मरने के बाद हमारे सभी अंगों को खाक में मिल जाना है। कितना अच्छा हो कि मरने के बाद ये अंग किसी को जीवनदान दे सकें। अगर धार्मिक अंधविश्वास आपको ऐसा करने से रोकते हैं तो महान ऋषि दधीचि को याद कीजिए, जिन्होंने समाज की भलाई के लिए अपनी हड्ड़ियां दान कर दी थीं। उन जैसा धर्मज्ञ अगर ऐसा कर चुका है तो आम लोगों को तो डरने की जरूरत ही नहीं है। सामने आइए और खुलकर अंगदान कीजिए, इससे किसी को नई जिंदगी मिल सकती है। एक्सपर्ट्स से बात करके अंगदान की पूरी प्रक्रिया के बारे में बता रहे हैं प्रभात गौड़:
क्या है अंगदान
अंगदान एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें एक इंसान (मृत और कभी-कभी जीवित भी) से स्वस्थ अंगों और टिशूज़ को ले लिया जाता है और फिर इन अंगों को किसी दूसरे जरूरतमंद शख्स में ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है। इस तरह अंगदान से किसी दूसरे शख्स की जिंदगी को बचाया जा सकता है। एक शख्स द्वारा किए गए अंगदान से 50 जरूरतमंद लोगों की मदद हो सकती है।
किन-किन अंगों का दान
हमारे देश में लिवर, किडनी और हार्ट के ट्रांसप्लांट होने की सुविधा है। कुछ मामलों में पैनक्रियाज भी ट्रांसप्लांट हो जाते हैं, लेकिन इनके अलावा दूसरे अंगों का भी दान किया जा सकता है:
- अंदरूनी अंग मसलन गुर्दे (किडनी), दिल (हार्ट), यकृत (लिवर), अग्नाशय (पैनक्रियाज), छोटी आंत (इन्टेस्टाइन) और फेफड़े (लंग्स)
- त्वचा (स्किन)
- बोन और बोन मैरो
- आंखें (कॉर्निया)
दो तरह के अंगदान
- एक होता है अंगदान और दूसरा होता है टिशू का दान। अंगदान के तहत आता है किडनी, लंग्स, लिवर, हार्ट, इंटेस्टाइन, पैनक्रियाज आदि तमाम अंदरूनी अंगों का दान। टिशू दान के तहत मुख्यत: आंखों, हड्डी और स्किन का दान आता है।
- ज्यादातर अंगदान तब होते हैं, जब इंसान की मौत हो जाती है लेकिन कुछ अंग और टिशू इंसान के जिंदा रहते भी दान किए जा सकते हैं।
- जीवित लोगों द्वारा दान किया जाने वाला सबसे आम अंग है किडनी, क्योंकि दान करने वाला शख्स एक ही किडनी के साथ सामान्य जिंदगी जी सकता है। वैसे भी जो किडनी जीवित शख्स से लेकर ट्रांसप्लांट की जाती है, उसके काम करने की क्षमता उस किडनी से ज्यादा होती है, जो किसी मृत शरीर से लेकर लगाई जाती है। भारत में होने वाले ज्यादातर किडनी ट्रांसप्लांट के केस जिंदा डोनर द्वारा ही होते हैं। लंग्स और लिवर के भी कुछ हिस्सों को जीवित शख्स दान कर सकता है।
- इसके अलावा आंखों समेत बाकी तमाम अंगों को मौत के बाद ही दान किया जाता है।
- घर पर होने वाली सामान्य मौत के मामले में सिर्फ आंखें दान की जा सकती हैं। बाकी कोई अंग नहीं ले सकते। बाकी कोई भी अंग तब लिया जा सकता है, जब इंसान की ब्रेन डेथ होती है और उसे वेंटिलेटर या लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर ले लिया जाता है।
सामान्य मौत और ब्रेन डेथ का फर्क
- सामान्य मौत और ब्रेन डेथ में फर्क होता है। सामान्य मौत में इंसान के सभी अंग काम करना बंद कर देते हैं, उसके दिल की धड़कन रुक जाती है, शरीर में खून का बहाव रुक जाता है। ऐसे में आंखों को छोड़कर जल्दी ही उसके सभी अंग बेकार होने लगते हैं। आंखों में ब्लड वेसल्स नहीं होतीं, इसलिए उन पर शुरुआती घंटों में फर्क नहीं पड़ता। यही वजह है कि घर पर होने वाली सामान्य मौत की हालत में सिर्फ आंखों का दान किया जा सकता है।
