स्पॉट फिक्सिंग की
जांच के सिलसिले में मुंबई और दिल्ली पुलिस एक ओर जहां नाक की लड़ाई लड़ रहे हैं, वहीं
ये पता चला है कि दो बड़े बुकियों की लड़ाई में ही श्रीसंत समेत तमाम लोग कानून के
शिकंजे में फंस गए हैं।
पूरी दुनिया के आज
तक के क्रिकेट सट्टे के सबसे बड़े खुलासे की कहानी असल में तीन अलग-अलग कोणों से
सामने आ रही है।
पहली...
ये कहा जा रहा है
कि खुफिया ब्यूरो (आईबी) को कश्मीरी आतंकी इलियास की गिरफ्तारी के पहले फोन कॉल
निगरानी के दौरान पता चला था कि दाऊद गिरोह और बुकियों के बीच बातचीत जारी है।
उसकी जानकारी दिल्ली पुलिस को दी गई, और फिर एक फोन की निगरानी से दसियों फोन की
निगरानी तक यह सारा खेल सामने आ गया।
दूसरी...
ये कहा गया कि
स्पॉट फिक्सिंग की पहली जानकारी दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल ब्रद्रीश दत्ता को मिली
थी और वह उसकी जांच कर रहा था। इसके पहले कि वह कुछ कर पाता, एक दिन गोलियां बिधीं
उसकी लाश दिल्ली के एक घर में एक महिला के शव समेत बेहद रहस्यमय हालत में मिली।
उसके बाद दिल्ली पुलिस ने जांच आगे बढ़ाई तो सारा गोरखधंधा सामने आ गया।
तीसरी...
लेकिन असली कहानी तो ये है...
यह है तीसरी
सूचना, जो सबसे अहम है। यह जानकारी मिली है कि दिल्ली और मुंबई के दो बड़े बुकियों
के बीच पैसों के लेन-देन (वलण) को लेकर खासा घमासान मच गया था। एक वर्ल्ड कप मैच
के दौरान दिल्ली के इस बुकि ने मुंबई के बुकि के पास खासा सट्टा लगाया लेकिन हार गया।
दिल्ली बुकि ने पैसे चुकाने से साफ इंकार कर दिया तो मुंबई का बुकि बेहद बौखलाया। करोड़ों
रुपयों का यह सौदा ऐसे फोक (रद्द) होते देख कर मुंबई बुकि ने रकम की उगाही के लिए
तरह-तरह के उपाय शुरू किए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
इस बीच दिल्ली
बुकि ने मुंबई के भायखला इलाके में एक शानदार ऐशगोह बनाने के इरादे से बड़ा ही
मंहगा एक फ्लैट खरीदा। फ्लैट का सौदा करने वह मुंबई आया था। मुंबई बुकि ने दिल्ली
बुकि से यहां संपर्क किया। उसे पैसा चुकाने के लिए फिर से कहा। दिल्ली बुकि ने फिर
इंकार कर दिया। इसके पहले कि मुंबई बुकि कुछ कर पाता, मायानगरी मुंबई से दिल्ली
बुकि चुपचाप भाग निकला।
अब तो मुंबई बुकि
का पारा सातवें आसमान तक जा पहुंचा था। यह बुकि मुंबई के तत्कालीन पुलिस आयुक्त से
मिला। उन्हें दिल्ली के उस बुकि, माफिया सरगनाओं और क्रिकेट जगत के तमाम लोगों के
बीच चल रहे गोरखंधंधे की पूरी तफसील दी। उन्हें सबके टेलीफोन नंबर मुहैय्या किए। पुलिस
आयुक्त ने अपने स्तर पर तफ्तीश करवाई तो महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आने लगीं।
इसकी सूचना महाराष्ट्र के एक बड़े ही कद्दावर नेता को मिल गई तो उन्होंने पुलिस
