और इस पर लगाम लगाने में विफलता को उजागर करता है… घाटकोपर बमकांड, जर्मन बेकरी बमकांड, अहमदाबाद बमकांड में शामिल आतंकियों के संबंध मराठवाड़ा से होने की बात पर बाल ठाकरे कहते हैं, 'मराठवाड़ा में उभर रहा नया पाकिस्तान न केवल देश बल्कि महाराष्ट्र के लिए भी खतरनाक है…' शिवसेना प्रमुख ने मुंबई पुलिस की कार्रवाई और तौर-तरीकों पर सवाल उठाते हुए कहा, 'पुलिस की खुफिया इकाई क्या कर रही है, यह एक पहेली है…’
मुंबई में आतंक
मुंबई में आतंकवादी हरकतें आज से नहीं हैं। 80 के दशक में सिक्ख आतंकियों के जत्थे पंजाब में बेगुनाहों की हत्याएं करते थे, तब वे मुंबई में न केवल पनाह लेते थे बल्कि हथियार व रसद का इंतजाम करते थे। जबसे कश्मीरी आतंकवाद ने मुंबई में जड़े जमाईं, इस्लामी आतंकियों ने इस राज्य की शांति और खुशियों को लील लिया। मुंबई में आतंकवादियों का जमावड़ा छुपा रहस्य नहीं है। सीबीआई ने जनवरी 1994 में 6 दिसंबर 1993 को रेलवे बमकांडों के सिलसिले में 12 आरोपियों को मोमिनपुरा से पकड़ भारी मात्रा में हथियार व गोला-बारूद बरामद किए थे।
इन बमकांडों में मोमिनपुरा निवासी डॉ. मोहम्मद जलीस अंसारी का दिमाग था, जिसे सीबीआई ने उसके ठिकानों पर छापा मार भारी मात्रा में विस्फोटक, देशी-विदेशी रिवाल्वर, गोलियां, डिटोनेटर, घड़ियां, वायरलैस सेट, भारतीय और विदेशी मुद्रा तथा आपत्तिजनक साहित्य के साथ पकड़ा था। जलीस के लिए महाराष्ट्र के गांवों के बरगलाए मुस्लिम युवक काम करते थे।
इस धरपकड़ से बौखलाई पाक खुफिया एजंसी आईएसआई और लश्कर ने मुंबई से अड्डा बदला और मालेगांव, औरंगाबाद, पड़घा-बोरीवली, भिवंडी, मुंब्रा-कौसा, कोल्हापुर, सोलापुर, औरंगाबाद, बीड़, बरभणी, जलगांव जैसे दूरस्थ इलाकों में पहुंचे। पिछले दो दशकों से ठाणे जिले का मुंब्रा-कौसा सिमी और इस्लामी आतंकवाद का गढ़ है। लश्कर के दक्षिण भारतीय कमांडर इरफान और उसके खास साथी अनवर ने महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में सिमी आतंकियों से संपर्क में हैं। हासिम मुल्ला पड़घा से गिरफ्तार हो चुका है। पुलिस ने 4 सिमी सदस्यों नासिर माजिद खोत, सदाद खालिद मुल्ला, आतिक यूसुफ सुसे और शाहजहां उबेद मुल्ला को 31 मार्च 2003 को पकड़ा था।
आईबी रपट के मुताबिक औरंगाबाद काफी संवेदनशील है। मुलुंड लोकल ट्रेन बमकांड मामले में पुलिस ने सिमी, लश्कर, अल कायदा और एमडीएफ के आतंकवादियों पर शक किया था। उनकी तलाश में अपराध शाखा के दो दस्ते औरंगाबाद गए थे। वहां से हर बार कोई न कोई आतंकी मिला ही है।
हारून की पाकिस्तान में ट्रेनिंग
मुंबई में 13 जुलाई के बमकांड में गिरफ्तार महाराष्ट्र मूल का हारून नाइक इंडियन मुजाहिदीन का महत्वपूर्ण सदस्य है। हारुन सन 2000 के आखिरी महीनों में पाकिस्तान गया और बहावलपुर में 2001 में लश्कर के शिविर में ‘दौरा-ए-आम’ और ‘दौरा-ए-खास’ प्रशिक्षण लिया। एटीएस प्रमुख राकेश मारिया के मुताबिक नकली भारतीय करंसी के साथ हारुन मुंबई के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से पकड़ा था, तबसे जेल में बंद है। आईएम में वरियता क्रम में यासीन भटकल से हारूऩ ऊपर था। हारून देश में कई धमाके करना चाहता था। उसने अलकायदा के लिए जिहाद लड़ने की इच्छा जताई थी, इसलिए पाकिस्तान में 15 दिन का आधुनिक प्रशिक्षण ‘बैत-ए-रिजान’ किया और कंधार में 2001 में नार्दर्न एलायंस समेत शत्रुओं के खिलाफ लड़ने गया था।
गांवों में आतंक की पैठ
शहरो के मुकाबले ग्रामीण महाराष्ट्र में ‘जिहादीं’ प्रभाव अधिक होने की जानकारी आ रही है। अबू जुंदाल के पाक आतंकी शिविरों में प्रशिक्षण लेने की जानकारी मिली तो सबके होश उड़ गए। एक बात यह भी महत्वपूर्ण है कि महाराष्ट्र के ग्रामीण युवकों को बड़ी तादाद में आतंकी बनाया जा रहा है। शहरी मुस्लिम युवाओं के मुकाबले ग्रामीण इलाकों से जिहादी बनने वालों की संख्या अधिक है। अबू जुंदाल ने भी मुंबई समेत देश के कई संवेदनशील इलाकों में युवाओं के दिमागों में धर्म के नाम जिहाद का जहर भर कर पाक शिविरों में भेजा है। उसने मुंबई के युवाओं को बरगलाना चाहा लेकिन सफलता नहीं मिली थी।
1992 और 1993 के जातीय दंगों के बाद तस्कर टाईगर मेमन ने 2 दर्जन युवकों को मुंबई के जोगेश्वरी, बेहरामपाड़ा व करीबी इलाकों से प्रशिक्षण के लिए पाक भेजा। उसका नतीजा 12 मार्च 1993 का धारावाहिक बमकांड था। इसके बाद मुंबई और करीबी इलाकों के मुस्लिम युवकों को समझ में आया कि उनका एक बार इस्तेमाल कर आतंकी गिरोह छोड़ देते हैं। आतंकियों से युवकों ने संबंध बनाना छोड़ दिया, जिससे आतंकी संगठनों को महाराष्ट्र के गांवों की तरफ मुंह मोड़ना पड़ा।
अब अहमदनगर, बीड़, परभणी, मालेगाव, पुणे, भिवंडी जैसे इलाकों में मुस्लिम युवकों के दिमागों में जहर भरने का काम पाक आतंकी संगठनों के भारतीय मोहरों ने शुरू किया। इसी कड़ी में बीड़ का अबू जुंदाल भी जुड़ा। उसने पाकिस्तान में प्रशिक्षण लिया ही, दर्जनों युवकों को आतंकी बनाने पाक भेजा। खुफिया अधिकारियों के मुताबिक कुछ युवकों ने भले ही लश्कर शिविरों में ट्रेनिंग ली, लेकिन भारत लौट कर चुपचाप कामकाज में लग गए। उन्होंने आतंक का रास्ता नहीं चुना। यदि ऐसा होता तो हिंदुस्तान की हालत भी पाक जैसी हो जाती।
