विवेक अग्रवाल, मुंबई
पुणे बमकांड में इंडियन मुजाहिदीन के तौर-तरीकों के इस्तेमाल और बम बनाने की तकनीक में समानताओं के चलते पूरा फोकस इसी आतंकी संगठन पर हो चला है। जांच की दशा और दिशा इस कदर इंडियन मुजाहिदीन के इर्दगिर्द जा चुकि है कि अब लगने लगा है कि जल्द ही इस आतंकी गिरोह के कुछ सदस्य एटीएस के हत्थे चढ़ जाएंगे।
पुणे बमकांड में इंडियन मुजाहिदीन के तौर-तरीकों के इस्तेमाल और बम बनाने की तकनीक में समानताओं के चलते पूरा फोकस इसी आतंकी संगठन पर हो चला है। जांच की दशा और दिशा इस कदर इंडियन मुजाहिदीन के इर्दगिर्द जा चुकि है कि अब लगने लगा है कि जल्द ही इस आतंकी गिरोह के कुछ सदस्य एटीएस के हत्थे चढ़ जाएंगे।
जांच अधिकारियों
का कहना है कि इस बमकांड में इंडियन मुजाहिदीन के पुराने सदस्य ही शामिल हैं। जिन
तीन लोगों ने साईकिलें खरीदी थीं। उनके स्केच के आधार पर जांच अधिकारियों ने पुणे
बमकांड में शामिल होने के शक में कुछ पुराने इंडियन मुजाहिदीन आतंकियों की
तस्वीरें निकाल कर सोनी बंधुओं को दिखाईं। इनसे ही आतंकियों ने तीन नई साईकिलें
खरीदी थीं जिन पर तीन बम लगाए गए थे। उन्हें इन तस्वीरों में से भटकल के ही रहने
वाले दो ऐसे आतंकियों को पहचान लिया जो इंडियन मुजाहिदीन के साथ उसकी शुरूआत से ही
जुड़े हैं। इनके नाम डॉ. शहनवाज और बड़ा साजिद बताए जा रहे हैं।
आतंकी गिरोह
इंडियन मुजाहिदीन का वर्तमान मुखिया यासीन भटकल है। बता दें कि यह वही आतंकी
मोड्यूल है जिसने सूरत के भी बम बनाए थे। और ये बम नहीं फट पाए थे। पुणे और सूरत
के बमों के बीच कुछ ऐसी समानताएँ हैं कि यह मानने के लिए जांच अधिकारी विवश हो चले
हैं कि इस बार भी यासीन के ही साथियों का हाथ है। यासीन के दो और करीबी साथियों
जुनैद और अब्दुस सुभान को भी जांच के दायरे से बाहर नहीं रखा गया है। वे भी आज तक
फरार हैं। हालांकि जांचकर्ताओं का एक दस्ता यह भी मानता है कि पुण बमकांड यासीन
भटकल का काम इसलिए नहीं हो सकता है क्योंकि वह खुद तो बम बनाने में माहिर है ही।
वह हमेशा अपने साथ बिहार के नेटवर्क का ही इस्तेमाल करता है। वहीं के आतंकी बनाए
युवकों का इस्तेमाल करने में अधिक भरोसा करता है।
पुणे बमकांड में
कम से कम 6, और अधिकतम 7, आतंकियों के शामिल होने की जानकारी पुलिस को मिली है।
पुलिस को जयपुर बमकांड में साईकिलों का इस्तेमाल करने जैसी समानताएं मिल रही हैं। जांच
में पता चला है कि बुधवार पेठ स्थित सोनी साईकिल ट्रेडिंग कंपनी से जिन लोगों ने
तीन नई साईकिलें खरीदी थीं, वे गुजराती भाषा
बोल रहे थे। इससे जांचकर्ताओं ने गुजरात मोड्यूल को भी शक के दायरे में रखा है।
उनका पता लगाने के लिए न केवल अहमदाबाद एटीएस का एक दस्ता पुणे आकर जमा है बल्कि
महाराष्ट्र एटीएस के दो दस्ते भी अहमदाबाद और सूरत की खाक छान रहे हैं।
जांच में
सीसीटीवी फुटेज में मोटरसाईकिलों पर दो संदिग्ध युवकों की जानकारी भी पुलिस को
मिली है। उनकी तलाश की जा रही है। चूंकि फुटेज धुंधले हैं इसलिए उन्हें फोरेंसिक
