विवेक अग्रवाल
दाऊद के भाईयों में कौन करता है क्या
एक तरफ जहां दाऊद के लिए पाकिस्तान में समस्याएं बढ़ती ही जा रही हैं, वहीं दूसरी तरफ भारतीय खुफिया एजंसियां और पुलिस मान बैठे हैं कि जल्द ही पूरा खानदान उनके हत्थे चढ़ने वाला है। सात भाईयों और तीन बहनों के भरे-पूरे परिवार में से एक दाऊद के बाकी भाईयों के बारे में काफी कम जानकारी लोगों को है।
साबिर इब्राहिम - मुंबई पुलिस के हवलदार इब्राहिम कासकर का ये सबसे बड़ा बेटा और दाऊद से बड़ा भाई 80 के दशक में गिरोह युद्ध का शिकार बन कर मारा जा चुका है। पठान गिरोहों से हुई लड़ाई का दाऊद गिरोह का सबसे पहला और बड़ा शिकार साबिर ही बना था। उसे मारने वाले आलमजेब और शाहजादा पठान की हत्याएं दाऊद ने कीं। इसी हत्या ने पूरी मुंबई को रक्त से नहला कर रख दिया था।
दाऊद इब्राहिम - 80 के दशक से हिंदुस्तानी माफिया का सबसे बड़ा सरगना बना हुआ है इब्राहिम कासकर का दूसरा बेटा। दाऊद हजारों करोड़ रुपए का अवैध साम्राज्य टेलीफोन पर संभालता है और पाकिस्तान, तमाम खाड़ी देशों और बांग्लादेश में खासा जाल बिछा रखा है। एक आकलन के मुताबिक महज हिंदुस्तान में ही वह सालाना 1 हजार करोड़ रुपए हफ्ते में कमाता है।
अनीस इब्राहिम - दाऊद के कामकाज में सहयोग करता है। उसे 19 जनवरी 1996 को बहरीन में अली बुदेश और एजाज पठान की सूचना पर कुछ और गुंडों सहित गिरफ्तार हुआ था लेकिन ऊंचे राजनीतिक रसूख तथा आईएसआई के दबाव में अनीस को न केवल रिहा कर दिया बल्कि चुपचाप इस्लामाबाद भी पहुंचा दिया था। अनीस को नशे की भी लत रही है। उसे 500 करोड़ रुपए की कराची की एक जमीन के सौदे के चक्कर में पाकिस्तान के एक नामी गिरोह सरगना रहमान डकैत ने मार दिया था।
नूरा इब्राहिम - दाऊद का यह भाई फिल्मों को लेकर काफी उत्साहित रहता है। वह लंबे समय से फिल्मों के फाईनांस का काम देख रहा है। नूर कासकर नाम से वह एक-दो फिल्मों में गीत भी लिख चुका है। यही नहीं, फिल्मोद्योग से जुड़ी कोई हसीना उसकी नजर में चढ़ जाती थी तो उसे कभी बख्शता नहीं था। खाड़ी देशों में वह फिल्मों की होम वीडियो और ओवरसीज राईट्स लेने वाली कंपनियां भी चलाता है।
इकबाल इब्राहिम - इकबाल पर कोई भी ऐसा मामला दर्ज नहीं है जो गंभीर अपराध की श्रेणी में आता हो। यही कारण है कि वह हिंदुस्तान आ पहुंचा और उसने जैसा चाहा, वैसा ही उसके साथ हुआ। अब वह आजाद है और मजे से संपत्तियां खरीद रहा है, इमारतें तामीर करवा रहा है।
मुस्तकिम इब्राहिम - मुस्तकिम पर भी कोई गंभीर मामला दर्ज न से मुंबई पुलिस के लिए उसे गिरफ्तार करके लंबे समय तक हिरासत में रखना संभव नहीं है। वह दाऊद के कारोबार में कोई बड़ा हाथ नहीं है। पिछले कुछ समय में उसने गिरोह के लिए हवाला का कारोबार देखना जरूर शुरू किया है लेकिन इसकी पुष्टि पुलिस अधिकारी नहीं करते हैं।
हुमायूं इब्राहिम - दाऊद के सात भाईयों में यह सबसे छोटा है। वह अपने भाई की कमाई पर जीने के अलावा कुछ और नहीं करता है। उसके खिलाफ कोई भी आपराधिक रिकार्ड नहीं है।
क्या डी के तीन भाई आएंगे?