मुंबई में आतंक फैलाने के लिए जिहादी नहीं मिलने के कारण ही रियाज भटकल और अबू जिंदाल को मजबूरी में यूपी, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश तक जाना पड़ा है। इसी के चलते महाराष्ट्र के गांवों में भी वे पहुंचे। महाराष्ट्र का मराठवाड़ा, खासतौर पर बीड, परभणी और औरंगाबाद में आईएम का तगड़ा प्रभाव है। आईएम की आड़ में लश्कर यहां आतंक की फसल बोने में कामयाब रहा। ये इलाके आईएम के गढ़ हैं। पूरा मराठवाड़ा आतंक का कारखाना बन गया है।
मराठवाड़ा में लश्कर को स्थानीय मुस्लिमों का समर्थन मिल रहा है। सुरक्षा एजेंसियों ने कई बम धमाकों में हाथ होने पर आईएम के 45 से अधिक सदस्य महाराष्ट्र से पकड़े हैं। मुंबई से 60 किलोमीटर दूर ठाणे ग्रामीण जिले के गणेशपुरी थाने में भिवंडी-वाड़ा मार्ग पर स्थित पिछड़ा गांव म्हापोली से घाटकोपर बमकांड में रेहन असगांवकर को गिरफ्तार किया था।
परभणी में आतंक
परभणी में भी आतंकवाद पनप रहा है। पुलिस वहां जब आतंकी आरोपियों को गिरफ्तार करने गई तो स्थानीय नागरिकों का हिंसक विरोध झेलना पड़ा। यहां एमडीएफ ने घरों में जगह बना ली है। पुलिस ने डॉ. अब्दुल मतीन हफीज, मुजामिल शेख, मोहम्मद अब्दुल बासित, इमरान रहमान खान और अल्ताफ शेख को महाराष्ट्र के विभिन्न इलाकों से आतंकी गतिविधियों में गिरफ्तार किया है।
सोलापुर में जखीरे बरामद
सोलापुर पुलिस ने दो स्थानों से हथियारों-विस्फोटकों के बड़े जखीरे बरामद किए थे। 12 अगस्त 2003 को सोलापुर पुलिस ने एक अड्डे पर छापा मार कर 88 जिंदा बम, 8 तलवारें, जांबिया इत्यादि बरामद किए। पुलिस ने पंजीप तालीम पर छापा मार बम बनाने के कारखाने का भंडाफोड़ किया। दोनों मामलों में अब्दुल हमीद सुल्तान मुल्ला, अश्फाक नजीर अहमद बालिक, याकूब मोहम्मद सौदागर, अब्दुल करीम मेरासाब नबीब, फिरोज अजीज खान, लियाकत अली चांद साब काजी, रिजवान दाऊद साब हुंडेकरी और समीर उमर साब कारवांडगीकर गिरफ्तार हुए थे।
औरंगाबाद में आतंक
औरंगाबाद में आतंक
19 और 20 जून 2006... महाराष्ट्र एटीएस के अधिकारी और मुखबिर औरंगाबाद के गरम पानी इलाके में जबी को तलाश रहे थे। वहां जबी की बहन फरजीबा का घर था लेकिन वो पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा। पुलिस की उस दिन की नाकामयाबी का नतीजा यह रहा कि देश भर में जबी ने दर्जनों बमकांड करवाए। कुछ में तो वह सीधे शामिल था। सूत्रों के मुताबिक जबी का सिमी कनेक्शन औरंगाबाद में फहाद से मुलाकात के बाद हुआ था। फहाद पुलिस मुठभेड में मारा जा चुका है। जबी उसके जरिए फय्याज से मिला था। औरंगाबाद में हथियारों का जखीरा पकड़ने के बाद पुलिस ने आतंकी आकिल मोमिन को गिरफ्तार किया तो पता चला कि जबी महाराष्ट्र के मराठवाड़ा मोड्यूल का आतंकी संपर्क है। औरंगाबाद में गिरफ्तार बिलाल और सय्यद आकिब के संपर्क में भी जबी था।
मुंबई पुलिस के दस्ते बमकांडों की छानबीन के लिए औरंगाबाद समय-समय पर जाते रहे हैं। औरंगाबाद के उस्मानपुरा, शाह कॉलोनी निवासी इरफान अहमद कुरैशी, कैसर कॉलोनी के निवासी शेख याह्रा अब्दुल रहमान और शाह बाजार निवासी सिद्दिकी ताज-उल-हसन को गिरफ्तार किया था। ऐसे कई आतंकी यहां गिरफ्तार होते रहे हैं।
ये आरोपी औरंगाबाद की सॉफ्टवेयर कंपनी 'प्राग्मा सॉफ्ट टेक्नोलॉजीज' में भागीदार थे। उनका एक भागीदार शेख मोहम्मद मुजामिल जमाल अहमद पहले ही गिरफ्त में था। बमकांड साजिश रचने और करवाने में जहीर अहमद बशीर अहमद शेख और मोहम्मद अब्दुल मतीन अब्दुल बासित पहले ही गिरफ्तार हो चुके थे। औरंगाबाद निवासी बमकांड आरोपी बासित अंसारी दुबई भाग गया। औरंगाबाद और आसपास 64 ठिकानों के फोटो और एक डॉक्यूमेंटरी पुलिस ने बरामद की, जिसमें कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम युवक जिहाद में हिस्सा लेने के लिए भड़काते दिखते हैं। एक सीडी का नाम था - जिहाद ए हिंदुस्तान। मुंबई पुलिस ने डॉ. अब्दुल मतीन और आबिद अली को घाटकोपर बेस्ट बस बमकांड में औरंगाबाद से पकड़ा था। आबिद वहां पीसीओ-एसटीडी बूथ चलाता था और आतंकवादियों को संपर्क बनाने में मदद करता था।
एटीएस मुंबई ने सिमी के तीन सदस्यों को औरंगाबाद से 30 किलोमीटर दूर खुलदाबाद में एल्लोरा घाट से गिरफ्तार किया। उनकी टाटा सूमो (MH 14 X 4380) में रखे कंप्यूटरों के सीपीयू और मानीटरों में छुपी 11 एके 47 रायफलें और 800 गोलियां, 33 किलो आरडीएक्स मिले। उनके तीन साथी एक इंडिका (MH 20 W 1240) में भागने में सफल रहे, जिसमें तीन बक्से हथियार और गोला-बारूद थे। सूमो वाला आतंकी औरंगाबाद के बुढ्डीलेन निवासी मो. आमेर शकील अहमद था। उसने बताया कि यह मौत का जखीरा मनमाड़ में कंटेनर से लाया था। पुलिस ने इंडिका चालक मुजफ्फर जमील अहमद और मालिक मुजीब पटेल को गिरफ्तार किया। मुजीब के मुताबिक कार चचेरे भाई मुजफ्फर ने शादी में बीड़ जाने के लिए ली थी।
26 मार्च 2012 को औरंगाबाद की उनिंदी दोपहर गोलियों की आवाज से दहल उठी। रोजाबाग इलाके में एटीएस से दोपहर साढ़े 12 बजे आतंकियों से मुठभेड़ में एक मारा जाता है, एक जख्मी समेत कुल दो गिरफ्तार होते हैं। अजहर कुरेशी उर्फ खलील और उसके साथी पैदल आते एटीएस अधिकारियों ने देखे तो गिरफ्तार करना चाहा। अजहर, शाकिर हुसैन और अबरार उर्फ इस्माइल ने गोलियां चला दीं। अजहर ने दोनों हाथों में दो रिवॉल्वर थाम कर गोलीबारी की थी। गोलीबारी में एटीएस अधिकारी आरिफ शेख कंधे में गोली लगी। अजहर ढेर हो गया। शाकिर हुसैन के पैर में गोली लगी। अबरार भागते हुए पकड़ा गया।