की मदद से साफ करके बाईक के नंबर हासिल किए जा रहे हैं। एक और काली बाईक पर एक
संदिग्ध युवक को लेकर पुलिस अधिकारी जांच कर रहे हैं। अभी तक हालांकि इनमें से कोई
भी पूछताछ के लिए नहीं मिल सका है। इऩ बाईक सवारों में से एक के कुछ फोटो
फर्ग्यूसन कॉलेज के सामने ही एक युवक ने अपने मोबाईल से भी खींचे थे। वे भी पुलिस
को दिए हैं। इनके आधार पर तीनों की तलाश जारी है।
पुलिस ने अब तक
पुणे, स्वारगेट और शिवाजीनगर
रेलवे स्टेशनों के सीसीटीवी फुटेज भी हासिल कर लिए हैं ताकि यह जांच कर सकें कि
कहीं आतंकी इनसे तो बाहर नहीं निकल चुके हैं। पुलिस को संदेह है कि आतंकी उनकी
पकड़ से दूर निकल चुके हैं। आतंकियों की तलाश में पुलिस कोंडवा और सैन्य इलाकों
में भी संकेत और सूत्र तलाश रही है। पुलिस को शनिवार पेठ बाजार की एक दुकान से भी
सीसीटीवी में एक नई साईकिल खरीद कर ले जाए हुए एक शख्श के फुटेज भी मिले हैं। उशे
भी तलाशा जा रहा है। कुछ भी हो जांच से संतुष्ट होने की बात कोई भी कहे। सच तो यह
है कि अभी तक पुलिस हवा में तलवारें भांज रही है।
पुलिस ने बमकांड
के पहले आसपास के सभी सेल फोन टॉवर के आंकड़े हासिल कर विश्लेषण किया जा रहा है कि
इस दौरान किसी आतंकी ने फोन किया हो सकता है। लेकिन सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है
कि आतंकियों ने सेल फोन न इस्तेमाल करने की रणनीति बहुत पहले से अपना रखी है।
जिसके कारण इस कसरत से कुछ हासिल होने की संभावना न के बराबर है। इससे साफ है कि
अभी तक पुलिस के हाथ खाली हैं। और अंधेरे कमरे में काली बिल्ली पकड़ने की कवायद
जारी है।
पुणे के बमों पर
आईएम के हस्ताक्षर
पुणे बमकांड में
फोरेंसिक रपट आई है जिसमें न्यूज एक्सप्रेस द्वारा पहले ही बताए वे सभी विस्फोटक
और सहायक सामग्री निकली है। हमे पहले ही दिन यह संभावना जता दी थी कि पुणे में जो
बम इस्तेमाल हुए हैं, वे अमोनियम
नाईट्रेट से तैयार किए हो सकते हैं। हमारे वरिष्ठ संवाददाता विवेक अग्रवाल आपको
बता रहे हैं कि कैसे ये बमकांड इंडियन मुजाहिदीन के करवाए हो सकते हैं।
फोरेंसिक
अधिकारियों का कहना है कि पुणे के बम बनाने के लिए एक टिन की शीट पर अमोनियम
नाईट्रेट के साथ फर्नेस आईल और मोम मिला कर उसका गाढ़ा लेप तैयार कर लगाया है,
जिस पर छर्रों की पूरी तह लगाई गई। उसमें
हाथघड़ियों और 9 वोल्ट की
बैटरियों को डिटोनेटर तैयार किया था। जो कि एक टाईमर की शक्ल ले चुका था। लगभग यही
तरीका जर्मन बेकरी बमकांड में भी इस्तेमाल हुआ था। फर्क इतना ही था कि जर्मन बेकरी
बमकांड में बम एक स्टील के डिब्बे में रखा गया था, इस बार की तरह लकड़ी के डिब्बे में नहीं। सूरत और अहमदाबाद
के बम देखें और पुणे के बम देखें तो उनमें काफी सटीक समानताएं हैं। दोनों में
अमोनियम नाईट्रेट के साथ में पेट्रोलियम उत्पादों का इस्तेमाल हुआ है। 9 वोल्ट की बैटरियां लगाई हैं। टाईमर के लिए
इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर भरोसा किया है। सूरत में ये माईक्रो चिप थे तो पुणे में