एक बार फिर खबर आई कि हिंदुस्तानी अंडरवल्र्ड के बेताज बादशाह दाऊद इब्राहिम के एक भाई मुस्तकिम को दुबई में इंटरपोल ने गिरफ्तार कर लिया है और उसे भारत के हवाले किया जा रहा है। इस खबर ने न केवल पूरे देश की मीडिया बल्कि खुफिया एजंसियों में भी हंगामा हो गया। चारों तरफ इस खबर की पुष्टि के लिए होड़ सी मच गई लेकिन शाम होते न होते पूरा मामला ही फुस्स साबित हो गया। लेकिन इस खबर के पीछे भी एक खबर छुपी थी।
पता चला है कि मुस्तकिम का अपने भाईयों के साथ अधिक कोई अच्छा रिश्ता तो नहीं ही है। वह कराची से बाहर भाग निकलने के लिए छटपटा रहा है लेकिन दाऊद के साए से बाहर निकलना उसके लिए संभव नहीं हो रहा है। वह जब तक दाऊद को यह कह कर परेशानी में डाल देता है कि वह भारत लौट रहा है। इस बार भी ऐसा ही कुछ हुआ था, नाराज मुस्तकिम ने यह कह दिया और उसकी जानकारी मुंबई के एक वकील को दे दी, उस वकील से मीडिया के एक हिस्से को ये जानकारी आ पहुंची और फिर जो हुआ... सबके सामने ही था।
यह बात और है कि दाऊद अपने बाकी भाईयों को भी भारत भेजना चाहता ही है क्योंकि दाऊद और उसके परिवार के लिए अब पाकिस्तान में जीना लगातार संकट भरा होता जा रहा है।
खुफिया अधिकारी दाऊद के इस कदम के कई कारण बताते हैं -
कारण 1 - खुफिया सूत्रों द्वारा बताया जा रहा है कि दाऊद के छोटे भाई मुस्तकिम को कैंसर है और उसका इलाज पाकिस्तान के बेहद तनावपूर्ण माहौल में करवाना संभव नहीं है। उसका इलाज करवाने की कोशिश सऊदी अरब और दुबई में भी की गई लेकिन वहां उतने अच्छे डॉक्टरों और चिकित्सा व्यवस्था नहीं मिली, जितनी इस इलाज के लिए जरूरी है।
कारण 2 - पाकिस्तान की नई सरकार पर अमरीका के बढ़ते दबाव के कारण दाऊद परेशान है। उसे डर है कि कहीं ऐसा न हो जाए कि आईएसआई का दबाव तंत्र नई लोकतांत्रिक व्यवस्था पर दबाव डालने में नाकाम रहे और उसे सपरिवार पकड़ कर भारतीय सुरक्षा एजंसियों के हवाले न कर दे। ऐसे में उसके लिए यही बेहतर होगा कि पहले ही भाईयों को भारत भेज दे। यही कारण है कि दाऊद ने पाकिस्तान समेत भारत में भी अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा बेच कर उसे नकदी में परिवर्तित करना शुरू कर दिया है। यह रकम वह युरोपीय और अफ्रीकी देशों में सुरक्षित ठिकानों पर लगाने में जुटा है।
कारण 3 - हो सकता है कि मुस्तकिम के अलावा नूरा को भी भारत वापस भेजा जाए। नूरा और मुस्तकिम को वापस भारत भेजने के पीछे यह भी कारण हो सकता है कि नूरा यहां आकर भारतीय कामकाज अपने हाथ में लेगा। मुस्तकिम के खिलाफ आज तक कोई मामला पुलिस में दर्ज न होने के कारण, उसे पुलिस जेल की सलाखों के पीछे भी ठूंस नहीं सकेगी।
कारण 4 - इकबाल कासकर जितनी आसानी से भारतीय जेलों के बाहर आ गया और कामकाज में जुट गया है, उससे दाऊद को लगता है कि बाकी भाईयों के खिलाफ भी पुलिस व खुफिया एजंसियां कुछ कर नहीं पाएंगी। दाऊद ने अपने भाई इकबाल कासकर को पहले ही भारत भेज कर पक्का कर लिया कि यहां की पुलिस, खुफिया एजंसियां और अदालतें किसी हाल में उसके भाईयों को लंबे समय तक सलाखों के पीछे रखने में सक्षम नहीं हैं, तबसे ही यह योजना बनाई जा रही थी कि बाकी भाईयों को भी सपरिवार वापस मुंबई भेजा जाए।
कारण 5 - मुंबई पुलिस के अलावा भारतीय राजनीति के कई बड़े नाम ऐसे हैं जो दाऊद को लगातार सहयोग देते आए हैं। एक विख्यात वकील ने तो कुछ समय पहले सरकार से दाऊद के समर्पण को लेकर मध्यस्थता की थी लेकिन दाऊद की शर्तें सुनने के बाद भारत सरकार के नुमार्इंदों ने साफ इंकार कर दिया था। दाऊद के ये करीबी लोग ही उसके परिवार की वापसी पर उन्हें स्थापित करने में सहयोग करेंगे।
कारण 6 - दाऊद के बाकी भाईयों के खिलाफ कोई भी ऐसा मामला भारतीय अदालतों में विचाराधीन नहीं है, जिसमें उन्हें बड़ी सजा हो पाए। इनमें से सिर्फ अनीस और नूरा ही ऐसे हैं, जिनके खिलाफ कुछ मामले दर्ज हैं लेकिन वे भी अदालत में साबित करना मुंबई पुलिस के लिए बिल्कुल असंभव काम होगा। अब अनीस को भारत वापस लौटना नहीं है क्योंकि उसकी तो मौत हो चुकि है।