अजहर कुरैशी से दो देसी रिवॉल्वर और 4 जिंदा गोलियां मिले। शाकिर हुसैन से एक रिवॉल्वर और 4 गोलियां और अबरार उर्फ इस्माइल उर्फ मुन्ना से एक रिवॉल्वर और 3 गोलियां बरामद हुईं। 2008 के अहमदाबाद बमकांड और मध्यप्रदेश में आतंकी घटनाओं में उनके शामिल होने की जानकारियां थीं। इनके संबंध सिमी से होने से भी पुलिस ने इंकार नहीं किया। ये मप्र के खंडवा जिले के निवासी हैं और स्थानीय पुलिस लंबे समय से उनकी तलाश में थी।
आतंकियों का औरंगाबाद में पकड़ा जाना सबूत है कि मध्यप्रदेश के बाद किस कदर महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में आतंकियों ने गहरी पैठ बना ली है। इस मुसलिमबहुल इलाके में लगातार आतंकी गतिविधियां बढ़ रही हैं, साथ ही नाशिक और मालेगांव में भी आतंकियों की पैदावार तेजी से हो रही है।
नाशिक का आतंक कनेक्शन
मुंबई पुलिस के दस्ते बमकांडों की छानबीन के लिए औरंगाबाद समय-समय पर जाते रहे हैं। औरंगाबाद के उस्मानपुरा, शाह कॉलोनी निवासी इरफान अहमद कुरैशी, कैसर कॉलोनी के निवासी शेख याह्रा अब्दुल रहमान और शाह बाजार निवासी सिद्दिकी ताज-उल-हसन को गिरफ्तार किया था। ऐसे कई आतंकी यहां गिरफ्तार होते रहे हैं।
ये आरोपी औरंगाबाद की सॉफ्टवेयर कंपनी 'प्राग्मा सॉफ्ट टेक्नोलॉजीज' में भागीदार थे। उनका एक भागीदार शेख मोहम्मद मुजामिल जमाल अहमद पहले ही गिरफ्त में था। बमकांड साजिश रचने और करवाने में जहीर अहमद बशीर अहमद शेख और मोहम्मद अब्दुल मतीन अब्दुल बासित पहले ही गिरफ्तार हो चुके थे। औरंगाबाद निवासी बमकांड आरोपी बासित अंसारी दुबई भाग गया। औरंगाबाद और आसपास 64 ठिकानों के फोटो और एक डॉक्यूमेंटरी पुलिस ने बरामद की, जिसमें कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम युवक जिहाद में हिस्सा लेने के लिए भड़काते दिखते हैं। एक सीडी का नाम था - जिहाद ए हिंदुस्तान। मुंबई पुलिस ने डॉ. अब्दुल मतीन और आबिद अली को घाटकोपर बेस्ट बस बमकांड में औरंगाबाद से पकड़ा था। आबिद वहां पीसीओ-एसटीडी बूथ चलाता था और आतंकवादियों को संपर्क बनाने में मदद करता था।
एटीएस मुंबई ने सिमी के तीन सदस्यों को औरंगाबाद से 30 किलोमीटर दूर खुलदाबाद में एल्लोरा घाट से गिरफ्तार किया। उनकी टाटा सूमो (MH 14 X 4380) में रखे कंप्यूटरों के सीपीयू और मानीटरों में छुपी 11 एके 47 रायफलें और 800 गोलियां, 33 किलो आरडीएक्स मिले। उनके तीन साथी एक इंडिका (MH 20 W 1240) में भागने में सफल रहे, जिसमें तीन बक्से हथियार और गोला-बारूद थे। सूमो वाला आतंकी औरंगाबाद के बुढ्डीलेन निवासी मो. आमेर शकील अहमद था। उसने बताया कि यह मौत का जखीरा मनमाड़ में कंटेनर से लाया था। पुलिस ने इंडिका चालक मुजफ्फर जमील अहमद और मालिक मुजीब पटेल को गिरफ्तार किया। मुजीब के मुताबिक कार चचेरे भाई मुजफ्फर ने शादी में बीड़ जाने के लिए ली थी।
26 मार्च 2012 को औरंगाबाद की उनिंदी दोपहर गोलियों की आवाज से दहल उठी। रोजाबाग इलाके में एटीएस से दोपहर साढ़े 12 बजे आतंकियों से मुठभेड़ में एक मारा जाता है, एक जख्मी समेत कुल दो गिरफ्तार होते हैं। अजहर कुरेशी उर्फ खलील और उसके साथी पैदल आते एटीएस अधिकारियों ने देखे तो गिरफ्तार करना चाहा। अजहर, शाकिर हुसैन और अबरार उर्फ इस्माइल ने गोलियां चला दीं। अजहर ने दोनों हाथों में दो रिवॉल्वर थाम कर गोलीबारी की थी। गोलीबारी में एटीएस अधिकारी आरिफ शेख कंधे में गोली लगी। अजहर ढेर हो गया। शाकिर हुसैन के पैर में गोली लगी। अबरार भागते हुए पकड़ा गया।
अजहर कुरैशी से दो देसी रिवॉल्वर और 4 जिंदा गोलियां मिले। शाकिर हुसैन से एक रिवॉल्वर और 4 गोलियां और अबरार उर्फ इस्माइल उर्फ मुन्ना से एक रिवॉल्वर और 3 गोलियां बरामद हुईं। 2008 के अहमदाबाद बमकांड और मध्यप्रदेश में आतंकी घटनाओं में उनके शामिल होने की जानकारियां थीं। इनके संबंध सिमी से होने से भी पुलिस ने इंकार नहीं किया। ये मप्र के खंडवा जिले के निवासी हैं और स्थानीय पुलिस लंबे समय से उनकी तलाश में थी।
आतंकियों का औरंगाबाद में पकड़ा जाना सबूत है कि मध्यप्रदेश के बाद किस कदर महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में आतंकियों ने गहरी पैठ बना ली है। इस मुसलिमबहुल इलाके में लगातार आतंकी गतिविधियां बढ़ रही हैं, साथ ही नाशिक और मालेगांव में भी आतंकियों की पैदावार तेजी से हो रही है।
नाशिक का आतंक कनेक्शन
एटीएस को एक बड़ी कामयाबी सितंबर 2010 में तब हाथ लगी, जब दो आतंकियों को पुणे और नाशिक से गिरफ्तार किया था। उन दिनों अबू जुंदाल ने नाशिक, पुणे, औरंगाबाद और मराठवाडा इलाके पर विशेष ध्यान केंद्रित किया था। एक बार तो मराठवाडा से दो कारों में बरास्ते नाशिक अबू जुंदाल के मुंबई जाने की खबर एटीएस को लगी लेकिन वह पकड़ा न जा सका था।
सितंबर 2010 में पकड़े आतंकियों में एक हिमायत बेग था। दूसरा शेख लालबाबा उर्फ बिलाल था। तब पुलिस को बिलाल के विश्वस्तरीय संपर्कों के पुख्ता सबूत मिले थे। उससे 700 ग्राम आरडीएक्स और बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भी मिली थी। दोनों से बरामद पासपोर्ट से साबित हुआ कि वे कई बार पाकिस्तान और बांग्लादेश गए थे। उन दिनों अबू जुंदाल ने नाशिक, पुणे, औरंगाबाद और मराठवाडा पर विशेष ध्यान दे रहा था। एटीएस ने नाशिक के पास अबु जुंदाल के लिए जाल बिछाया लेकिन वह फरार होने में कामयाब रहा।
