स्पॉट फिक्सिंग का खेल : बुकियों के हथियार... लैपटॉप... सेटफोन... एंड्रायड एप्लीकेशन...


एक तरफ जहां जांच और खुफिया एजंसियों खुद को बेहतर और असरदार बनाने के लिए लगातार अत्याधुनिक उपकरणों और तकनीक से सज्जित करने में लगी है, लेकिन सट्टेबाजों के संसार के सबसे बड़े नामों के हाथों में जो उपकरण आप पाएंगे, वह इन एजंसियों से काफी आगे के होते हैं। यही वजह है कि इन सटोरियों को पकड़ पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी हो चला है।

सट्टा बुकि और उनके आकाओं के पास कैसे-कैसे शानदार और बेहतरीन अत्याधुनिक उपकरण होते हैं, कैसी तकनीक का इस्तेमाल वे करते हैं, उन्हें ये तमाम सामान कौन मुहैय्या करवाता है, उसकी तफसील से जानकारी पेश है।

वेबसाईट्स
अब बुकियों ने अपनी कुछ ऐसी वेबसाईट्स बना ली हैं जो विदेशों में पंजीकृत हैं। खासतौर पर उन देशों में जहां क्रिकेट पर सट्टा लगाना वैध है। इन वेबसाईट्स पर हर गेंद और रन के हिसाब से भावों के उतार-चढ़ाव देखे जा सकते हैं। पुलिस यदि उनका इस्तेमाल हिंदुस्तान में करने के लिए किसी को गिरफ्तार भी करती है तो वह इस कारण छूट जाता है कि वेबसाईट खोल कर देखऩा कि उस पर क्या सामग्री उपलब्ध है, किसी अपराध की श्रेणी में नहीं आता है।

सॉफ्टवेयर
बुकि नाम का ही एक सॉफ्टवेयर बाजार में उपलब्ध है। यह कुछ शरारती सॉफ्टवेयर इंजीनियरों के दिमाग की उपज है। वे इस सॉफ्टवेयर की एक प्रति एक कंप्यूटर या लैपटॉप में 25 से 35 हजार रुपए में डालते हैं। इस सॉफ्टवेयर की खूबी यह है कि जितने भी लोगों के कूट नामों के साथ उनके द्वारा लगाए सट्टे की जानकारी डाली जाती है, वह अलग-अलग उनके ही खातों में जमा होती रहती है। जब वलण का वक्त आता है तो बस एक क्लिक पर ही उनके नाम के सामने लेन-देन की रकम दिखने लगती है। इसके लिए अधिकतम 2 मिनट का समय लगता है। इस सॉफ्टवेयर की दूसरी बड़ी खूबी यह है कि यह सारे आंकड़े इनक्रिप्टेड फॉर्म में जमा करता है। यदि पुलिस के हाथों यह लैपटॉप या कंप्यूटर लग भी जाए तो बिना बुकि के पासवर्ड बताए कोई जानकारी देखी नहीं जा सकती। इतना ही नहीं इस सॉफ्टवेयर में एक ही क्लिक में पूरा सॉफ्टवेयर और उसमें भरी जानकारी सिरे से मिटाने के लिए एक प्वाईजन भी है। इस पर क्लिक करते ही तमाम जानकारियां न केवल हार्डडिस्क से पल पर में मिट जाती हैं बल्कि उन्हें वापस हासिल करना भी लगभग असंभव है। इतना ही नहीं, सॉफ्टवेयर को लॉगइन करने के लिए 3 से अधिक असफल कोशिश करने पर वह अपने आप ही पूरी तरह से मिट जाता है। इस सॉफ्टवेयर में पंटर का नाम, स्थान, सेल नंबर और टेलीफोन पर हो रही बातचीत की ऑडियो फाईल्स को एक साथ एक ही जगह पर देखना संभव है। इसमें छोटे बुकियों और उनके एजंटों के भी अलग खाते रखने की व्यवस्था होती है।