- ब्रेन डेथ वह मौत है, जिसमें किसी भी वजह से इंसान के दिमाग को चोट पहुंचती है। इस चोट की तीन मुख्य वजहें हो सकती हैं: सिर में चोट (अक्सर ऐक्सिडेंट के मामले में ऐसा होता है), ब्रेन ट्यूमर और स्ट्रोक (लकवा आदि)। ऐसे मरीजों का ब्रेन डेड हो जाता है लेकिन बाकी कुछ अंग ठीक काम कर रहे होते हैं - मसलन हो सकता है दिल धड़क रहा हो। कुछ लोग कोमा और ब्रेन डेथ को एक ही समझ लेते हैं लेकिन इनमें फर्क है। कोमा में इंसान के वापस आने के चांस होते हैं। यह मौत नहीं है। लेकिन ब्रेन डेथ में जीवन की संभावना बिल्कुल खत्म हो जाती है। इसमें इंसान वापस नहीं लौटता।
आंखों के अलावा बाकी अंगों का दान
आंखों के अलावा बाकी सभी अंगों का दान ब्रेन डेड होने पर ही किया जा सकता है। वैसे जिन वजहों से इंसान ब्रेन डेड होता है, उनका इलाज करने और मरीज को ठीक करने की पूरी कोशिश की जाती है और जब सभी कोशिशें नाकाम हो जाती हैं और इंसान ब्रेन डेड घोषित हो जाता है, तब ही अंगदान के बारे में सोचा जाता है। ब्रेन डेड की स्थिति में कई बार मरीज के घरवालों को लगता है कि अगर मरीज का दिल धड़क रहा है, तो उसके ठीक होने की संभावना है। फिर उसे डॉक्टरों ने मृत घोषित करके उसके अंगदान की बात कैसे शुरू कर दी। लेकिन ऐसी सोच गलत है। ब्रेन डेड होने का मतलब यही है कि इंसान अब वापस नहीं आएगा और इसीलिए उसके अंगों को दान किया जा सकता है।
कौन कर सकता है
कोई भी शख्स अंगदान कर सकता है। उम्र का इससे कोई लेना-देना नहीं है। नवजात बच्चों से लेकर 90 साल के बुजुर्गों तक के अंगदान कामयाब हुए हैं। अगर कोई शख्स 18 साल से कम उम्र का है तो उसे अंगदान के लिए फॉर्म भरने से पहले अपने मां-बाप की इजाजत लेना जरूरी है।
कैसे होता है
जिन लोगों की ब्रेन डेथ हो जाती है, उन्हें डॉक्टर वेंटिलेटर्स पर ले लेते हैं। फिर डॉक्टरों का एक पैनल इस बात की पुष्टि करता है कि उसकी ब्रेन डेथ हो चुकी है। कुछ समय बाद एक बार फिर उसकी पुष्टि की जाती है। इसके बाद घरवालों की इच्छा से और कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद मरने वाले के शरीर से अंगों को निकाल लिया जाता है। यह प्रक्रिया मरने के बाद जल्द-से-जल्द शुरू कर दी जाती है। इस काम को करते वक्त बॉडी में सिर्फ एक चीरा लगाया जाता है और उसी से अंग निकाल लिए जाते हैं। इस पूरे काम में बॉडी को पूरे सम्मान के साथ रखा जाता है और बाद में उसे साफ करके परिजनों को दे दिया जाता है। इस प्रक्रिया में आधा दिन तक का वक्त लग सकता है। हो सकता है, अंतिम क्रिया करने के काम में मामूली-सी देरी हो जाए, लेकिन अंगदान की संतुष्टि के सामने यह कोई बड़ी बात नहीं है।
कहां है अड़चन
ऑर्गन डोनेशन ऐक्ट 1994 के नियमों के मुताबिक अंगदान सिर्फ उसी अस्पताल में ही किया जा सकता है, जहां उसे ट्रांसप्लांट करने की भी सुविधा हो। यह अपने आप में बेहद मुश्किल नियम है। इस नियम से दूर-दराज के इलाकों के लोगों का अंगदान तो हो ही नहीं पाता। इस समस्या को देखते हुए सरकार ने 2011 में इस नियम में कुछ बदलाव करने के लिए एक बिल पास किया। नए नियम के मुताबिक अंगदान आप किसी भी आईसीयू में कर सकते हैं। यानी उस अस्पताल में ट्रांसप्लांट न भी होता हो, लेकिन आईसीयू है, तो वहां भी अंगदान किया जा सकता है। यह नियम अभी लागू नहीं हुआ है, लेकिन लागू होने के बाद अंगदान की प्रक्रिया ज्यादा तेज और सुविधाजनक होगी। अंगदान की पूरी प्रक्रिया के साथ इतनी सारी शर्तें जुड़ी होने के कारण अपने देश में आज भी अंगदान बहुत कम हो पाता है। इसी वजह से किसी से अंग लेकर उसे जरूरतमंद में ट्रांसप्लांट करने के मामले बड़े कम होते हैं। साल में कुल 50 के आस-पास लोग ही अंगदान कर पाते हैं।
क्या होता है अंगों का
इन अंगों को डॉक्टर जल्द-से-जल्द किन्हीं ऐसे मरीजों में ट्रांसप्लांट कर देते हैं, जिन्हें पहले से इनकी जरूरत रही हो। अंग प्रत्यारोपण करने वाले अस्पतालों के पास एक वेटिंग लिस्ट होती है। उसके हिसाब से जिस मरीज का नंबर होता है, उसमें अंग को लगा दिया जाता है। अंग लगाते वक्त मैचिंग के लिए ब्लड ग्रुप और दूसरे कई टेस्ट किए जाते हैं। अगर सब कुछ ठीक है तो अंग लगा दिया जाता है और अगर मैचिंग नहीं होती तो वेटिंग लिस्ट के अगले मरीज के साथ उसे मैच किया जाता है।