एटीएस को अबू की दो कारों में से एक पकड़ने में कामयाबी मिली थी, जिससे काफी आपत्तिजनक दस्तावेज और शस्त्र मिले थे। एटीएस के हाथ लगे शेख लाल बाबा उर्फ बिलाल ने बताया कि अबू जुंदाल की अगुवाई में नासिक के कई अहम ठिकानों की रेकी की थी। वे फोटो और नक्शे लश्कर आकाओं तक अबू जुंदाल ने पहुंचाए थे। कुछ सीडी बिलाल से बरामद हुईं जिनमें नाशिक के रामघाट (रामकुंड), त्र्यंबकेश्वर मंदिर, कालाराम मंदिर, मुक्तीधाम, नाशिक की सबसे बड़ी मस्जिद, महानगरपालिका, पुलिस आयुक्त कार्यालय और जिला सत्र न्यायालय के अलावा वायुसेना के कुछ ठिकानों के वीडियो थे।
सितंबर 2010 में एटीएस ने नाशिक से बिलाल और पुणे से गिरफ्तार हिमायत बेग को पुणे के जर्मन बेकरी धमाके में हाथ होने के आरोप में गिरफ्तार किया था। नाशिक जिले का मुस्लिमबहुल मालेगांव आतंकियों का गढ़ बन चुका है। सीबीआई के मुताबिक जलीस अंसारी ने आतंकी आजम गौरी से बम बनाना सीखा था। अधिक उन्नत बम बनाने के लिए खुद कुछ प्रयोग किए और परीक्षण के लिए मालेगांव की नदी के किनारे को चुना था। अहले हदीस का महाराष्ट्र मुखिया भी मालेगांव का निवासी है।
पुणे में आतंक का कारखाना
सितंबर 2010 में पकड़े आतंकियों में एक हिमायत बेग था। दूसरा शेख लालबाबा उर्फ बिलाल था। तब पुलिस को बिलाल के विश्वस्तरीय संपर्कों के पुख्ता सबूत मिले थे। उससे 700 ग्राम आरडीएक्स और बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भी मिली थी। दोनों से बरामद पासपोर्ट से साबित हुआ कि वे कई बार पाकिस्तान और बांग्लादेश गए थे। उन दिनों अबू जुंदाल ने नाशिक, पुणे, औरंगाबाद और मराठवाडा पर विशेष ध्यान दे रहा था। एटीएस ने नाशिक के पास अबु जुंदाल के लिए जाल बिछाया लेकिन वह फरार होने में कामयाब रहा।
एटीएस को अबू की दो कारों में से एक पकड़ने में कामयाबी मिली थी, जिससे काफी आपत्तिजनक दस्तावेज और शस्त्र मिले थे। एटीएस के हाथ लगे शेख लाल बाबा उर्फ बिलाल ने बताया कि अबू जुंदाल की अगुवाई में नासिक के कई अहम ठिकानों की रेकी की थी। वे फोटो और नक्शे लश्कर आकाओं तक अबू जुंदाल ने पहुंचाए थे। कुछ सीडी बिलाल से बरामद हुईं जिनमें नाशिक के रामघाट (रामकुंड), त्र्यंबकेश्वर मंदिर, कालाराम मंदिर, मुक्तीधाम, नाशिक की सबसे बड़ी मस्जिद, महानगरपालिका, पुलिस आयुक्त कार्यालय और जिला सत्र न्यायालय के अलावा वायुसेना के कुछ ठिकानों के वीडियो थे।
सितंबर 2010 में एटीएस ने नाशिक से बिलाल और पुणे से गिरफ्तार हिमायत बेग को पुणे के जर्मन बेकरी धमाके में हाथ होने के आरोप में गिरफ्तार किया था। नाशिक जिले का मुस्लिमबहुल मालेगांव आतंकियों का गढ़ बन चुका है। सीबीआई के मुताबिक जलीस अंसारी ने आतंकी आजम गौरी से बम बनाना सीखा था। अधिक उन्नत बम बनाने के लिए खुद कुछ प्रयोग किए और परीक्षण के लिए मालेगांव की नदी के किनारे को चुना था। अहले हदीस का महाराष्ट्र मुखिया भी मालेगांव का निवासी है।
पुणे में आतंक का कारखाना
महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी तथा छत्रपति शिवाजी महाराज से लोकमान्य तिलक की राष्ट्रवादी विरासत बयान करने वाले पुणे को पुण्य नगरी कहते रहे हैं। लेकिन बदलते जमाने के साथ हालात ऐसे बदले कि पुणे आतंकियों का अड्डा बन गया। एक तरफ पूरे महाराष्ट्र में आतंक की फसल लहलहा रही थी। तो दूसरी तरफ पुणे में भी आतंक की पौधशाला तैयार की इंडियन मुजाहिदीन ने। वहां भी आतंकियों की पैदावार होने लगी। न केवल अनपढ़ बल्कि बेहद शिक्षित युवाओं के मन में भी जहर भर कर उन्हें आतंकी बनाया। कुछ जहरीले दिमागों ने एक बड़े प्रतिष्ठित चिकित्सक परिवार का बेटा तक, जिसे 19 लाख रुपए सालाना वेतन मिलता था, को भी आतंकी बना डाला।
पुणे का भौगोलिक और सामरिक महत्व है क्योंकि सेना के कई संस्थान यहां हैं। पुणे में शिक्षा हासिल करने पूरे देश से छात्र आते हैं। इतना ही नहीं पुणे ने आजादी के बाद बड़े पैमाने पर औद्योगिक विकास भी किया, जिसके कारण पुणे की आबादी बढ़ी, उसका विस्तार हुआ। आज पुणे देश का बड़ा आईटी केंद्र है। इन कारणों से पुणे में लोगों का आवागमन भारी तादाद में है, जिसका फायदा आतंकी गिरोहों ने उठाया, और पुणे का उपयोग कर देश भर में आतंकी वारदातें कीं। इसकी शुरुआत छात्रों के बाद आईटी प्रोफेशनल्स को जाल में फंसाने और इस्तेमाल करने से हुआ। फिर शुरू हुई यहां से आतंक की साजिश बुनने और उन्हें अमली जामा पहनाने की कसरतें।
आजादी के पहले से पुणे के शिक्षा संस्थान पसंदीदा रहे हैं, उसी कारण न केवल महाराष्ट्र बल्कि अच्छी शिक्षा हासिल करने के लिए देश भर के छात्र यहां आते हैं। इसी का फायदा सिमी ने 90 के दशक में उठाया और कट्टरपंथी विचारों के समर्थक बना कर यहां ताकत में खासा इजाफा किया। प्रतिबंध लगने के बाद सिमी ने अलग-अलग नामों से काम जारी रखा था। इसका फायदा इंडियन मुजाहिदीन ने उठाया। इन्हीं सिमी चरमपंथियों के बल पर स्लीपर सेल बनाए। महाराष्ट्र के मराठवाडा के गरीब तबके के छात्रों को पुणे में जिहादी साहित्य देकर और गुजरात दंगों की सीडी दिखा कर उकसाया जिससे दसियों छात्र झांसे में आए और आतंक की राह पकड़ी थी।
मुंबई आतंकी हमले के बाद सामने आया कि इंडियन मुजाहिदीन का सूत्र संचालन पुणे से होता रहा है। देश भर में बम विस्फोटों के बाद कई स्थानों से जिन आतंकवादियों को पुलिस ने हिरासत में लिया, उनमें से 10 का सीधा संबंध पुणे से था। खास बात यह है कि ये गिरफ्तारियां एवं आतंकवादियों की जड़ तक पहुंचने का काम मुंबई पुलिस की अपराध शाखा ने किया था। स्थानीय पुलिस और एटीएस को इनकी भनक तक न थी। पिछले कुछ वर्षों से आतंकी घटनाओं में आईएम की प्रमुख भूमिका थी, उसकी स्थापना भी पुणे में हुई तथा संचालन भी पुणे से होता रहा है।