कारण 7 - पुलिस अधिकारियों का मानना है कि सिर्फ संपत्ति कारोबार संभालने के लिए अकेले इकबाल का मुंबई में होना नाकाफी है। उसके अलावा भी बहुतेरे कामकाज हैं, जिन्हें संभालने के लिए इकबाल को परिवार का सहारा चाहिए। ये कारोबार हथियारों और नशे की तस्करी के अलावा फिल्मों में निवेश का भी है।
बता दें कि जुलाई 2003 के अंतिम सप्ताह में यह खबर भी अखबारों की सुर्खियां बनी थी कि दाऊद ने अपने भाई हुमायूं को कुछ समय के लिए चुपचाप भारतीय सरहदों में भेज कर काफी लोगों से मुलाकातें कर वतन वापसी के रास्ते तलाशे थे। वह भी भारतीय पुलिस के समक्ष समर्पण करने का इरादा रखता था। चूंकि वह मुंबई बमकांड जैसे मामलों में वांछित न था, इसलिए उसके भारत लौटने में कोई परेशानी न थी। छोटे-मोटे मामलों में अगर वह गिरफ्तार हो भी जाता तो जल्द ही जमानत पर बाहर भी आ जाता।
पता चला है कि हुमायूं कराची से काठमांडू आया था, वहां से बरास्ते सड़क मार्ग उत्तरप्रदेश होकर वह मुंबई के पास तक आ पहुंचा था। चूंकि इकबाल कासकर की वापसी 19 फरवरी 2003 को हो चुकि थी, इसलिए हुमायूं के लिए भी वही तरीका आजमाने की कोशिश की जा रही थी।
कहते हैं कि खुद दाऊद भी यही चाहता है कि वह भारत लौटे लेकिन उसे डर है कि आईएसआई इस मंसूबे को कभी पूरा नहीं होने देगी। आईएसआई के लिए दाऊद ऐसा मोहरा है, जिसके जरिए भारत में लगातार विध्वंस कर सकती है। दाऊद के देशव्यापी नेटवर्क को आईएसआई कतई खोना नहीं चाहेगी।
पता चला है कि मुस्तकिम का अपने भाईयों के साथ अधिक कोई अच्छा रिश्ता तो नहीं ही है। वह कराची से बाहर भाग निकलने के लिए छटपटा रहा है लेकिन दाऊद के साए से बाहर निकलना उसके लिए संभव नहीं हो रहा है। वह जब तक दाऊद को यह कह कर परेशानी में डाल देता है कि वह भारत लौट रहा है। इस बार भी ऐसा ही कुछ हुआ था, नाराज मुस्तकिम ने यह कह दिया और उसकी जानकारी मुंबई के एक वकील को दे दी, उस वकील से मीडिया के एक हिस्से को ये जानकारी आ पहुंची और फिर जो हुआ... सबके सामने ही था।
यह बात और है कि दाऊद अपने बाकी भाईयों को भी भारत भेजना चाहता ही है क्योंकि दाऊद और उसके परिवार के लिए अब पाकिस्तान में जीना लगातार संकट भरा होता जा रहा है।
खुफिया अधिकारी दाऊद के इस कदम के कई कारण बताते हैं -
कारण 1 - खुफिया सूत्रों द्वारा बताया जा रहा है कि दाऊद के छोटे भाई मुस्तकिम को कैंसर है और उसका इलाज पाकिस्तान के बेहद तनावपूर्ण माहौल में करवाना संभव नहीं है। उसका इलाज करवाने की कोशिश सऊदी अरब और दुबई में भी की गई लेकिन वहां उतने अच्छे डॉक्टरों और चिकित्सा व्यवस्था नहीं मिली, जितनी इस इलाज के लिए जरूरी है।
कारण 2 - पाकिस्तान की नई सरकार पर अमरीका के बढ़ते दबाव के कारण दाऊद परेशान है। उसे डर है कि कहीं ऐसा न हो जाए कि आईएसआई का दबाव तंत्र नई लोकतांत्रिक व्यवस्था पर दबाव डालने में नाकाम रहे और उसे सपरिवार पकड़ कर भारतीय सुरक्षा एजंसियों के हवाले न कर दे। ऐसे में उसके लिए यही बेहतर होगा कि पहले ही भाईयों को भारत भेज दे। यही कारण है कि दाऊद ने पाकिस्तान समेत भारत में भी अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा बेच कर उसे नकदी में परिवर्तित करना शुरू कर दिया है। यह रकम वह युरोपीय और अफ्रीकी देशों में सुरक्षित ठिकानों पर लगाने में जुटा है।
कारण 3 - हो सकता है कि मुस्तकिम के अलावा नूरा को भी भारत वापस भेजा जाए। नूरा और मुस्तकिम को वापस भारत भेजने के पीछे यह भी कारण हो सकता है कि नूरा यहां आकर भारतीय कामकाज अपने हाथ में लेगा। मुस्तकिम के खिलाफ आज तक कोई मामला पुलिस में दर्ज न होने के कारण, उसे पुलिस जेल की सलाखों के पीछे भी ठूंस नहीं सकेगी।