इलेक्ट्रानिक हाथ घड़ियां थीं। दोनों में लकड़ी के ही डिब्बे इस्तेमाल हुए हैं।
फर्क सिर्फ उनके डिजाईन का है। सूरत वाले लकड़ी के डिब्बे एक पुरानी लैंड माईन्स
के डिजाईन से प्रेरित थे तो पुणे वाले लकड़ी के डिब्बे महज चोकोर सामान्य डिब्बे
हैं जो किसी भी बढ़ई से बनवाए जा सकते हैं। दोनों में एक ही तरह से ऊपर साईकिलों
में लगने वाले बॉल बीयरिंग या छर्रों का इस्तेमाल मारक क्षमता बढ़ाने के लिहाज से
किया था। एटीएस अधिकारी अब कहने लगे हैं कि पुणे बमकांड पूर्वाभ्यास नहीं था बल्कि
पूरी तरह से आतंकी हमला ही था। उनसे बम बनाने में कुछ गंभीर चूक हुई हैं। जिसके
कारण ये बम नहीं फट पाए थे।
जानकारों का कहना
है कि पुणे के बम बनाने वाले से दो बड़ी गलतियां हुई हैं। पहली तो यह कि काफी समय
तक अमोनियम नाईट्रेट बारिश की नमी वाली हवा में खुला रहने के कारण काफी पानी सोख
चुका था। इसके कारण उसकी ताकत कम पड़ गई। दूसरा यह कि बम के लिए अमोनियम नाईट्रेट
और फर्नेस आईल को टिकाए रखने के लिए या गाढ़ा पेस्ट बनाने के लिए मोम का सहारा
लिया लेकिन वह मोम की मात्रा अधिक होने के कारण भी अधिक तीव्रता से बम नहीं फट पाए
थे। अमोनियम नाईट्रेट पुराना होने पर भी धमाका करने की ताकत कम हो जाती है। और
पुणे बमकांड में भी यह रसायन पुराना इस्तेमाल होने की जानकारी भी सामने आ रही है।
बम निरोधक दस्ते (बीडीडीएस) के एक अधिकारी का कहना है कि जो दो बम नहीं फटे हैं,
उनमें असल में सर्किट मिसमैच हो गए थे। इस
अधिकारी का कहना है कि उसने बम अच्छी तरह बनाए थे लेकिन चूंकि यह काम किसी नौसिखिए
का था, इसलिए कुछ ऐसी गंभीर
गलतियां रह गईं, जिनके कारण बम
नहीं फटे।
दयानंद पाटिल पर
संदेह क्यों
दयानंद पाटिल
इतनी बार बयान बदल चुका है कि पुणे पुलिस की अपराध शाखा और एटीएस महाराष्ट्र अब
उसके किसी बयान पर भरोसा ही नहीं कर पा रही है। और तो और उसकी कही हर बात की
तस्दीक दूसरों से करवाने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रही हैं।
दयानंद द्वारा
पहले यह कहने पर कि उसने धर्म परिवर्तन नहीं किया है। बाद में उसने यह कहा कि उसने
इस्लाम कबूल लिया है। पुलिस अधिकारी भौंचक्के रह गए हैं। मेडिकल जांच में जब यह तय
हो गया कि दयानंद पाटिल का काफी पहले ही खतना हो चुका था। तो इस बारे में पूछताछ
की गई तो पहले दयानंद ने इसके बारे में कोर्ई जानकारी होने से ही इंकार कर दिया।
बाद में उसने पुलिस अधिकारियों को बताया कि जब वह दो-चार माह का था तब ही कभी उसका
खतना हुआ था। उसने ससून अस्पताल के डाक्टरों को बताया कि खतना लगभग 8 साल की उम्र में उसके परिवार ने करवाया था।
एटीएस अधिकारी
दयानंद को लेकर उसके गांव बिदर पहुंचे हैं। वहां उसकी मां जीजाबाई से पूछताछ की तो
उन्होंने साफ तौर पर यह इंकार कर दिया कि उनके बेटे का खतना परिवार के किसी सदस्य
ने कभी करवाया था। उनके मुताबिक 14 साल की उम्र में
दयानंद रोजी-रोटी की तलाश में घर छोड़ कर गया तो लौटा ही नहीं। इस बीच वह सन 200-04 में जॉर्डन गया था। जहां उसने दर्जी के तौर पर