सूरत तथा हैदराबाद बम विस्फोटों के बाद पुणे के संवेदनशील मुस्लिमबहुल इलाके कोंढवा में रहने वाले फजल रहमान दुर्रानी उर्फ सलाउद्दीन, इस्माइल चौधरी उर्फ सईद, आसिफ शेख मोबीन कादर शेख उर्फ खालिद और फारूख अरकुद्दिम तारकस को पुलिस ने धर दबोचा। इनके अलावा पुणे के मोहम्मद मंसूर असगर उर्फ मन्नू और माजिद अख्तर शेख ने बताया कि वे आतंकी ईमेल बनाते व भेजते थे। फिरोज मुजावर उर्फ अफरोज, मोहम्मद अतीक, मोहम्मद इकबाल और यासीर अजीज अहमद भी पकड़े गए। ये सारे पुणे के एक ही शिक्षा संस्थान से जुड़े थे।
पुणे में जर्मन बेकरी धमाके के बाद पुणे पुलिस ने कट्टरपंथियों और सिमी कार्यकर्ताओं की फेहरिस्त बनाने का काम शुरू किया तो कुल 300 नाम मिले। लेकिन पुणे समेत पूरे देश को दहलाने वाले इस धमाके के पहले उनके पास मात्र 40 चरमपंथियों की सूची थी। पुणे पुलिस की ताकत कम होने और खुफिया संगठनों की नाकामी के चलते यहां आतंकी कामयाब होते रहे हैं।
पुणे पुलिस की नींद इन कारणों से हराम हुई हो, यह नहीं लगता है क्योंकि मुंबई और पुणे में आतंकी संगठनों का जैसा जाल फैला है... और नक्सलवादियों ने भी पुणे में ठिकाना बनाया है... और बरसों से काम करते रहे, उसकी भी जानकारी पुणे पुलिस को नहीं मिली। मुंबई एटीएस ने ही उसका भी भंडाफोड़ किया था। इसके चलते सेना के प्रतिष्ठान, राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी, विशेष अनुसंधान संस्थान तथा उद्योगों पर खतरा बढ़ गया है... और पुणे में अब पहले सी शांती रह गई हो, ऐसा भी लगता तो नहीं है।
बीड़ में जबी का सिमी से संपर्क
पुणे का भौगोलिक और सामरिक महत्व है क्योंकि सेना के कई संस्थान यहां हैं। पुणे में शिक्षा हासिल करने पूरे देश से छात्र आते हैं। इतना ही नहीं पुणे ने आजादी के बाद बड़े पैमाने पर औद्योगिक विकास भी किया, जिसके कारण पुणे की आबादी बढ़ी, उसका विस्तार हुआ। आज पुणे देश का बड़ा आईटी केंद्र है। इन कारणों से पुणे में लोगों का आवागमन भारी तादाद में है, जिसका फायदा आतंकी गिरोहों ने उठाया, और पुणे का उपयोग कर देश भर में आतंकी वारदातें कीं। इसकी शुरुआत छात्रों के बाद आईटी प्रोफेशनल्स को जाल में फंसाने और इस्तेमाल करने से हुआ। फिर शुरू हुई यहां से आतंक की साजिश बुनने और उन्हें अमली जामा पहनाने की कसरतें।
आजादी के पहले से पुणे के शिक्षा संस्थान पसंदीदा रहे हैं, उसी कारण न केवल महाराष्ट्र बल्कि अच्छी शिक्षा हासिल करने के लिए देश भर के छात्र यहां आते हैं। इसी का फायदा सिमी ने 90 के दशक में उठाया और कट्टरपंथी विचारों के समर्थक बना कर यहां ताकत में खासा इजाफा किया। प्रतिबंध लगने के बाद सिमी ने अलग-अलग नामों से काम जारी रखा था। इसका फायदा इंडियन मुजाहिदीन ने उठाया। इन्हीं सिमी चरमपंथियों के बल पर स्लीपर सेल बनाए। महाराष्ट्र के मराठवाडा के गरीब तबके के छात्रों को पुणे में जिहादी साहित्य देकर और गुजरात दंगों की सीडी दिखा कर उकसाया जिससे दसियों छात्र झांसे में आए और आतंक की राह पकड़ी थी।
मुंबई आतंकी हमले के बाद सामने आया कि इंडियन मुजाहिदीन का सूत्र संचालन पुणे से होता रहा है। देश भर में बम विस्फोटों के बाद कई स्थानों से जिन आतंकवादियों को पुलिस ने हिरासत में लिया, उनमें से 10 का सीधा संबंध पुणे से था। खास बात यह है कि ये गिरफ्तारियां एवं आतंकवादियों की जड़ तक पहुंचने का काम मुंबई पुलिस की अपराध शाखा ने किया था। स्थानीय पुलिस और एटीएस को इनकी भनक तक न थी। पिछले कुछ वर्षों से आतंकी घटनाओं में आईएम की प्रमुख भूमिका थी, उसकी स्थापना भी पुणे में हुई तथा संचालन भी पुणे से होता रहा है।
सूरत तथा हैदराबाद बम विस्फोटों के बाद पुणे के संवेदनशील मुस्लिमबहुल इलाके कोंढवा में रहने वाले फजल रहमान दुर्रानी उर्फ सलाउद्दीन, इस्माइल चौधरी उर्फ सईद, आसिफ शेख मोबीन कादर शेख उर्फ खालिद और फारूख अरकुद्दिम तारकस को पुलिस ने धर दबोचा। इनके अलावा पुणे के मोहम्मद मंसूर असगर उर्फ मन्नू और माजिद अख्तर शेख ने बताया कि वे आतंकी ईमेल बनाते व भेजते थे। फिरोज मुजावर उर्फ अफरोज, मोहम्मद अतीक, मोहम्मद इकबाल और यासीर अजीज अहमद भी पकड़े गए। ये सारे पुणे के एक ही शिक्षा संस्थान से जुड़े थे।
पुणे में जर्मन बेकरी धमाके के बाद पुणे पुलिस ने कट्टरपंथियों और सिमी कार्यकर्ताओं की फेहरिस्त बनाने का काम शुरू किया तो कुल 300 नाम मिले। लेकिन पुणे समेत पूरे देश को दहलाने वाले इस धमाके के पहले उनके पास मात्र 40 चरमपंथियों की सूची थी। पुणे पुलिस की ताकत कम होने और खुफिया संगठनों की नाकामी के चलते यहां आतंकी कामयाब होते रहे हैं।
पुणे पुलिस की नींद इन कारणों से हराम हुई हो, यह नहीं लगता है क्योंकि मुंबई और पुणे में आतंकी संगठनों का जैसा जाल फैला है... और नक्सलवादियों ने भी पुणे में ठिकाना बनाया है... और बरसों से काम करते रहे, उसकी भी जानकारी पुणे पुलिस को नहीं मिली। मुंबई एटीएस ने ही उसका भी भंडाफोड़ किया था। इसके चलते सेना के प्रतिष्ठान, राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी, विशेष अनुसंधान संस्थान तथा उद्योगों पर खतरा बढ़ गया है... और पुणे में अब पहले सी शांती रह गई हो, ऐसा भी लगता तो नहीं है।
बीड़ में जबी का सिमी से संपर्क