आयुक्त को डपट दिया और वे चुप हो गए। कुछ समय बाद मुंबई आयुक्त सेवानिवृत्त हो गए
और वो जांच वहीं खत्म हो गई।
मुंबई बुकि फिर एक
बार इस हार से बौखला गया। उसने सही मौका तलाशा। अपने सूत्रों के जरिए मुंबई बुकि
ने दिल्ली पुलिस के एक आईपीएस अधिकारी को तमाम जानकारी मुहैय्या करवाई। इस आईपीएस
को लगा कि पिछले कई महीनों से निर्भया और गुड़िया बलात्कार कांड, हत्याओं और छोटे
अपराधों के चलते बुरी तरह बदनाम और जनता व राजनीतिकों का भरोसा खो चुकि दिल्ली
पुलिस की छवि सुधारने का इससे अच्छा मौका दूसरा नहीं मिलेगा। उन्होंने बद्रीश
दत्ता के जरिए इसकी जानकारियां हासिल करने का काम शुरु किया तो बेहद चौंकाने वाली
सूचनाएँ मिलनी शुरू हो गईं। इशकी जानकारी दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के कांग्रेस
के आला नेताओँ के सामने रखी तो उन्हें भी एक कद्दावर विरोधी नेता को इसके जरिए
दबाने का अचूक और रामबाण नुस्खा मिल गया। उन्होंने भी दिल्ली पुलिस को “छू” कर दिया। फिर तो लुकाछीपी और पकडमपाटी का जो पूरा सिलसिला आगे बढ़ा और जो
कुछ हुआ, सबके सामने है।
दिल्ली
पुलिस की कामयाबी में बुकि का हाथ
दिल्ली पुलिस जिस तरह
मुंबई में छापामारी कर रही है, बुकियों और क्रिकेटरों को जिन स्थानों से जा-जाकर दबोच
रही है, उस पर खुद सट्टा बाजार का मानना है कि दिल्ली पुलिस को किसी न किसी मुंबई
के ही बुकि का सहयोग है। मुंबई के किसी बुकि की जानकारियों और सहयोग के बिना यह सब
करना संभव न था।
सट्टाबाजार के
छोटे-बड़े हर किस्म के बुकि कहां बैठ कर सौदे लेते हैं, उसकी सूचना तो उनके परिवार
को भी नहीं होती है, मुंबई पुलिस या उनके मुखबिरों को भी नहीं मिलती, तो दिल्ली
पुलिस को उनके अड्डों की जानकारी कैसे मिली?
दिल्ली पुलिस अगर
ये कहती है कि टेलीफोन रिकॉर्डिंग से तमाम सूचनाएं मिली हैं, तो साफ है कि बुकियों
अपने अड्डों के पते कभी टेलीफोन पर बताते नहीं हैं। ऐसे में ये कहां से मिले
होंगे, यह कोई भी समझ सकता है।
इस तरह एक बात तो
साफ है कि क्रिकेट के रावण की यह लंका ढहाने में अंदर के ही एक विभीषण का हाथ है।
जो हो, दो बुकियों की लड़ाई के कारण ही सही, दिल्ली पुलिस की छवि चमकाने की मुहीम
के कारण ही सही, अब दिल्ली और पुलिस के बीछ मूंछों की लड़ाई के बहाने ही सही,
क्रिकेट की कालिख साफ करने का एक अच्छा मौका मिल गया है। यह और बात है कि यह कालिख
जल्द ही उन राजनीतिकों द्वारा फिर से कालीन के नीचे छुपा दी जाएगी, ये जांच भी फिर
से उन राजनेताओँ और खरबपति कारोबारियों द्ववारा उलझा दी जाएगी जो क्रिकेट क्लबों
पर काबिज हैं, करोड़ों रुपए का वार-न्यारा करते हैं, और जो नहीं चाहते हैं कि किसी
भी हाल में क्रिकेट से ये गंदगी जाए।
विवेक अग्रवाल
24.05.2013
Comments
Post a Comment