कितने समय तक सही
- लिवर निकालने के 6 घंटे के अंदर ट्रांसप्लांट हो जाना चाहिए।
- किडनी 12 घंटे के भीतर लग जानी चाहिए।
- आंखें 3 दिन के भीतर लगा दी जानी चाहिए।
नोट: 6 से 12 घंटे के भीतर डोनर की बॉडी से निकालने के बाद अंगों को ट्रांसप्लांट कर दिया जाना चाहिए। जितना जल्दी प्रत्यारोपण होगा, उस अंग के काम करने की क्षमता और संभावना उतनी ही ज्यादा होगी।
आंखों का दान कौन कर सकता है
- एक साल से बड़ा कोई भी शख्स यह तय कर सकता है कि वह मौत के बाद अपनी आंखों का दान करना चाहता है। इसके लिए अधिकतम उम्र कोई नहीं हैं।
- जीवित शख्स आंखों का दान नहीं कर सकता।
- अगर आपकी नजर कमजोर है, चश्मा लगाते हैं, मोतियाबिंद या काला मोतिया का ऑपरेशन हो चुका है, डायबीटीज के मरीज हैं तो भी आप आंखें दान कर सकते हैं। यहां तक कि ऐसे अंधे लोग भी आंखें दान कर सकते हैं, जिनके अंधेपन की वजह रेटिनल या ऑप्टिक नर्व से संबंधित बीमारी हैं और उनका कॉर्निया ठीक है।
- रेबीज, सिफलिस, हिपेटाइटिस या एड्स जैसी इन्फेक्शन वाली बीमारियों की वजह से जिन लोगों की मौत होती है, वे अपनी आंखें दान नहीं कर सकते।
- अगर किसी इंसान की मौत दूर-दराज के इलाके में होती है, जहां आई-बैंक वालों को पहुंचने में ज्यादा वक्त लग सकता है तो उनकी आंखों का दान मुमकिन नहीं है।
क्या है तरीका
मौत के छह घंटे के अंदर आई बैंक वाले बॉडी से आंखों को ले लेते हैं। मृत शरीर के अंदर से आंखें लेने में इससे ज्यादा देर नहीं होनी चाहिए। इसके लिए मौत के बाद करीबी लोगों को आई बैंक को तुरंत सूचित करना जरूरी है।
- जब तक आई बैंक वाले आएं, तब तक मरने वाले की दोनों आंखों को बंद कर देना चाहिए और आंखों पर गीली रुई रख देनी चाहिए। अगर पंखा चल रहा है तो बंद कर दें। मुमकिन हो तो कोई ऐंटिबायॉटिक आई-ड्रॉप मरने वाले की आंखों में डाल दें। इससे इन्फेक्शन का खतरा नहीं होगा। सिर के हिस्से को छह इंच ऊपर उठाकर रखना चाहिए।
- आई-बैंक से आकर डॉक्टर पूरी आई बॉल निकाल लेते हैं। इससे आंखों में कोई गड्ढा या डिफॉर्मिटी नहीं आती। देखने में आंखें पहले जैसी ही लगती हैं।
दूसरों को आंख लगाना
- आई-बैंक आने के बाद कॉर्निया के कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं। जो कॉर्निया ठीक होते हैं, उन्हें आई बॉल से निकाल लिया जाता है और फिर उन्हें एक खास सल्यूशन में रख दिया जाता है, जिससे वे कुछ दिन सुरक्षित रहते हैं।
- अच्छी क्वॉलिटी के कॉर्निया को तीन दिनों के भीतर कॉर्नियल ट्रांसप्लांटेशन के लिए इस्तेमाल कर लिया जाना चाहिए।
- आंख के बाकी हिस्सों को मेडिकल रिसर्च में यूज किया जाता है।
- कॉर्निया किसे लगाया जा रहा है, यह डोनर के घरवालों को नहीं बताया जाता और न ही जिसे लगाया जा रहा है, उसे यह सूचना दी जाती है कि किसकी आंख उसे लगाई गई है।
- यह आंख कॉर्नियल ट्रांसप्लांटेशन के जरिए किसी की आंखों में रोशनी ला सकती है। कॉर्नियल ट्रांसप्लांट के 90 फीसदी से भी ज्यादा मामलों में कॉर्नियल अंधेपन की वजह से पीड़ित लोगों की रोशनी वापस आ जाती है।
- चूंकि कॉर्निया में ब्लड वेसल्स नहीं होतीं इसलिए इसे किसी को भी लगाया जा सकता है। लगाने से पहले मरीज के साथ मैचिंग करने की जरूरत नहीं होती।
कहां संपर्क करें
अगर किसी मृत इंसान की आंखें दान करनी हैं या कोई जिंदा शख्स आंखें दान करने के लिए फॉर्म भरना चाहता है तो किसी भी आई-बैंक से संपर्क कर सकते हैं। नीचे कुछ नंबर दिए गए हैं:
- 1919 आई डोनेशन के लिए केंद्रीय नंबर है, जिसे डायल किया जा सकता है लेकिन कुछ तकनीकी खामियों की वजह से यह नंबर कभी-कभार ही मिलता है।
- 9990160160 भी सेंट्रलाइज्ड नंबर है, जिस पर कॉल कर सकते हैं।
- वेणु आई इंस्टिट्यूट ऐंड रिसर्च सेंटर: 011-2925-0952
- गुरु गोबिंद सिंह इंटरनैशनल आई-बैंक: 011-2254-2325
- गुरु नानक आई सेंटर: 011-2323-4612
मुंबई में
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आप क्या करें
अंगदान सबसे बड़ा दान है क्योंकि इसकी मदद से इंसान कई जिंदगियों को जीवन दान देता है। इसलिए तय करें कि आपको अंगदान करना है। इसके लिए दो तरीके हो सकते हैं। कई एनजीओ और अस्पतालों में अंगदान से संबंधित काम होता है। इनमें से कहीं भी जाकर आप एक फॉर्म भरकर दे सकते हैं कि आप मरने के बाद अपने इस-इस अंग को दान करना चाहते हैं। आप जो-जो अंग चाहेंगे, सिर्फ वही अंग लिया जाएगा। आप सभी या कोई एक अंग दान कर सकते हैं। संस्था से आपको एक डोनर कार्ड मिल जाएगा, लेकिन इस कार्ड की कोई लीगल वैल्यू नहीं होती। इसके बाद अपने निकटतम संबंधियों को इस बारे में जानकारी दे दें कि मैंने अपने इन-इन अंगों को दान कर दिया है और मेरे मरने के बाद उन्हें इस काम को पूरा करना है। अगर आप फॉर्म नहीं भरते हैं, तो भी कोई खास फर्क नहीं पड़ता। बस अपने निकटतम लोगों को अपनी इच्छा बताकर रखें। मौत हो जाने पर अंगदान की जिम्मेदारी आपके संबंधियों पर होगी क्योंकि उन्हें ही कॉल करनी है। अगर आपने फॉर्म नहीं भी भरा है तो भी अंगदान हो जाएगा। आपके फॉर्म भरने के बाद भी अगर संबंधी न चाहें तो अंगदान मुमकिन नहीं है। इसलिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि अपनी इच्छा के बारे में अपने निकटतम संबंधियों को बताकर रखा जाए कि आप कौन-कौन से अंगों का दान करना चाहते हैं। आंखों के अलावा दूसरे अंगों के दान के लिए परिवारजनों को कहीं भी कॉल करने की जरूरत नहीं है क्योंकि बाकी अंगों का दान होगा ही तब, जब मरीज की ब्रेन डेथ अस्पताल में हुई होगी और डॉक्टरों ने उसे फौरन जीवन बचाने वाले यंत्रों पर ले लिया होगा। अंगदान करते वक्त परिजनों का कोई खर्च नहीं होता।
जीवित लोगों द्वारा अंगदान: कानूनी पहलू
जीवित शख्स के अंगदान करने की प्रक्रिया कई कानूनी बंधनों में बंधी है और पूरे आकलन के बाद ही ऐसा करना मुमकिन हो पाता है। अपने देश में प्रत्यारोपण का पूरा कार्यक्रम द ट्रांसप्लांट ऑफ ह्यूमन ऑर्गन ऐक्ट 1994 के तहत किया जाता है। कोई भी शख्स अंगों को बेच या खरीद नहीं सकता। जिस शख्स का प्रत्यारोपण होना है, अंगदान सिर्फ उसके सगे-संबंधी या बेहद नजदीकी रिश्तेदार ही कर सकते हैं, जिसके लिए पूरी जांच-पड़ताल की जाती है। नजदीकी रिश्तेदारों में माता-पिता, पति-पत्नी, बच्चे, भाई-बहन, चचेरे भाई-बहन आदि आते हैं। इनमें से भी अगर कोई लालच या किसी चीज के बदले अंगदान कर रहा है तो वह गैरकानूनी है। मसलन किसी ने अपने भाई से कह दिया कि आप मुझे किडनी दे दें, मैं अपनी इतनी प्रॉपर्टी आपके नाम कर दूंगा, तो ऐसे कॉन्ट्रैक्ट गैरकानूनी हैं।
किसने देखा अगला जन्म
आमतौर पर लोग धार्मिक आस्थाओं के कारण अंगदान करने से बचते हैं, लेकिन तमाम धर्म-आध्यात्मिक गुरु भी इस बात को कह चुके हैं कि अंगदान करना एक बड़े पुण्य का काम है क्योंकि इससे आप एक मरते हुए शख्स को जिंदगी दे रहे हैं और किसी को जिंदगी देने से बड़ा पुण्य भला क्या होगा! आंखें दान करने वाले अगले जन्म में अंधे पैदा होंगे, जैसी बातें अंधविश्वास हैं। खुद सोचिए, अगर किसी ने दिल और गुर्दे दान कर दिए, तो इस थियरी के हिसाब से तो अगले जन्म में उसे बिना दिल और किडनी के पैदा होना चाहिए। क्या ऐसा मुमकिन है कि कोई इंसान बिना दिल और किडनी के जन्म ले? है ना हास्यास्पद! धर्म से संबंधित ऐसी सभी मान्यताएं जो अंगदान न करने की बात करती हैं, महज अंधविश्वास हैं, जिन्हें नजरंदाज करके हर किसी को अंगदान के लिए आगे आना चाहिए।