बीड़ हत्तिखाना इलाके का निवासी जबी 2006 के पहले से सिमी में था। उसके साथ 6 युवक थे। औरंगाबाद हथियार कांड के बाद महाराष्ट्र एटीएस ने मराठवाडा में सिमी सदस्यों को दबोचना शुरू किया, तो औरंगाबाद से बिलाल व सय्यद आकिब पकड़े गए। उनसे पता चला कि जबी उर्फ़ अबू जुंदाल सिमी से लश्कर में जा पहुंचा है। जबी के साथ काम करने वाले सिमी सदस्य फैयाज कागजी, सैय्यद जाफरीउद्द्दीन, हातिम इमरान आकिल, फ़िरोज़ पठान और हिमायत बेग हैं। जाफरीउद्दीन को हैदराबाद में, हातिम इमरान आकिल परली में, फिरोज पठान मांजलगाव में पकड़े गए। जर्मन बेकरी बमकांड में हिमायत सलाखों के पीछे है। कुछ सिमी आतंकी मांजलगाव के बबलू और विखार, बीड़ का मसूद शेख, बीड़ के शहंशाह नगर का निवासी फैयाज कागजी भी एटीएस के राडार पर हैं।
सूत्रों के मुताबिक जबी ने बांग्लादेश से 40 लाख रुपए समद शमशेर खान के हाथों बीड़ में अपनी माता-पिता के लिए भेजे थे लेकिन मनमाड़ रेलवे स्टेशन पर एटीएस ने गिरफ्तार कर रकम जब्त कर ली। समद आज भी पुलिस हिरासत में है। जबी के माँ रेहाना बेगम ने इंकार किया है कि कोई रकम जबी ने उनके लिए कभी भेजी थी।
सूत्रों के मुताबिक जबी ने बांग्लादेश से 40 लाख रुपए समद शमशेर खान के हाथों बीड़ में अपनी माता-पिता के लिए भेजे थे लेकिन मनमाड़ रेलवे स्टेशन पर एटीएस ने गिरफ्तार कर रकम जब्त कर ली। समद आज भी पुलिस हिरासत में है। जबी के माँ रेहाना बेगम ने इंकार किया है कि कोई रकम जबी ने उनके लिए कभी भेजी थी।
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मराठवाड़ा में नए नाम से सक्रिय आईएम
महाराष्ट्र के आतंक प्रभावित मराठवाड़ा में इंडियन मुजाहिदीन एक नए अवतार में प्रकट हो चुकि है। मराठवाड़ा तो मुंबई से मात्र 400 किलोमीटर दूर है। इसीलिए आतंकियों के लिए ये जगह न केवल छुपने के लिए सुविधाजनक है, वहां आने-जाने में भी खासी सुविधा होती है। यहां इंडियन मुजाहिदीन ने नई कार्यप्रणाली और नए नाम से काम शुरू किया है। दिल्ली हाईकोर्ट बमकांड के बाद हर जहन में सबसे पहले आईएम का नाम आया था लेकिन हमले की जिम्मेदारी का ई-मेल हूजी से आया। आतंकियों तक पहुंचना बेहद जटिल हो चला है क्योंकि आईएम की कार्यप्रणाली में खासा परिवर्तन आया है। अब यह संगठन नए नाम ‘जमीयत अंसारूल मुसलमीन’ (जेएएम) से सात राज्यों में काम कर रहा है। नए भर्ती युवकों का इस्तेमाल आतंक फैलाने में हो रहा है। सूत्रों के मुताबिक ऐसे तरीके से जेएएम खड़ा हुआ है कि आईएम और सिमी के आतंकी पुलिस की नजरों में न आएं।
पहले सिमी, फिर कुछ वक्त से आईएम बन कर आतंकी गतिविधियों में कर रहा था। 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद सिमी के राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल होने तके सबूत मिले तो 27 फरवरी 2001 में दो साल के लिए सिमी पर प्रतिबंध लग गया। मुंबई में बम धमाकों में आईएम पर शक रहा ही है। आईएम के तार लश्करे तय्यबा और हिजबुल मुजाहिदीन से होने के कारण उसे आर्थिक इमदाद और गोला-बारूद खूब मिलते हैं। मराठवाड़ा में आईएम की आड़ में लश्कर विस्फोटक और हथियार भेजता और संग्रहित करता है।
भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए आईएम, लश्कर और बांग्लादेशी आतंकी संगठन हूजी ने हाथ मिलाए हैं। गुजरात, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, केरल, झारखंड और पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों के बिल्कुल नए और अपराधों से कोसों दूर रहे युवकों की भर्ती कर जमीयत अंसारूल मुसलमीन (जेएएम) बना दिया है। ई-मेल कर धमाकों की जिम्मेदारी न लेने की नीति जेएमयू ने तय की है। स्लीपर सेल विस्फोट करेंगे लेकिन सूत्रधार को पुलिस से बचाने के लिए हर मोड्यूल के लिए ‘कट ऑफ प्रणाली’ बनाई है।
मुंबई के नागपाड़ा मोहल्ले में लश्कर के तीन आतंकी 20 डिटोनेटर समेत पकड़े लेकिन उनसे जिलेटिन का न मिलना अचरज में डालने वाला था। असल में इनकी कार्यशैली इतनी सुनियोजित थी कि विस्फोटक पहुंचाने वाले को खबर न थी कि डिटोनेटर कौन ले जा रहा है। पूरे काम का सूत्रधार कौन है। सबको अलग-अलग स्थानों से सूत्रधार अपने विश्वनीय लोगों के जरिए सामान जुटाता है। इस योजना के चलते खुफिया एजेंसियां इन्हें पकड़ने में नाकामयाब हो रही हैं।
पहले सिमी, फिर कुछ वक्त से आईएम बन कर आतंकी गतिविधियों में कर रहा था। 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद सिमी के राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल होने तके सबूत मिले तो 27 फरवरी 2001 में दो साल के लिए सिमी पर प्रतिबंध लग गया। मुंबई में बम धमाकों में आईएम पर शक रहा ही है। आईएम के तार लश्करे तय्यबा और हिजबुल मुजाहिदीन से होने के कारण उसे आर्थिक इमदाद और गोला-बारूद खूब मिलते हैं। मराठवाड़ा में आईएम की आड़ में लश्कर विस्फोटक और हथियार भेजता और संग्रहित करता है।
भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए आईएम, लश्कर और बांग्लादेशी आतंकी संगठन हूजी ने हाथ मिलाए हैं। गुजरात, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, केरल, झारखंड और पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों के बिल्कुल नए और अपराधों से कोसों दूर रहे युवकों की भर्ती कर जमीयत अंसारूल मुसलमीन (जेएएम) बना दिया है। ई-मेल कर धमाकों की जिम्मेदारी न लेने की नीति जेएमयू ने तय की है। स्लीपर सेल विस्फोट करेंगे लेकिन सूत्रधार को पुलिस से बचाने के लिए हर मोड्यूल के लिए ‘कट ऑफ प्रणाली’ बनाई है।