कारण 4 - इकबाल कासकर जितनी आसानी से भारतीय जेलों के बाहर आ गया और कामकाज में जुट गया है, उससे दाऊद को लगता है कि बाकी भाईयों के खिलाफ भी पुलिस व खुफिया एजंसियां कुछ कर नहीं पाएंगी। दाऊद ने अपने भाई इकबाल कासकर को पहले ही भारत भेज कर पक्का कर लिया कि यहां की पुलिस, खुफिया एजंसियां और अदालतें किसी हाल में उसके भाईयों को लंबे समय तक सलाखों के पीछे रखने में सक्षम नहीं हैं, तबसे ही यह योजना बनाई जा रही थी कि बाकी भाईयों को भी सपरिवार वापस मुंबई भेजा जाए।
कारण 5 - मुंबई पुलिस के अलावा भारतीय राजनीति के कई बड़े नाम ऐसे हैं जो दाऊद को लगातार सहयोग देते आए हैं। एक विख्यात वकील ने तो कुछ समय पहले सरकार से दाऊद के समर्पण को लेकर मध्यस्थता की थी लेकिन दाऊद की शर्तें सुनने के बाद भारत सरकार के नुमार्इंदों ने साफ इंकार कर दिया था। दाऊद के ये करीबी लोग ही उसके परिवार की वापसी पर उन्हें स्थापित करने में सहयोग करेंगे।
कारण 6 - दाऊद के बाकी भाईयों के खिलाफ कोई भी ऐसा मामला भारतीय अदालतों में विचाराधीन नहीं है, जिसमें उन्हें बड़ी सजा हो पाए। इनमें से सिर्फ अनीस और नूरा ही ऐसे हैं, जिनके खिलाफ कुछ मामले दर्ज हैं लेकिन वे भी अदालत में साबित करना मुंबई पुलिस के लिए बिल्कुल असंभव काम होगा। अब अनीस को भारत वापस लौटना नहीं है क्योंकि उसकी तो मौत हो चुकि है।
कारण 7 - पुलिस अधिकारियों का मानना है कि सिर्फ संपत्ति कारोबार संभालने के लिए अकेले इकबाल का मुंबई में होना नाकाफी है। उसके अलावा भी बहुतेरे कामकाज हैं, जिन्हें संभालने के लिए इकबाल को परिवार का सहारा चाहिए। ये कारोबार हथियारों और नशे की तस्करी के अलावा फिल्मों में निवेश का भी है।
बता दें कि जुलाई 2003 के अंतिम सप्ताह में यह खबर भी अखबारों की सुर्खियां बनी थी कि दाऊद ने अपने भाई हुमायूं को कुछ समय के लिए चुपचाप भारतीय सरहदों में भेज कर काफी लोगों से मुलाकातें कर वतन वापसी के रास्ते तलाशे थे। वह भी भारतीय पुलिस के समक्ष समर्पण करने का इरादा रखता था। चूंकि वह मुंबई बमकांड जैसे मामलों में वांछित न था, इसलिए उसके भारत लौटने में कोई परेशानी न थी। छोटे-मोटे मामलों में अगर वह गिरफ्तार हो भी जाता तो जल्द ही जमानत पर बाहर भी आ जाता।
पता चला है कि हुमायूं कराची से काठमांडू आया था, वहां से बरास्ते सड़क मार्ग उत्तरप्रदेश होकर वह मुंबई के पास तक आ पहुंचा था। चूंकि इकबाल कासकर की वापसी 19 फरवरी 2003 को हो चुकि थी, इसलिए हुमायूं के लिए भी वही तरीका आजमाने की कोशिश की जा रही थी।
कहते हैं कि खुद दाऊद भी यही चाहता है कि वह भारत लौटे लेकिन उसे डर है कि आईएसआई इस मंसूबे को कभी पूरा नहीं होने देगी। आईएसआई के लिए दाऊद ऐसा मोहरा है, जिसके जरिए भारत में लगातार विध्वंस कर सकती है। दाऊद के देशव्यापी नेटवर्क को आईएसआई कतई खोना नहीं चाहेगी।
दाऊद के भाईयों में कौन करता है क्या
एक तरफ जहां दाऊद के लिए पाकिस्तान में समस्याएं बढ़ती ही जा रही हैं, वहीं दूसरी तरफ भारतीय खुफिया एजंसियां और पुलिस मान बैठे हैं कि जल्द ही पूरा खानदान उनके हत्थे चढ़ने वाला है। सात भाईयों और तीन बहनों के भरे-पूरे परिवार में से एक दाऊद के बाकी भाईयों के बारे में काफी कम जानकारी लोगों को है।
साबिर इब्राहिम - मुंबई पुलिस के हवलदार इब्राहिम कासकर का ये सबसे बड़ा बेटा और दाऊद से बड़ा भाई 80 के दशक में गिरोह युद्ध का शिकार बन कर मारा जा चुका है। पठान गिरोहों से हुई लड़ाई का दाऊद गिरोह का सबसे पहला और बड़ा शिकार साबिर ही बना था। उसे मारने वाले आलमजेब और शाहजादा पठान की हत्याएं दाऊद ने कीं। इसी हत्या ने पूरी मुंबई को रक्त से नहला कर रख दिया था।
दाऊद इब्राहिम - 80 के दशक से हिंदुस्तानी माफिया का सबसे बड़ा सरगना बना हुआ है इब्राहिम कासकर का दूसरा बेटा। दाऊद हजारों करोड़ रुपए का अवैध साम्राज्य टेलीफोन पर संभालता है और पाकिस्तान, तमाम खाड़ी देशों और बांग्लादेश में खासा जाल बिछा रखा है। एक आकलन के मुताबिक महज हिंदुस्तान में ही वह सालाना 1 हजार करोड़ रुपए हफ्ते में कमाता है।