क्या है अंगदान
अंगदान एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें एक इंसान (मृत और कभी-कभी जीवित भी) से स्वस्थ अंगों और टिशूज़ को ले लिया जाता है और फिर इन अंगों को किसी दूसरे जरूरतमंद शख्स में ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है। इस तरह अंगदान से किसी दूसरे शख्स की जिंदगी को बचाया जा सकता है। एक शख्स द्वारा किए गए अंगदान से 50 जरूरतमंद लोगों की मदद हो सकती है।
किन-किन अंगों का दान
हमारे देश में लिवर, किडनी और हार्ट के ट्रांसप्लांट होने की सुविधा है। कुछ मामलों में पैनक्रियाज भी ट्रांसप्लांट हो जाते हैं, लेकिन इनके अलावा दूसरे अंगों का भी दान किया जा सकता है:
- अंदरूनी अंग मसलन गुर्दे (किडनी), दिल (हार्ट), यकृत (लिवर), अग्नाशय (पैनक्रियाज), छोटी आंत (इन्टेस्टाइन) और फेफड़े (लंग्स)
- त्वचा (स्किन)
- बोन और बोन मैरो
- आंखें (कॉर्निया)
दो तरह के अंगदान
- एक होता है अंगदान और दूसरा होता है टिशू का दान। अंगदान के तहत आता है किडनी, लंग्स, लिवर, हार्ट, इंटेस्टाइन, पैनक्रियाज आदि तमाम अंदरूनी अंगों का दान। टिशू दान के तहत मुख्यत: आंखों, हड्डी और स्किन का दान आता है।
- ज्यादातर अंगदान तब होते हैं, जब इंसान की मौत हो जाती है लेकिन कुछ अंग और टिशू इंसान के जिंदा रहते भी दान किए जा सकते हैं।
- जीवित लोगों द्वारा दान किया जाने वाला सबसे आम अंग है किडनी, क्योंकि दान करने वाला शख्स एक ही किडनी के साथ सामान्य जिंदगी जी सकता है। वैसे भी जो किडनी जीवित शख्स से लेकर ट्रांसप्लांट की जाती है, उसके काम करने की क्षमता उस किडनी से ज्यादा होती है, जो किसी मृत शरीर से लेकर लगाई जाती है। भारत में होने वाले ज्यादातर किडनी ट्रांसप्लांट के केस जिंदा डोनर द्वारा ही होते हैं। लंग्स और लिवर के भी कुछ हिस्सों को जीवित शख्स दान कर सकता है।
- इसके अलावा आंखों समेत बाकी तमाम अंगों को मौत के बाद ही दान किया जाता है।
- घर पर होने वाली सामान्य मौत के मामले में सिर्फ आंखें दान की जा सकती हैं। बाकी कोई अंग नहीं ले सकते। बाकी कोई भी अंग तब लिया जा सकता है, जब इंसान की ब्रेन डेथ होती है और उसे वेंटिलेटर या लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर ले लिया जाता है।
सामान्य मौत और ब्रेन डेथ का फर्क
- सामान्य मौत और ब्रेन डेथ में फर्क होता है। सामान्य मौत में इंसान के सभी अंग काम करना बंद कर देते हैं, उसके दिल की धड़कन रुक जाती है, शरीर में खून का बहाव रुक जाता है। ऐसे में आंखों को छोड़कर जल्दी ही उसके सभी अंग बेकार होने लगते हैं। आंखों में ब्लड वेसल्स नहीं होतीं, इसलिए उन पर शुरुआती घंटों में फर्क नहीं पड़ता। यही वजह है कि घर पर होने वाली सामान्य मौत की हालत में सिर्फ आंखों का दान किया जा सकता है।
- ब्रेन डेथ वह मौत है, जिसमें किसी भी वजह से इंसान के दिमाग को चोट पहुंचती है। इस चोट की तीन मुख्य वजहें हो सकती हैं: सिर में चोट (अक्सर ऐक्सिडेंट के मामले में ऐसा होता है), ब्रेन ट्यूमर और स्ट्रोक (लकवा आदि)। ऐसे मरीजों का ब्रेन डेड हो जाता है लेकिन बाकी कुछ अंग ठीक काम कर रहे होते हैं - मसलन हो सकता है दिल धड़क रहा हो। कुछ लोग कोमा और ब्रेन डेथ को एक ही समझ लेते हैं लेकिन इनमें फर्क है। कोमा में इंसान के वापस आने के चांस होते हैं। यह मौत नहीं है। लेकिन ब्रेन डेथ में जीवन की संभावना बिल्कुल खत्म हो जाती है। इसमें इंसान वापस नहीं लौटता।