मुंबई के नागपाड़ा मोहल्ले में लश्कर के तीन आतंकी 20 डिटोनेटर समेत पकड़े लेकिन उनसे जिलेटिन का न मिलना अचरज में डालने वाला था। असल में इनकी कार्यशैली इतनी सुनियोजित थी कि विस्फोटक पहुंचाने वाले को खबर न थी कि डिटोनेटर कौन ले जा रहा है। पूरे काम का सूत्रधार कौन है। सबको अलग-अलग स्थानों से सूत्रधार अपने विश्वनीय लोगों के जरिए सामान जुटाता है। इस योजना के चलते खुफिया एजेंसियां इन्हें पकड़ने में नाकामयाब हो रही हैं।
विवेक अग्रवाल, मुंबई
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आतंक गुरू कागजी और चेला जबी
बीड़ निवासी जबीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू जुंदाल ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र एटीएस में ढेरों नाम हैं जो मराठवाड़ा के हैं लेकिन गिरफ्त से बाहर हैं। महाराष्ट्र एटीएस में अबू जुंदाल का नाम बहुत नीचे रहा है, सबसे पहले फैय्याज कागजी था। उसी ने जबीउद्दीन को अबू जुंदाल बनाया है। उसने ही जबीउद्दीन को सिमी में शामिल किया था जो बाद में लश्कर तक पहुंचा।
महाराष्ट्र एटीएस की सूची में औरंगाबाद निवासी इरफ़ान अहमद गुलाम, शेख अब्दुल रहमान, अब्दुल बासित अंसारी के नाम भी हैं। बीड़ के गेवराई गांव में आम जिंदगी बिताने वाला जबीउद्दीन आज भारत के लिए सिरदर्द बन चुका है। सन 2006 से आतंक में कदम रखने वाला जबी पुलिस को चकमा देता रहा। वह पाकिस्तान में महाराष्ट्र के युवकों को जिहादी ट्रेनिंग दे रहा था। आज वह दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में है।
जबी का जन्म 13 नवंबर 1983 को गेवराई गांव में बीमा एजंट जकीरुद्दीन अंसारी के मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। जबी पांच बहनों के बीच इकलौता भाई था। जबी ने मैट्रिक तक की पढाई गांव के ही जिला परिषद स्कूल में की थी। उसके बाद बीड़ में आईटीआई में इलेक्ट्रिशियन कोर्स किया। इसके बाद जबी बीड़ में इलेक्ट्रिशियन का काम करने लगा। काम के दौरान उसने बीड़ के बलभीम महाविद्यालय में डिग्री कोर्स के लिए दाखिल लिया। फिर एमए के लिए उसने बीड़ के नवगन कॉलेज में प्रवेश तो लिया लेकिन कभी पूरा नहीं कर सका।
2008 में मुंबई हमले के दौरान लश्कर के एक आका ने मुंबई में हमलावर आतंकियो से – “ये तो ट्रेलर है - फिल्म अभी बाकी है” - कहा तो खुफिया एजंसियों में हडकंप मच गया। ये भाषा व लहजा पाक आतंकी का न था बल्कि महाराष्ट्र की बोली से मिलता था। पुलिस तह में गई तो पता चला कि कश्मीर और कराची में आतंकी कैंप चलाने वाला बीड़ का जबी था।
1999 में औरंगाबाद में सिमी का पहला सम्मलेन हुआ था। इसमें आतंकी मोहम्मद आमिर शकील अहमद ने कहा कि इस्लामी पाकिस्तान हमारा मुल्क है - भारत नहीं। इसी दरम्यान सिमी को लश्कर का समर्थन मिल गया। 2001 में जम्मू के मदरसों में खालिद सरदाना जिहादी ट्रेनिंग देता था। उसी दौरान सिमी ने जबी के साथ औरंगाबाद के युवाओं को जम्मू–कश्मीर के पुंछ इलाके के करीब सुरंगकोट के पास प्रशिक्षण दिलवाया था। ट्रेनिंग के बाद जबी ने सबसे पहले औरंगाबाद में बड़ी वारदात की योजना बनाई लेकिन एटीएस ने सफल होने के पहले उधेड़ कर रख दिया। भारी मात्रा में हथियारों और गोला-बारूद के साथ कई आतंकियों को धर दबोचा लेकिन जबी भाग निकला। उसके बाद वह गुजरात, मालेगांव और मुंबई बमकांडों साजिशों में बतौर मास्टरमाइंड सामने आया था।
जबीउद्दीन का कहना है कि जकी उर रहमान लखवी सहित लश्कर के शीर्ष नेता कसाब की गिरफ्तारी से बेहद हतोत्साहित हुए थे। पूछताछ में जबी ने बताया कि वह कराची में नियंत्रण कक्ष बनाने वालों में शामिल था। 26 नवंबर 2008 के हमले से पहले सभी उपकरणों और साजोसामान का परीक्षण भी उसने खुद किया था। जबीउद्दीन ने बताया कि उसे मुंबई हमले से पहले लश्कर के मुजम्मिल ने 10 लड़कों को हिंदी सिखाने को कहा था। हमले से कुछ दिन पहले पाक अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद से उसे निर्देश मिला कि मुंबई में इस्तेमाल होने वाले सामान्य शब्द हमलावरों को सिखाने हैं और मुंबईवासी कैसे दिखते हैं, वैसे रहन-सहन की ट्रेनिंग भी देनी है। वहीं तय हुआ कि हमलावरों की कलाइयों पर ‘कलावा’ बांधेगे ताकि हिंदू छात्र दिखें। जबी के मुताबिक लश्कर आका उम्मीद करते थे कि मुंबई हमला 24 घंटे में खत्म होगा लेकिन लंबा खिंचने से वहां खासी हताशा फैली थी। कसाब की गिरफ्तारी की खबर चैनलों पर आने से कराची नियंत्रण कक्ष में तो भगदड़ मच गई थी। कसाब ने अदालत में बताया था कि अबू जुंदाल ने 10 हमलावरों को हिंदी सिखाई थी। वह मुंबई हमले के सरगनाओं में एकमात्र भारतीय था और ‘प्रशासन’ जैसे हिंदी शब्दों का इस्तेमाल इसका साफ संकेत था।
जबी का नाम पुणे जर्मन बेकरी बमकांड आरोप पत्र में छह आरोपियों मोहसिन चौधरी, यासीन भटकल, रियाज भटकल, इकबाल भटकल और फैयाज कागजी के साथ शामिल है। उसका नाम हिमायत बेग से पूछताछ में मिला था, जो बेकरी में बम रखने के लिए पुणे से सात सितंबर 2010 को गिरफ्तार हुआ था।
