इंडियन मुजाहिदीन का आतंक: पाकिस्तान में अफजल उस्मानी मिला आतंकियों से



विवेक अग्रवाल
मुंबई, 20 सितंबर 2013
अफजल उस्मानी की फरारी पर किसी को भी अचरज नहीं हो रहा है। अफजल जब गिरोहबाज था तब बी वह एक मामले में जमानत हासिल कर फरार हो गया था। यह दूसरा मौका है जब वह पुलिस के चंगुल से भाग निकलने में कामयाब हुआ है। उसकी फरारी की खबर की पुष्टि मुंबई एटीएस के मुखिया राकेश मारिया भी कर चुके हैं। पहली फरारी के बाद वह पुलिस की निगाहों से बचने के लिए पाकिस्तान भाग गया था।

पाक में जेएएम से मुलाकात
अफजल उस्मानी को अदालत ले जाते पुलिसकर्मी। फोटो सौजन्य - डीएऩए
जानकारी मिली है कि पहली बार पुलिस के हाथों से वह 1999 में फरार हुआ था। तब वह आरएन कंपनी के लिए काम करता था, जिसका मुखिया रियाज भटकल था। वह जमानत पर निकला तो एक नकली पासपोर्ट पर सीधा पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर जा पहुंचा था। पाकिस्तान प्रवास के दौरान उसकी मुलाकात कश्मीरी आतंकियों से हुई थी। तभी वह आतंकियों के करीब आया था। इन आतंकियों ने उसके दिमाग में भी जिहाद का फितूर भर दिया था। उसने जैश-ए-मोहम्मद नामक आतंकी गिरोह के कुछ सदस्यों से हाथ मिला लिया और वह भारत लौट आया था। असल में अफजल ने इन आतंकियों से वादा किया था कि वह मुंबई माफिया के जरिए हथियारों और गोला-बारूद की खेप कश्मीर में आतंकियों को मुहैय्या करवाएगा।

आतंकियों का मददगार
पुलिस सूत्रों का ये भी कहना है कि कोलकाता के जुता व्यापारी खादिम शूज के मालिक पार्थ प्रतिम राय बर्मन का अपहरण होने के बाद जो 4.24 करोड़ रुपए की फिरौती वसूली गई थी, उसमें से 3.75 करोड़ रुपयों को सुरक्षित पहुंचाने का काम अफजल ने ही किया था। तब तक वह भी इंडियन मुजाहिदीन का हिस्सा बन चुका था।

अफजल के ही सहयोग से तो इंडियन मुजाहिदीन का महाराष्ट्र में इस कदर फैलाव संभव हुआ था। यही नहीं पुणे में भी उसने पूरा एक मोड्यूल तैयार करवाने में रियाज और इकबाल भटकल की खासी मदद की थी। उसने अहमदाबाद व सूरत में बम लगाने के लिए कुल चार कारें चुराई थीं। कारें चोरी कर उसने मोहम्मद आतिफ को पहुंचाई थीं।

अफजल का बांग्लादेश संपर्क
अफजल ने गिरफ्तारी के बाद पुलिस को पूछताछ में ये भी बताया था कि वह आतंकियों के लिए साजो-सामान मुहैय्या करवाता है। अफजल मऊ का मूल निवासी है। वह आतंकी गिरोहों को न केवल साजो-सामान और हथियार व बारूद मुहैय्या करवाता था, बल्कि उनके आवागमन में भी जुटा हुआ था। वह अपने बांग्लादेश स्थित डी-कंपनी के संपर्कों के जरिए आतंकियों को भारत लाने और सुरक्षित रूप से बाहर निकालने के काम भी करता था।

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