अनीस इब्राहिम - दाऊद के कामकाज में सहयोग करता है। उसे 19 जनवरी 1996 को बहरीन में अली बुदेश और एजाज पठान की सूचना पर कुछ और गुंडों सहित गिरफ्तार हुआ था लेकिन ऊंचे राजनीतिक रसूख तथा आईएसआई के दबाव में अनीस को न केवल रिहा कर दिया बल्कि चुपचाप इस्लामाबाद भी पहुंचा दिया था। अनीस को नशे की भी लत रही है। उसे 500 करोड़ रुपए की कराची की एक जमीन के सौदे के चक्कर में पाकिस्तान के एक नामी गिरोह सरगना रहमान डकैत ने मार दिया था।
नूरा इब्राहिम - दाऊद का यह भाई फिल्मों को लेकर काफी उत्साहित रहता है। वह लंबे समय से फिल्मों के फाईनांस का काम देख रहा है। नूर कासकर नाम से वह एक-दो फिल्मों में गीत भी लिख चुका है। यही नहीं, फिल्मोद्योग से जुड़ी कोई हसीना उसकी नजर में चढ़ जाती थी तो उसे कभी बख्शता नहीं था। खाड़ी देशों में वह फिल्मों की होम वीडियो और ओवरसीज राईट्स लेने वाली कंपनियां भी चलाता है।
इकबाल इब्राहिम - इकबाल पर कोई भी ऐसा मामला दर्ज नहीं है जो गंभीर अपराध की श्रेणी में आता हो। यही कारण है कि वह हिंदुस्तान आ पहुंचा और उसने जैसा चाहा, वैसा ही उसके साथ हुआ। अब वह आजाद है और मजे से संपत्तियां खरीद रहा है, इमारतें तामीर करवा रहा है।
मुस्तकिम इब्राहिम - मुस्तकिम पर भी कोई गंभीर मामला दर्ज न से मुंबई पुलिस के लिए उसे गिरफ्तार करके लंबे समय तक हिरासत में रखना संभव नहीं है। वह दाऊद के कारोबार में कोई बड़ा हाथ नहीं है। पिछले कुछ समय में उसने गिरोह के लिए हवाला का कारोबार देखना जरूर शुरू किया है लेकिन इसकी पुष्टि पुलिस अधिकारी नहीं करते हैं।
हुमायूं इब्राहिम - दाऊद के सात भाईयों में यह सबसे छोटा है। वह अपने भाई की कमाई पर जीने के अलावा कुछ और नहीं करता है। उसके खिलाफ कोई भी आपराधिक रिकार्ड नहीं है।
क्या डी के तीन भाई आएंगे?
विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि केवल मुस्तकिम ही नहीं बल्कि उसके साथ नूरा और हुमायूं भी भारत भेजे जा सकते हैं। उन्हें भारत भेजने की वजह ये नहीं कि वे पाकिस्तान या दुबई में रहते हुए आजिज़ आ चुके हैं बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था में आई तेजी का फायदा उठाते हुए अपनी अवैध कमाई सफेद करने और वैध कारोबार खड़ा करने का इरादा रखते हैं।
कहा जा रहा है कि हुमायूं, मुस्तकिम और नूरा के परिवार दुबई में रहते हैं। कहते हैं कि नूरा और मुस्तकिम को डी-कंपनी के लिए हवाला कारोबार भी देखना होता है, इसलिए दोनों काफी वक्त तक दुबई में ही रहते हैं। उनका कुछ समय पाकिस्तान के शहर कराची में भी कटता है।
पुलिस अधिकारियों का दावा है कि दाऊद के इन तीनों भाईयों और उनके परिवार के पास जो पाक पासपोर्ट मौजूद हैं, उनके जरिए वे भारत नहीं आ सकते हैं। उनके भारतीय पासपोर्ट की वैधता 90 के दशक में खत्म हो चुकि है। इसके कारण अब वे खुद को प्रत्यर्पित करवाने का विकल्प देख रहे हैं।
पता चला है कि दुबई स्थित भारतीय दूतावास में डी-कंपनी के सदस्यों ने यह व्यवस्था करवाई है कि इन तीनों भाईयों को पहले भेजा जाए। फिर उनके परिवारों को भी प्रत्यर्पित करवाया जाएगा।
बता दें कि इकबाल कासकर भले ही मुंबई आ पहुंचा हो, उसके साथ पूरा परिवार नहीं लौटा। वे अभी भी दुबई में रहते हैं। यही कारण है कि बाकी भाईयों के परिवार भी कुछ समय के लिए वहां रह सकते हैं।
यह भी सूचना मिली है कि डी-कंपनी के मुंबई स्थित सदस्यों ने कुछ वकीलों से बातचीत करके कानूनी पहलुओं की जानकारी भी ली है कि पासपोर्ट की वैधता समाप्त होने के बावजूद किसी अन्य देश में अवैध रूप से रहने के कारण उन पर क्या आरोप आयद हो सकते हैं और उन्हें क्या सजा हो सकती है? कानूनी सलाह काफी हद तक उनके पक्ष में होने के कारण वे सभी यहां आने की स्थिति में हैं।