काम किया बताते हैं लेकिन उसकी पुष्टि अभी तक नहीं हो पाई है। दयानंद की मां
जीजाबाई कहती हैं कि वह सन 2006 में घर लौटा था।
उसने दो साल पहले शादी की थी।
7 अगस्त की रात
लगभग 10.30 बजे के आसपास ससून
अस्पताल से दयानंद को छुट्टी मिली तो वहां एटीएस के अधिकारी पहले से ही मौजूद थे।
उन्होंने दयानंद से कहा कि वे उसे लेकर घर जा रहे हैं लेकिन असल में उसे एक कार
में लेकर वे सीधे कर्नाटक के बिदर इलाके के लिए कूच कर गए। जहां 7 घंटे के सफर के बाद अल सुबह उसके परिवार के
सामने ही पूछताछ का दौर शुरू हो गया। दयानंद अभी भी एटीएस की हिरासत में ही है।
दयानंद की पत्नी सत्यकला का कहना है कि उसे नहीं पता है कि दयानंद कहां और किसके
साथ है। वह घर नहीं आया है।
दयानंद के बारे
में यह भी कहा जा रहा है कि वह जहां काम करता था। वहां से उसका घर काफी दूर एक
गांव में था। वह चाहता तो उसके काम की जगह के बेहद करीब बसी एक झोपड़पट्टी में
अधिकतम 2 हजार रुपए में घऱ मिल
सकता था। जिससे उसका आने-जाने का समय और काफी पैसा भी बच सकता था। लेकिन उसने दूर
घर लिया था, जिसे लेकर यही
माना जा रहा है कि वह अपने परिवार के बारे में कोई जानकारी यहां नहीं होने देना
चाहता था। इस बारे में पुणए पुलिस बी खामोश है तो एटीएस अधिकारी भी चुप्पी साधे
हुए हैं।
इंडियन मुजाहिदीन
का खतरा बरकरार
पुणे बमकांड की
जांच में एक और ऐसा चौकाने वाला तथ्य सामने आ रहा है कि सभी जांच अधिकारियों के
लिए नई मूसीबत ही मानो खड़ी होने जा रही है। यह लग रहा है कि एक बार फिर इंडियन
मुजाहिदीन को धन, विस्फोटक इत्यादि
मुहैय्या करवाने में लश्करे तैय्यबा ने भूमिका अदा की है। चूंकि जर्मन बेकरी
बमकांड में भी पहले एक बार पुणे में ही इस गंदे गठजोड़ ने काम किया था। इस बार भी
इसी तरह के संकेत मिल रहे हैं।
आतंकी गिरोह
इंडियन मुजाहिदीन का खतरा अभी टला नहीं है। वह अभी भी चुपचाप देश में काम कर रही
है। इस गिरोह का सबसे खतरनाक और वरिष्ठ सदस्यों में से एक ईटी जैनुद्दीन उर्फ
अब्दुल सत्तार केरल का निवासी है। जो हैदराबाद में सन 2009 में पकड़ा गया था। उसे बंगलूर बम धमाकों में आईईडी
मुहैय्या करवाने के लिए और सूरत बमकांड के लिए विस्फोटकों की सप्लाई के मामले में
गिरफ्तार किया जा चुका है।
आतिक अमीन को बम
बनाने का प्रशिक्षण देने के लिए यासीन भटकल ने पाकिस्तान भेजा था। लेकिन वह दिल्ली
के बाटला हाऊस एनकाऊंटर में पुलिस की गोलियों का शिकार होकर दम तोड़ चुका है। डॉ
शहनवाज को बम बनाना नहीं आता है।
इंडियन मुजाहिदीन
ने जैसे बम पुणे में लगाए थे, कमोबेश उसी तरह
के बम सूरत, अहादाबाद,
लखनऊ, फैजाबाद, वाराणसी, जयपुर, हैदराबाद में भी इस्तेमाल हुए हैं। इस आतंकी गिरोह का दायरा सिमटा नहीं है बल्कि
पुणे के मोड्यूल के पकड़े जाने के बाद वह अधिक सतर्क और होशियार हो चुका है। अब
उसने आतंकी हमलों की जिम्मेदारी लेनी भी बंद कर दी है ताकि उसके आतंकी पकड़े न जा
सकें।
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