आंखों के अलावा बाकी अंगों का दान
आंखों के अलावा बाकी सभी अंगों का दान ब्रेन डेड होने पर ही किया जा सकता है। वैसे जिन वजहों से इंसान ब्रेन डेड होता है, उनका इलाज करने और मरीज को ठीक करने की पूरी कोशिश की जाती है और जब सभी कोशिशें नाकाम हो जाती हैं और इंसान ब्रेन डेड घोषित हो जाता है, तब ही अंगदान के बारे में सोचा जाता है। ब्रेन डेड की स्थिति में कई बार मरीज के घरवालों को लगता है कि अगर मरीज का दिल धड़क रहा है, तो उसके ठीक होने की संभावना है। फिर उसे डॉक्टरों ने मृत घोषित करके उसके अंगदान की बात कैसे शुरू कर दी। लेकिन ऐसी सोच गलत है। ब्रेन डेड होने का मतलब यही है कि इंसान अब वापस नहीं आएगा और इसीलिए उसके अंगों को दान किया जा सकता है।
कौन कर सकता है
कोई भी शख्स अंगदान कर सकता है। उम्र का इससे कोई लेना-देना नहीं है। नवजात बच्चों से लेकर 90 साल के बुजुर्गों तक के अंगदान कामयाब हुए हैं। अगर कोई शख्स 18 साल से कम उम्र का है तो उसे अंगदान के लिए फॉर्म भरने से पहले अपने मां-बाप की इजाजत लेना जरूरी है।
कैसे होता है
जिन लोगों की ब्रेन डेथ हो जाती है, उन्हें डॉक्टर वेंटिलेटर्स पर ले लेते हैं। फिर डॉक्टरों का एक पैनल इस बात की पुष्टि करता है कि उसकी ब्रेन डेथ हो चुकी है। कुछ समय बाद एक बार फिर उसकी पुष्टि की जाती है। इसके बाद घरवालों की इच्छा से और कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद मरने वाले के शरीर से अंगों को निकाल लिया जाता है। यह प्रक्रिया मरने के बाद जल्द-से-जल्द शुरू कर दी जाती है। इस काम को करते वक्त बॉडी में सिर्फ एक चीरा लगाया जाता है और उसी से अंग निकाल लिए जाते हैं। इस पूरे काम में बॉडी को पूरे सम्मान के साथ रखा जाता है और बाद में उसे साफ करके परिजनों को दे दिया जाता है। इस प्रक्रिया में आधा दिन तक का वक्त लग सकता है। हो सकता है, अंतिम क्रिया करने के काम में मामूली-सी देरी हो जाए, लेकिन अंगदान की संतुष्टि के सामने यह कोई बड़ी बात नहीं है।
कहां है अड़चन
ऑर्गन डोनेशन ऐक्ट 1994 के नियमों के मुताबिक अंगदान सिर्फ उसी अस्पताल में ही किया जा सकता है, जहां उसे ट्रांसप्लांट करने की भी सुविधा हो। यह अपने आप में बेहद मुश्किल नियम है। इस नियम से दूर-दराज के इलाकों के लोगों का अंगदान तो हो ही नहीं पाता। इस समस्या को देखते हुए सरकार ने 2011 में इस नियम में कुछ बदलाव करने के लिए एक बिल पास किया। नए नियम के मुताबिक अंगदान आप किसी भी आईसीयू में कर सकते हैं। यानी उस अस्पताल में ट्रांसप्लांट न भी होता हो, लेकिन आईसीयू है, तो वहां भी अंगदान किया जा सकता है। यह नियम अभी लागू नहीं हुआ है, लेकिन लागू होने के बाद अंगदान की प्रक्रिया ज्यादा तेज और सुविधाजनक होगी। अंगदान की पूरी प्रक्रिया के साथ इतनी सारी शर्तें जुड़ी होने के कारण अपने देश में आज भी अंगदान बहुत कम हो पाता है। इसी वजह से किसी से अंग लेकर उसे जरूरतमंद में ट्रांसप्लांट करने के मामले बड़े कम होते हैं। साल में कुल 50 के आस-पास लोग ही अंगदान कर पाते हैं।
क्या होता है अंगों का
इन अंगों को डॉक्टर जल्द-से-जल्द किन्हीं ऐसे मरीजों में ट्रांसप्लांट कर देते हैं, जिन्हें पहले से इनकी जरूरत रही हो। अंग प्रत्यारोपण करने वाले अस्पतालों के पास एक वेटिंग लिस्ट होती है। उसके हिसाब से जिस मरीज का नंबर होता है, उसमें अंग को लगा दिया जाता है। अंग लगाते वक्त मैचिंग के लिए ब्लड ग्रुप और दूसरे कई टेस्ट किए जाते हैं। अगर सब कुछ ठीक है तो अंग लगा दिया जाता है और अगर मैचिंग नहीं होती तो वेटिंग लिस्ट के अगले मरीज के साथ उसे मैच किया जाता है।
कितने समय तक सही
- लिवर निकालने के 6 घंटे के अंदर ट्रांसप्लांट हो जाना चाहिए।