एक बार मुंबई आने के बाद तीनों भाई का इकबाल के साथ मिल कर पूरी दुनिया में फैली अथाह संपत्ति के जरिए देश में ही वैध कारोबार स्थापित करना चुटकियां बजाने सरीखी ही बात रह जाएगी।
मुस्तकिन-हुमायूं का आना टाला पुलिस टकराव से
कहा जा रहा है कि हुमायूं, मुस्तकिम और नूरा के परिवार दुबई में रहते हैं। कहते हैं कि नूरा और मुस्तकिम को डी-कंपनी के लिए हवाला कारोबार भी देखना होता है, इसलिए दोनों काफी वक्त तक दुबई में ही रहते हैं। उनका कुछ समय पाकिस्तान के शहर कराची में भी कटता है।
पुलिस अधिकारियों का दावा है कि दाऊद के इन तीनों भाईयों और उनके परिवार के पास जो पाक पासपोर्ट मौजूद हैं, उनके जरिए वे भारत नहीं आ सकते हैं। उनके भारतीय पासपोर्ट की वैधता 90 के दशक में खत्म हो चुकि है। इसके कारण अब वे खुद को प्रत्यर्पित करवाने का विकल्प देख रहे हैं।
पता चला है कि दुबई स्थित भारतीय दूतावास में डी-कंपनी के सदस्यों ने यह व्यवस्था करवाई है कि इन तीनों भाईयों को पहले भेजा जाए। फिर उनके परिवारों को भी प्रत्यर्पित करवाया जाएगा।
बता दें कि इकबाल कासकर भले ही मुंबई आ पहुंचा हो, उसके साथ पूरा परिवार नहीं लौटा। वे अभी भी दुबई में रहते हैं। यही कारण है कि बाकी भाईयों के परिवार भी कुछ समय के लिए वहां रह सकते हैं।
यह भी सूचना मिली है कि डी-कंपनी के मुंबई स्थित सदस्यों ने कुछ वकीलों से बातचीत करके कानूनी पहलुओं की जानकारी भी ली है कि पासपोर्ट की वैधता समाप्त होने के बावजूद किसी अन्य देश में अवैध रूप से रहने के कारण उन पर क्या आरोप आयद हो सकते हैं और उन्हें क्या सजा हो सकती है? कानूनी सलाह काफी हद तक उनके पक्ष में होने के कारण वे सभी यहां आने की स्थिति में हैं।
एक बार मुंबई आने के बाद तीनों भाई का इकबाल के साथ मिल कर पूरी दुनिया में फैली अथाह संपत्ति के जरिए देश में ही वैध कारोबार स्थापित करना चुटकियां बजाने सरीखी ही बात रह जाएगी।
मुस्तकिन-हुमायूं का आना टाला पुलिस टकराव से
डी-कंपनी के सीईओ और विश्व के सबसे बड़े भगोड़े आतंकी नेटवर्क चलाने वाले, मुंबई माफिया के बेताज बादशाह दाऊद इब्राहिम के दो भाईयों मुस्तकिन और हुमायूं के भारत आने की तारीख को लेकर फिर एक बार अनिश्चय का माहौल पैदा हो गया है।
बता दें कि मुस्तकिन और हुमायूं पाक पासपोर्ट पर दुबई में रहते हैं। 9/11 डब्ल्यूटीसी ध्वंस के बाद दुबई में थोड़ी सख्ती हुई थी लेकिन 26-11 के मुंबई आतंकी हमले के बाद खाड़ी देशों में डी-कंपनी के लिए भी सांस लेना दूभर होता जा रहा था। इस कारण जितने लोगों पर मामले न बन सकें, या जो साल-दो साल में छूट सकते हैं, उन सभी को भारत भेजने की तैयारी की जा रही है।
पाकिस्तान में तमाम राजनीतिकों और अफसरान के साथ भले ही डी-कंपनी के अच्छे रिश्ते हों, आईएसआई के दबाव के चलते दाऊद और उसके भाई खुले तौर पर काम नहीं कर पाते हैं, इसके कारण तय किया जा रहा है कि जितने अधिकतम लोग हो सकें, उनको तुरंत भारत भेज दिया जाए।
खुफिया सूत्रों की मानें तो इन दोनों के साथ छोटा शकील के भाई अनवर का आना भी तय था।
पता चला है कि जब तक प्रत्यर्पण नहीं हो जाता है, तब तक इन तीनों को पाकिस्तान आकर रहने का फरमान दाऊद ने सुनाया था। इसके पीछे कारण बताया जाता है कि दुबई सरकार ने अब डी-कंपनी के प्रति बरती जा रही अब तक की नरमी की पॉलिसी बदल दी है।
मुस्तकिन और हुमायूं के भारत आने की तारीख पहले तो दिसंबर 2009 में तय थी लेकिन भारत में बने हालात के कारण उनका आना मुल्तवी कर दिया।
सूत्रों के मुताबिक मुस्तकिन और हुमायूं के भारत आने को लेकर इसलिए तय हुआ क्योंकि दोनों के खिलाफ न तो 12 मार्च 1993 बम धमाकों में हाथ होने को लेकर मुकदमा कायम किया गया है, न ही उनके खिलाफ और किसी तरह के मामले पुलिस में दर्ज हैं।
उनकी गिरफ्तारी अगर हो सकती है तो महज इसलिए कि उन्होंने फर्जी दस्तावेजों पर विदेश यात्रा की। इसके चलते वे आसानी से बच जाएंगे। उनको अगर सजा भी होती है तो वह कुछ महीनों की ही होगी।
