आतंकी कारखाने से डी-कंपनी बाहर – भाग 11 - रियाज फिसला जर्मन बेकरी बमकांड के पहले

विवेक अग्रवाल
मुंबई, 1 दिसंबर 2013 
रियाज भटकल तो पुणे के कोंडवा इलाके में काफी दिनों तक एक घर किराए पर लेकर पुणे की जर्मन बेकरी बमकांड के पहले रहा था। वह काले रंग की एक यमाहा बाईक पर मुंबई से पुणे हमेशा आता जाता था। इस बाईक के हैंडल पर 26/11 लिखा हुआ था। उसके साथ मुंब्रा का एक और सहयोगी होता था। उस दौरान रियाज ने सिर मुंडा लिया था। वह चेहरे की मूंछे और दाढ़ी भी हटा चुका था। 
 
रियाज के बारे में मुंबई के एक मुखबिर ने एटीएस अधिकारियों को सूचना दी। यही नहीं, उस मुखबिर ने कोंडवा के उस घर का लैंडलाईन टेलीफोन नंबर भी एटीएस अधिकारियों को मुहैय्या करवाया, जिससे रियाज भटकल अपने सहयोगियों – साथियों से संपर्क में रहता था। वह मुखबिर लगातार एटीएस अधिकारियों के पीछे पड़ा रहता कि रियाज भटकल मुंबई और पुणे में सक्रिय है, उन्हें तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। 
 
आलसी और मदमस्त एटीएस अधिकारियों ने मुंबई से पुणे के बीच का महज 3 घंटे का फासला तय कर कोंडवा में रियाज के उस घर तक जाना और उसकी निगाहबीनी की व्यवस्था करना भी उचित नहीं समझा, जिसके बारे में मुखबिर लगातार सूचनाएं मुहैय्या करवा रहा था। एटीएस अधिकारियों ने बस इतना किया कि उस टेलीफोन लाईन की रिकॉर्डिंग की व्यवस्था कर ली। 

हैरानी के बात तो यह है कि एटीएस अधिकारियों ने जब इस टेलीफोन लाईन पर होने वाली बातचीत सुनी तो मुखबिर को ही डपट दिया कि कोई चिटफंड कंपनी के दफ्तर का फोन नंबर दे दिया है। उस पर जो भी बातें होती हैं, वे पैसों के लेन-देन और जमा-निकासी को लेकर होती हैं। वे ये समझ ही नहीं सके कि रियाज भटकल जैसा शातिर और खूंखार आतंकी क्यों आखिर खुले तौर पर बम, धमाके, आईएम, आतंक, जिहाद, विस्फोटक जैसे शब्दों का इस्तेमाल करेगा।
कई महीनों की मुखबिर मिट्टी में मिल गई। वह बुरी तरह हताश हो गया। गुस्से में घर आकर उसने वह डायरी फाड़ कर फेंक दी, जिसमें रियाज भटकल से संबंधित तमाम जानकारियां लिखी थीं। 
 
...और कुछ ही दिनों बाद जर्मन बेकरी बमकांड हो गया। अब एटीएस अधिकारियों को लगा कि उनसे बड़ी चूक हो गई है। वे फिर उस मुखबिर की तलाश में भागे। उसे फोन किया लेकिन अब तक मुखबिर का मनोबल टूट चूका था, उसे एटीएस अधिकारियों पर भरोसा न रह गया था, मुखबिर के संपर्कों ने भी उससे नाता तोड़ दिया था, मुखबिर ने एटीएस अधिकारियों को दो टूक जवाब दे दिया कि अब वह और मेहनत नहीं करेगा। पहले ही वह अपनी जेब से हजारों रुपए इसीलिए खर्च कर चुका था, क्योंकि वह चाहता था कि देश के कुछ लोगों की जानें बच जाएं। 

इस मामले में तो वह मुखबिर एटीएस से ईनाम की भी उम्मीद नहीं रखता था। देश का खुफिया और जांच एजंसियों के अधिकारियों का रवैय्या ऐसा ही रहेगा तो न कभी आईएम का कोई आतंकी पकड़ा जाएगा... न किसी को सजा ही होना संभव होगा।
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