- किडनी 12 घंटे के भीतर लग जानी चाहिए।
- आंखें 3 दिन के भीतर लगा दी जानी चाहिए।
नोट: 6 से 12 घंटे के भीतर डोनर की बॉडी से निकालने के बाद अंगों को ट्रांसप्लांट कर दिया जाना चाहिए। जितना जल्दी प्रत्यारोपण होगा, उस अंग के काम करने की क्षमता और संभावना उतनी ही ज्यादा होगी।
आंखों का दान कौन कर सकता है
- एक साल से बड़ा कोई भी शख्स यह तय कर सकता है कि वह मौत के बाद अपनी आंखों का दान करना चाहता है। इसके लिए अधिकतम उम्र कोई नहीं हैं।
- जीवित शख्स आंखों का दान नहीं कर सकता।
- अगर आपकी नजर कमजोर है, चश्मा लगाते हैं, मोतियाबिंद या काला मोतिया का ऑपरेशन हो चुका है, डायबीटीज के मरीज हैं तो भी आप आंखें दान कर सकते हैं। यहां तक कि ऐसे अंधे लोग भी आंखें दान कर सकते हैं, जिनके अंधेपन की वजह रेटिनल या ऑप्टिक नर्व से संबंधित बीमारी हैं और उनका कॉर्निया ठीक है।
- रेबीज, सिफलिस, हिपेटाइटिस या एड्स जैसी इन्फेक्शन वाली बीमारियों की वजह से जिन लोगों की मौत होती है, वे अपनी आंखें दान नहीं कर सकते।
- अगर किसी इंसान की मौत दूर-दराज के इलाके में होती है, जहां आई-बैंक वालों को पहुंचने में ज्यादा वक्त लग सकता है तो उनकी आंखों का दान मुमकिन नहीं है।
क्या है तरीका
मौत के छह घंटे के अंदर आई बैंक वाले बॉडी से आंखों को ले लेते हैं। मृत शरीर के अंदर से आंखें लेने में इससे ज्यादा देर नहीं होनी चाहिए। इसके लिए मौत के बाद करीबी लोगों को आई बैंक को तुरंत सूचित करना जरूरी है।
- जब तक आई बैंक वाले आएं, तब तक मरने वाले की दोनों आंखों को बंद कर देना चाहिए और आंखों पर गीली रुई रख देनी चाहिए। अगर पंखा चल रहा है तो बंद कर दें। मुमकिन हो तो कोई ऐंटिबायॉटिक आई-ड्रॉप मरने वाले की आंखों में डाल दें। इससे इन्फेक्शन का खतरा नहीं होगा। सिर के हिस्से को छह इंच ऊपर उठाकर रखना चाहिए।
- आई-बैंक से आकर डॉक्टर पूरी आई बॉल निकाल लेते हैं। इससे आंखों में कोई गड्ढा या डिफॉर्मिटी नहीं आती। देखने में आंखें पहले जैसी ही लगती हैं।
दूसरों को आंख लगाना
- आई-बैंक आने के बाद कॉर्निया के कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं। जो कॉर्निया ठीक होते हैं, उन्हें आई बॉल से निकाल लिया जाता है और फिर उन्हें एक खास सल्यूशन में रख दिया जाता है, जिससे वे कुछ दिन सुरक्षित रहते हैं।
- अच्छी क्वॉलिटी के कॉर्निया को तीन दिनों के भीतर कॉर्नियल ट्रांसप्लांटेशन के लिए इस्तेमाल कर लिया जाना चाहिए।
- आंख के बाकी हिस्सों को मेडिकल रिसर्च में यूज किया जाता है।
- कॉर्निया किसे लगाया जा रहा है, यह डोनर के घरवालों को नहीं बताया जाता और न ही जिसे लगाया जा रहा है, उसे यह सूचना दी जाती है कि किसकी आंख उसे लगाई गई है।
- यह आंख कॉर्नियल ट्रांसप्लांटेशन के जरिए किसी की आंखों में रोशनी ला सकती है। कॉर्नियल ट्रांसप्लांट के 90 फीसदी से भी ज्यादा मामलों में कॉर्नियल अंधेपन की वजह से पीड़ित लोगों की रोशनी वापस आ जाती है।
- चूंकि कॉर्निया में ब्लड वेसल्स नहीं होतीं इसलिए इसे किसी को भी लगाया जा सकता है। लगाने से पहले मरीज के साथ मैचिंग करने की जरूरत नहीं होती।
कहां संपर्क करें
अगर किसी मृत इंसान की आंखें दान करनी हैं या कोई जिंदा शख्स आंखें दान करने के लिए फॉर्म भरना चाहता है तो किसी भी आई-बैंक से संपर्क कर सकते हैं। नीचे कुछ नंबर दिए गए हैं:
- 1919 आई डोनेशन के लिए केंद्रीय नंबर है, जिसे डायल किया जा सकता है लेकिन कुछ तकनीकी खामियों की वजह से यह नंबर कभी-कभार ही मिलता है।
- 9990160160 भी सेंट्रलाइज्ड नंबर है, जिस पर कॉल कर सकते हैं।
- वेणु आई इंस्टिट्यूट ऐंड रिसर्च सेंटर: 011-2925-0952
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आप क्या करें