पता चला है कि दोनों को कराची से नकली पासपोर्टों पर पहले दुबई भेजा जाता। वहां अपने ऊंजे संपर्क सूत्रों के जरिए पुलिस में उनकी गिरफ्तारी दिखाई जाती। उसके बाद उन्हें आधिकारिक रूप से भारत प्रत्यर्पित करते, तो उनके साथ किसी किस्म की जोर-जबरदस्ती भी पुलिस नहीं कर पाती।
स्याह सायों के संसार में यह खबर आम है कि मुस्तकिन और हुमायूं के भारत आने को लेकर इसलिए कराची में बैठे डॉन के मन में डर पैदा हो गया क्योंकि मुंबई पुलिस में अफसरों के बीच में खासा घमासान मचा हुआ है। दाऊद को डर सताने लगा कि कहीं ऐसा न हो जाए कि मुस्तकिन और हुमायूं को मुंबई भेज दिया और वे पुलिस अफसरों की आपसी खींचतान के बीच घुन की तरह पिस जाएं।
पता चला है कि पिछले साल भी मुस्तकिन और हुमायूं के भारत आने की बात तय हुई थी लेकिन उस समय भी उनके आने की तारीख दाऊद ने कम से कम 3 माह आगे कर दी थी, इस बीच मुंबई पुलिस में अफसरों के खेल का ऊंट किस करवट बैठता है, उसे देख कर दोनों के भारत वापसी का निर्णय लेना तय हुआ था।
मुंबई के कुछ वकीलों से डी-कंपनी के सिपहसालारों ने मिल कर चर्चा भी कर ली है कि कानूनी तौर पर इन तीनों के भारत वापस आने पर क्या हालात पैदा होंगे, उनको किन आरोंपो में गिरफ्तार किया जा सकता है, उन्हें अधिकतम कितने साल की सजा हो सकती है। यह भी बताया जा रहा है कि एक वकील तो इन तीनों से मिलने के लिए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के पहले ही गया था।
इन तीनों को भारत भेजने की असली वजह यह है कि उन्हें रीयल एस्टेट बाजार के गिरने पर यहां निवेश कर चांदी काटने की योजना पर अमल करने को कहा है। इसके अलावा हीरे-जवाहरात और फिल्म उद्योग में निवेश करने का जिम्मा भी सौंपा गया है।
डी-कंपनी ने तय किया है कि भारत में धाक बनाए रखने के लिए पुराने तौर-तरीकों को आजमाते जरूर रहेंगे लेकिन पूरा कारोबार ऐसे क्षेत्रों में किया जाएगा, जो कि पाक-साफ होते हैं।
जिस तरह आरिफ मिर्जा बेग को बजरिए श्रीलंका भेजा गया, जिस तरह वह चीन के शहर शांगजाऊ में आराम से रहा, लेकिन भारत आकर गिरोह के सारे काम देखने थे, और जितनी आसानी से यह सब हो गया, उसके कारण डी-कंपनी ने तय किया कि मुस्तकिन और हुमायूं को भी भेजा जाए। दोनों का भारत आना हो पाता, उसके पहले ही पूर्व पुलिस आयुक्त हसन गफूर का विवादास्पद इंटरव्यू छप गया, उसके पहले ही 26-11 के आतंकी हमले में मारे गए अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक कामटे की पत्नी विनीता कामटे की लिखी पुस्तक सामने आ गई और कुछ पुलिस अफसरों की न केवल इज्जत बल्कि नौकरी पर भी बन आई। इसके बाद लॉबी-लॉबी का खेल पुलिस मकहमे में शुरू हो गया और दाउद को अपने भाईयों मुस्तकिन और हुमायूं के भारत भेजने का प्लान कुछ समय के लिए मुत्लवी करना पड़ा।
इसके पहले इकबाल कासकर, तारिक परवीन, रियाज भईया, खोटा शकील, समेत कुल 10 लोगों का पहला जत्था भेजा गया था। उनको अब समाज में अलग-अलग कामों के लिए स्थापित किया जा चुका है।
बता दें कि मुस्तकिन और हुमायूं पाक पासपोर्ट पर दुबई में रहते हैं। 9/11 डब्ल्यूटीसी ध्वंस के बाद दुबई में थोड़ी सख्ती हुई थी लेकिन 26-11 के मुंबई आतंकी हमले के बाद खाड़ी देशों में डी-कंपनी के लिए भी सांस लेना दूभर होता जा रहा था। इस कारण जितने लोगों पर मामले न बन सकें, या जो साल-दो साल में छूट सकते हैं, उन सभी को भारत भेजने की तैयारी की जा रही है।
पाकिस्तान में तमाम राजनीतिकों और अफसरान के साथ भले ही डी-कंपनी के अच्छे रिश्ते हों, आईएसआई के दबाव के चलते दाऊद और उसके भाई खुले तौर पर काम नहीं कर पाते हैं, इसके कारण तय किया जा रहा है कि जितने अधिकतम लोग हो सकें, उनको तुरंत भारत भेज दिया जाए।
खुफिया सूत्रों की मानें तो इन दोनों के साथ छोटा शकील के भाई अनवर का आना भी तय था।