औरंगाबाद हथियार मामले में एटीएस ने आठ मई 2006 में चांदवाड़-मनमाड़ राजमार्ग पर टाटा सूमो और इंडिका कारों से तीन को गिरफ्तार कर 30 किलो आरडीएक्स, 10 एके 47 राइफलें और 3200 गोलियां बरामद की थीं। एटीएस का दावा है कि इंडिका जबी चला रहा था। वहां से जबी मालेगांव गया और वाहन एक परिचित को सौंप कर गायब हो गया था। पुलिस ने बताया कि जांचकर्ताओं ने मालेगांव से 13 किलो आरडीएक्स और छह एके 47 राइफलें तथा नासिक जिले के मनमाड़ के पास अंकाई गांव से 50 दस्ती बम भी बाद में बरामद किए थे। महाराष्ट्र में मनमाड के अनकाइ किले से आरडीएक्स और एके-47 राइफलों से भरे दो डिब्बे बरामद किए। इस सिलसिले में नाशिक जिले के मालेगांव से 4 लोगों को गिरफ्तार किया था। औरंगाबाद गोला-बारूद जब्ती मामले में कुल 21 आतंकी आज भी जेलों में बंद हैं। पुलिस के मुताबिक एक महीने बाद जबी पाकिस्तान जाने से पहले बांग्लादेश गया था।
महाराष्ट्र एटीएस की सूची में औरंगाबाद निवासी इरफ़ान अहमद गुलाम, शेख अब्दुल रहमान, अब्दुल बासित अंसारी के नाम भी हैं। बीड़ के गेवराई गांव में आम जिंदगी बिताने वाला जबीउद्दीन आज भारत के लिए सिरदर्द बन चुका है। सन 2006 से आतंक में कदम रखने वाला जबी पुलिस को चकमा देता रहा। वह पाकिस्तान में महाराष्ट्र के युवकों को जिहादी ट्रेनिंग दे रहा था। आज वह दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में है।
जबी का जन्म 13 नवंबर 1983 को गेवराई गांव में बीमा एजंट जकीरुद्दीन अंसारी के मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। जबी पांच बहनों के बीच इकलौता भाई था। जबी ने मैट्रिक तक की पढाई गांव के ही जिला परिषद स्कूल में की थी। उसके बाद बीड़ में आईटीआई में इलेक्ट्रिशियन कोर्स किया। इसके बाद जबी बीड़ में इलेक्ट्रिशियन का काम करने लगा। काम के दौरान उसने बीड़ के बलभीम महाविद्यालय में डिग्री कोर्स के लिए दाखिल लिया। फिर एमए के लिए उसने बीड़ के नवगन कॉलेज में प्रवेश तो लिया लेकिन कभी पूरा नहीं कर सका।
2008 में मुंबई हमले के दौरान लश्कर के एक आका ने मुंबई में हमलावर आतंकियो से – “ये तो ट्रेलर है - फिल्म अभी बाकी है” - कहा तो खुफिया एजंसियों में हडकंप मच गया। ये भाषा व लहजा पाक आतंकी का न था बल्कि महाराष्ट्र की बोली से मिलता था। पुलिस तह में गई तो पता चला कि कश्मीर और कराची में आतंकी कैंप चलाने वाला बीड़ का जबी था।
1999 में औरंगाबाद में सिमी का पहला सम्मलेन हुआ था। इसमें आतंकी मोहम्मद आमिर शकील अहमद ने कहा कि इस्लामी पाकिस्तान हमारा मुल्क है - भारत नहीं। इसी दरम्यान सिमी को लश्कर का समर्थन मिल गया। 2001 में जम्मू के मदरसों में खालिद सरदाना जिहादी ट्रेनिंग देता था। उसी दौरान सिमी ने जबी के साथ औरंगाबाद के युवाओं को जम्मू–कश्मीर के पुंछ इलाके के करीब सुरंगकोट के पास प्रशिक्षण दिलवाया था। ट्रेनिंग के बाद जबी ने सबसे पहले औरंगाबाद में बड़ी वारदात की योजना बनाई लेकिन एटीएस ने सफल होने के पहले उधेड़ कर रख दिया। भारी मात्रा में हथियारों और गोला-बारूद के साथ कई आतंकियों को धर दबोचा लेकिन जबी भाग निकला। उसके बाद वह गुजरात, मालेगांव और मुंबई बमकांडों साजिशों में बतौर मास्टरमाइंड सामने आया था।
जबीउद्दीन का कहना है कि जकी उर रहमान लखवी सहित लश्कर के शीर्ष नेता कसाब की गिरफ्तारी से बेहद हतोत्साहित हुए थे। पूछताछ में जबी ने बताया कि वह कराची में नियंत्रण कक्ष बनाने वालों में शामिल था। 26 नवंबर 2008 के हमले से पहले सभी उपकरणों और साजोसामान का परीक्षण भी उसने खुद किया था। जबीउद्दीन ने बताया कि उसे मुंबई हमले से पहले लश्कर के मुजम्मिल ने 10 लड़कों को हिंदी सिखाने को कहा था। हमले से कुछ दिन पहले पाक अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद से उसे निर्देश मिला कि मुंबई में इस्तेमाल होने वाले सामान्य शब्द हमलावरों को सिखाने हैं और मुंबईवासी कैसे दिखते हैं, वैसे रहन-सहन की ट्रेनिंग भी देनी है। वहीं तय हुआ कि हमलावरों की कलाइयों पर ‘कलावा’ बांधेगे ताकि हिंदू छात्र दिखें। जबी के मुताबिक लश्कर आका उम्मीद करते थे कि मुंबई हमला 24 घंटे में खत्म होगा लेकिन लंबा खिंचने से वहां खासी हताशा फैली थी। कसाब की गिरफ्तारी की खबर चैनलों पर आने से कराची नियंत्रण कक्ष में तो भगदड़ मच गई थी। कसाब ने अदालत में बताया था कि अबू जुंदाल ने 10 हमलावरों को हिंदी सिखाई थी। वह मुंबई हमले के सरगनाओं में एकमात्र भारतीय था और ‘प्रशासन’ जैसे हिंदी शब्दों का इस्तेमाल इसका साफ संकेत था।
जबी का नाम पुणे जर्मन बेकरी बमकांड आरोप पत्र में छह आरोपियों मोहसिन चौधरी, यासीन भटकल, रियाज भटकल, इकबाल भटकल और फैयाज कागजी के साथ शामिल है। उसका नाम हिमायत बेग से पूछताछ में मिला था, जो बेकरी में बम रखने के लिए पुणे से सात सितंबर 2010 को गिरफ्तार हुआ था।
औरंगाबाद हथियार मामले में एटीएस ने आठ मई 2006 में चांदवाड़-मनमाड़ राजमार्ग पर टाटा सूमो और इंडिका कारों से तीन को गिरफ्तार कर 30 किलो आरडीएक्स, 10 एके 47 राइफलें और 3200 गोलियां बरामद की थीं। एटीएस का दावा है कि इंडिका जबी चला रहा था। वहां से जबी मालेगांव गया और वाहन एक परिचित को सौंप कर गायब हो गया था। पुलिस ने बताया कि जांचकर्ताओं ने मालेगांव से 13 किलो आरडीएक्स और छह एके 47 राइफलें तथा नासिक जिले के मनमाड़ के पास अंकाई गांव से 50 दस्ती बम भी बाद में बरामद किए थे। महाराष्ट्र में मनमाड के अनकाइ किले से आरडीएक्स और एके-47 राइफलों से भरे दो डिब्बे बरामद किए। इस सिलसिले में नाशिक जिले के मालेगांव से 4 लोगों को गिरफ्तार किया था। औरंगाबाद गोला-बारूद जब्ती मामले में कुल 21 आतंकी आज भी जेलों में बंद हैं। पुलिस के मुताबिक एक महीने बाद जबी पाकिस्तान जाने से पहले बांग्लादेश गया था।
विवेक अग्रवाल, मुंबई
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