लैपटॉप
बेहतरीन क्वालिटी के लैपटॉप से आज के तमाम बुकि सन्नद्ध हैं। ये तमाम बुकि अपने आंकड़े लैपटॉप पर ही रखते हैं। लैपटॉप लेकर किसी भी होटल या चलती कार से भी काम करने में उन्हें परेशानी नहीं होती है। आकार में छोटे और वजन में हल्के लैपटॉप ही बुकियों की पसंद हैं। कुछ बुकियों ने तो एप्पल कंपनी के मैक लैपटॉप लेने शुरू कर दिए हैं क्योंकि भारत की लगभग किसी भी जांच एजंसी के पास मैक लैपटॉप से आंकड़े निकालने या साईबर फोरेंसिक की व्यवस्था अथवा विशेषज्ञता नहीं है। इसका फायदा इन बुकियों को मिलता है और अदालत में जांच में देरी का हंगामा मचा कर पुलिस और जांच एजंसियों को कटघरे में खड़ा करके जमानत भी हासिल कऱने में कामयाब हो जाते हैं। लैपटॉप में वे ऐसी ढेरों जानकारियां भी भरे रखते हैं कि पुलिस ये फर्जी सूचनाएं और कूट संकेत पढ़ने में या जांच में ही लगी रह जाती हैं और अंततः उलझ कर रह जाती है।

सेटफोन
सेटेलाईट फोन के जरिए बड़े बुकि आपस में जुड़े रहते हैं। इसके कारण वे मोबाईल फोन और टीवी के जरिए सट्टा लगा रहे पंटरों से लगभग 3 से 5 मिनट आगे रहते हैं, और इतना वक्त उनके लिए काफी होता है कि वे भावों के उतार-चढ़ाव में भी अपने लिए दो-पांच करोड़ रुपए के वारे-न्यारे महज एक ही गेंद या चौके-छक्के पर भी कर लेते हैं। इनके जरिए वे उन साथियों से जुड़े रहते हैं, जो मैदान में उपस्थित होते हैं औऱ पूरे मैच की हर जानकारी सेटफोन से देते रहते हैं। बड़े बुकियों को यह सबसे पहले मिलती है, उसके बाद वे जब लाईन पर भाव खोलते हैं तो टीवी के डीले ट्रांसमिशन के आसपास ही यह भाव पहुंचता है।  

वीओआईपी फोन
यह टेलीफोन इंटरनेट के जरिए काम करता है और किसी भी देश में खरीदा जा सकता है। विदेशों से खरीदे इन वीओआईपी फोन के नंबर या उपस्थिति के भारत में पता लगाने की कोई तकनीक नहीं है। इनका भारत में इस्तेमाल कोई भी कर सकता है। ऐसे ही फोन का इस्तेमाल 26-11 मुंबई आतंकी हमले में भी हुआ था। इनका इस्तेमाल भी कई बुकि कर रहे हैं। चूंकि इनका इस्तेमाल करने पर पुलिस और अऩ्य जांच एजंसियां आसानी से पता नहीं कर पाती हैं कि इनके जरिए कहां और किसे फोन किया जा रहा है, लिहाजा बुकि बेहद सुरक्षित रहते हैं। वीओआईपी फोन बेचने वाली विदेशी कंपनियां भारतीय जांच एजंसियों से सहयोग भी नहीं करती हैं, जिसके कारण बुकियों के लिए ये वीओआईपी फोन अधिक सुरक्षित हो गए हैं।