पता चला है कि जब तक प्रत्यर्पण नहीं हो जाता है, तब तक इन तीनों को पाकिस्तान आकर रहने का फरमान दाऊद ने सुनाया था। इसके पीछे कारण बताया जाता है कि दुबई सरकार ने अब डी-कंपनी के प्रति बरती जा रही अब तक की नरमी की पॉलिसी बदल दी है।
मुस्तकिन और हुमायूं के भारत आने की तारीख पहले तो दिसंबर 2009 में तय थी लेकिन भारत में बने हालात के कारण उनका आना मुल्तवी कर दिया।
सूत्रों के मुताबिक मुस्तकिन और हुमायूं के भारत आने को लेकर इसलिए तय हुआ क्योंकि दोनों के खिलाफ न तो 12 मार्च 1993 बम धमाकों में हाथ होने को लेकर मुकदमा कायम किया गया है, न ही उनके खिलाफ और किसी तरह के मामले पुलिस में दर्ज हैं।
उनकी गिरफ्तारी अगर हो सकती है तो महज इसलिए कि उन्होंने फर्जी दस्तावेजों पर विदेश यात्रा की। इसके चलते वे आसानी से बच जाएंगे। उनको अगर सजा भी होती है तो वह कुछ महीनों की ही होगी।
पता चला है कि दोनों को कराची से नकली पासपोर्टों पर पहले दुबई भेजा जाता। वहां अपने ऊंजे संपर्क सूत्रों के जरिए पुलिस में उनकी गिरफ्तारी दिखाई जाती। उसके बाद उन्हें आधिकारिक रूप से भारत प्रत्यर्पित करते, तो उनके साथ किसी किस्म की जोर-जबरदस्ती भी पुलिस नहीं कर पाती।
स्याह सायों के संसार में यह खबर आम है कि मुस्तकिन और हुमायूं के भारत आने को लेकर इसलिए कराची में बैठे डॉन के मन में डर पैदा हो गया क्योंकि मुंबई पुलिस में अफसरों के बीच में खासा घमासान मचा हुआ है। दाऊद को डर सताने लगा कि कहीं ऐसा न हो जाए कि मुस्तकिन और हुमायूं को मुंबई भेज दिया और वे पुलिस अफसरों की आपसी खींचतान के बीच घुन की तरह पिस जाएं।
पता चला है कि पिछले साल भी मुस्तकिन और हुमायूं के भारत आने की बात तय हुई थी लेकिन उस समय भी उनके आने की तारीख दाऊद ने कम से कम 3 माह आगे कर दी थी, इस बीच मुंबई पुलिस में अफसरों के खेल का ऊंट किस करवट बैठता है, उसे देख कर दोनों के भारत वापसी का निर्णय लेना तय हुआ था।
मुंबई के कुछ वकीलों से डी-कंपनी के सिपहसालारों ने मिल कर चर्चा भी कर ली है कि कानूनी तौर पर इन तीनों के भारत वापस आने पर क्या हालात पैदा होंगे, उनको किन आरोंपो में गिरफ्तार किया जा सकता है, उन्हें अधिकतम कितने साल की सजा हो सकती है। यह भी बताया जा रहा है कि एक वकील तो इन तीनों से मिलने के लिए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के पहले ही गया था।
इन तीनों को भारत भेजने की असली वजह यह है कि उन्हें रीयल एस्टेट बाजार के गिरने पर यहां निवेश कर चांदी काटने की योजना पर अमल करने को कहा है। इसके अलावा हीरे-जवाहरात और फिल्म उद्योग में निवेश करने का जिम्मा भी सौंपा गया है।
डी-कंपनी ने तय किया है कि भारत में धाक बनाए रखने के लिए पुराने तौर-तरीकों को आजमाते जरूर रहेंगे लेकिन पूरा कारोबार ऐसे क्षेत्रों में किया जाएगा, जो कि पाक-साफ होते हैं।
जिस तरह आरिफ मिर्जा बेग को बजरिए श्रीलंका भेजा गया, जिस तरह वह चीन के शहर शांगजाऊ में आराम से रहा, लेकिन भारत आकर गिरोह के सारे काम देखने थे, और जितनी आसानी से यह सब हो गया, उसके कारण डी-कंपनी ने तय किया कि मुस्तकिन और हुमायूं को भी भेजा जाए। दोनों का भारत आना हो पाता, उसके पहले ही पूर्व पुलिस आयुक्त हसन गफूर का विवादास्पद इंटरव्यू छप गया, उसके पहले ही 26-11 के आतंकी हमले में मारे गए अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक कामटे की पत्नी विनीता कामटे की लिखी पुस्तक सामने आ गई और कुछ पुलिस अफसरों की न केवल इज्जत बल्कि नौकरी पर भी बन आई। इसके बाद लॉबी-लॉबी का खेल पुलिस मकहमे में शुरू हो गया और दाउद को अपने भाईयों मुस्तकिन और हुमायूं के भारत भेजने का प्लान कुछ समय के लिए मुत्लवी करना पड़ा।
इसके पहले इकबाल कासकर, तारिक परवीन, रियाज भईया, खोटा शकील, समेत कुल 10 लोगों का पहला जत्था भेजा गया था। उनको अब समाज में अलग-अलग कामों के लिए स्थापित किया जा चुका है।
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