अंगदान सबसे बड़ा दान है क्योंकि इसकी मदद से इंसान कई जिंदगियों को जीवन दान देता है। इसलिए तय करें कि आपको अंगदान करना है। इसके लिए दो तरीके हो सकते हैं। कई एनजीओ और अस्पतालों में अंगदान से संबंधित काम होता है। इनमें से कहीं भी जाकर आप एक फॉर्म भरकर दे सकते हैं कि आप मरने के बाद अपने इस-इस अंग को दान करना चाहते हैं। आप जो-जो अंग चाहेंगे, सिर्फ वही अंग लिया जाएगा। आप सभी या कोई एक अंग दान कर सकते हैं। संस्था से आपको एक डोनर कार्ड मिल जाएगा, लेकिन इस कार्ड की कोई लीगल वैल्यू नहीं होती। इसके बाद अपने निकटतम संबंधियों को इस बारे में जानकारी दे दें कि मैंने अपने इन-इन अंगों को दान कर दिया है और मेरे मरने के बाद उन्हें इस काम को पूरा करना है। अगर आप फॉर्म नहीं भरते हैं, तो भी कोई खास फर्क नहीं पड़ता। बस अपने निकटतम लोगों को अपनी इच्छा बताकर रखें। मौत हो जाने पर अंगदान की जिम्मेदारी आपके संबंधियों पर होगी क्योंकि उन्हें ही कॉल करनी है। अगर आपने फॉर्म नहीं भी भरा है तो भी अंगदान हो जाएगा। आपके फॉर्म भरने के बाद भी अगर संबंधी न चाहें तो अंगदान मुमकिन नहीं है। इसलिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि अपनी इच्छा के बारे में अपने निकटतम संबंधियों को बताकर रखा जाए कि आप कौन-कौन से अंगों का दान करना चाहते हैं। आंखों के अलावा दूसरे अंगों के दान के लिए परिवारजनों को कहीं भी कॉल करने की जरूरत नहीं है क्योंकि बाकी अंगों का दान होगा ही तब, जब मरीज की ब्रेन डेथ अस्पताल में हुई होगी और डॉक्टरों ने उसे फौरन जीवन बचाने वाले यंत्रों पर ले लिया होगा। अंगदान करते वक्त परिजनों का कोई खर्च नहीं होता।
जीवित लोगों द्वारा अंगदान: कानूनी पहलू
जीवित शख्स के अंगदान करने की प्रक्रिया कई कानूनी बंधनों में बंधी है और पूरे आकलन के बाद ही ऐसा करना मुमकिन हो पाता है। अपने देश में प्रत्यारोपण का पूरा कार्यक्रम द ट्रांसप्लांट ऑफ ह्यूमन ऑर्गन ऐक्ट 1994 के तहत किया जाता है। कोई भी शख्स अंगों को बेच या खरीद नहीं सकता। जिस शख्स का प्रत्यारोपण होना है, अंगदान सिर्फ उसके सगे-संबंधी या बेहद नजदीकी रिश्तेदार ही कर सकते हैं, जिसके लिए पूरी जांच-पड़ताल की जाती है। नजदीकी रिश्तेदारों में माता-पिता, पति-पत्नी, बच्चे, भाई-बहन, चचेरे भाई-बहन आदि आते हैं। इनमें से भी अगर कोई लालच या किसी चीज के बदले अंगदान कर रहा है तो वह गैरकानूनी है। मसलन किसी ने अपने भाई से कह दिया कि आप मुझे किडनी दे दें, मैं अपनी इतनी प्रॉपर्टी आपके नाम कर दूंगा, तो ऐसे कॉन्ट्रैक्ट गैरकानूनी हैं।
किसने देखा अगला जन्म
आमतौर पर लोग धार्मिक आस्थाओं के कारण अंगदान करने से बचते हैं, लेकिन तमाम धर्म-आध्यात्मिक गुरु भी इस बात को कह चुके हैं कि अंगदान करना एक बड़े पुण्य का काम है क्योंकि इससे आप एक मरते हुए शख्स को जिंदगी दे रहे हैं और किसी को जिंदगी देने से बड़ा पुण्य भला क्या होगा! आंखें दान करने वाले अगले जन्म में अंधे पैदा होंगे, जैसी बातें अंधविश्वास हैं। खुद सोचिए, अगर किसी ने दिल और गुर्दे दान कर दिए, तो इस थियरी के हिसाब से तो अगले जन्म में उसे बिना दिल और किडनी के पैदा होना चाहिए। क्या ऐसा मुमकिन है कि कोई इंसान बिना दिल और किडनी के जन्म ले? है ना हास्यास्पद! धर्म से संबंधित ऐसी सभी मान्यताएं जो अंगदान न करने की बात करती हैं, महज अंधविश्वास हैं, जिन्हें नजरंदाज करके हर किसी को अंगदान के लिए आगे आना चाहिए।
COURTESY:
नवभारत टाइम्स, 10 Jun 2012, 1013 hrs IST
http://navbharattimes.indiatimes.com/organ-donation/articleshow/13988758.cms
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