स्काईप फोन
स्काईप फोन भी इंटरनेट पर काम करते हैं, इन्हें भी किसी देश में खरीद सकते हैं। विदेशों से खरीदे इन स्काईप फोन की भी भारत में पता लगाने की तकनीक उपलब्ध नहीं है। 10 साल के छोटे से बच्चे से लेकर 90 साल के बुजुर्ग तक कोई भी आसानी से इस्तेमाल कर सकता है। किसी भी स्मार्ट सेल फोन पर स्काईप फोन का इस्तेमाल संभव है, अगर उस पर इंटरनेट सुविधा हासिल हो। इसके जरिए की बातचीत पुलिस और अऩ्य जांच एजंसियां आसानी से पता नहीं कर पाती हैं कि कहां और किसे फोन हुए हैं इसलिए बुकि भी इन्हें सुरक्षित मानते हैं। स्काईप फोन सिर्फ एक छोटा सा सॉफ्टवेयर डाल कर ही शुरू हो जाता है, और स्काईप चलाने वाली विदेशी कंपनी भारतीय जांच एजंसियों से सहयोग नहीं करती है, जिससे बुकियों और पंटरों में भी स्काईप फोन सुरक्षित माना जाता है।

एंड्रायड एप्लीकेशन
बुकियों ने कुछ ऐसे एंड्रायड एप्लीकेशन भी तैयार किए हैं, जिनके जरिए सीधे सिर्फ बुकियों और पंटरों के बीच ही सारा खेल चलता है। जिस तरह किसी भी स्मार्ट फोन पर कोई भी एंड्रायड एप्लीकेशन डाऊनलोड करके कोई समाचार देख या पढ़ सकते हैं, या फिर कोई खेल खेला जा सकता है, ठीक उसी तरह से गेंद-दर-गेंद और ओवर-दर-ओवर सट्टे के तमाम भाव चलते रहते हैं, उसी पर सीधे पंटर द्वारा बुकि के लिए सौदे किए जा सकते हैं, उनका रिकॉर्ड भी इस एंड्रायड एप्लीकेशन में तब तक रहता है जब तक कि बुकि खुद उसे साफ नहीं करता है। ऐसे में कोई पंटर या बुकि भी इंकार नहीं कर पाता है कि उनके बीच सौदा हुआ भी था या नहीं।

सीसीटीवी कैमरे
बुकियों ने सीसीटीवी कैमरों का भी बखूबी अपने बचाव के लिए इस्तेमाल किया है। उन्होंने अपनी बैठक की जगह से लगभग 1 किलोमीटर दूर तक सीसीटीवी कैमरे लगवाए ताकि कोई पुलिस अधिकारी या पुलिस कार इत्यादि आने की जानकारी उन्हें काफी पहले ही मिल जाए तो वे तुरंत वहां से सारा तामझाम समेट कर भाग निकलें। बुकि बड़ी समझदारी का परिचय देते हुए, किसी भी सीसीटीवी कैमरे की रिकॉर्डिंग का इंतजाम नहीं करते हैं। उन्हें पता है कि अगर वे इन कैमरों में डीवीआर लगा कर रिकॉर्डिंग का इंतजाम करेंगे तो उनके खिलाफ ये भी सबूत के रूप में भी इस्तेमाल हो सकता है।

विदेशी बैंक खाते और क्रेडिट कार्ड
ऑनलाईन बैंकिंग होने के कारण काफी सारे बुकियों ने विदेशी बैंकों में खाते खुलवाए हैं। उनके बड़े पंटरों के पास भी विदेशों में बैंक खाते हैं। वे पंटरों से कहते हैं कि सौदे करने के पहले एक निश्चित रकम उनके विदेशी बैंक खातों में डाल दें। इसके बाद वे तय रकम तक का सट्टा करते हैं। चूंकि पूरा काम विदेशी बैंक खातों और क्रेडिट कार्ड के जरिए होता है, भारतीय खुफिया एवं जांच एजंसियों को पता ही नहीं चलता है कि बुकियों और पंटरों के बीच काम कैसे चल रहा है। हवाला पर भी उनकी निर्भरता कम हो जाती है। वलण करना भी बेहद आसान हो जाता है। पंटरों के कई बैंक खातों के तो पासवर्ड भी बुकियों के पास ही होते हैं। जैसे ही खेल खत्म होता है और वलण की बारी आती है, बुकि खुद ही हार – जीत की रकम पंटरों के खाते में जमा करते या निकाल लेते हैं। और उन्हें हिसाब फोन पर समझा देते हैं।
विवेक अग्रवाल
21.05.2012

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