आतंकी कारखाने से डी-कंपनी बाहर – भाग 12 - सिमी का सफाया करते साफ हुए साहेब सिंह जाट

विवेक अग्रवाल 
मुंबई, 2 दिसंबर 2013 

समाज के बीच से लोगों से मिल कर कुरेद-कुरेद कर ऐसा जानकारी हासिल हो सकती है, जो आसानी से कार्रवाई योग्य सूचना में तब्दील हो सके। इसका एक सफल उदाहरण इंदौर पुलिस की राज्य खुफिया इकाई में तैनात सब इंस्पेक्टर साहेब सिंह जाट का है। वे लगातार दो सालों तक सिमी के सबसे खूंखार दरिंदों, जिनमें सफदर नागौरी भी शामिल है, बाकायदा नमाज अदा करते रहे, उनके साथ ही खाते-पीते रहे, उनकी जीवन शैली अपनाए रहे। एक विशुद्ध पुलिस अफसर का महिनों तक उनके बीच में रहने के बावजूद बेहद शातिर और चालाक सिमी आतंकियों को यह पता न चलना अपने आप में एक चमत्कार से कम नहीं है। 
 
साहेब सिंह जाट की इस शानदार खुफिया रणनीति का नतीजा ये हुआ कि सिमी के कुल 58 आतंकियों की एक माह में गिरफ्तारी हुई थी। इसका सबसे दुखद पहलू यह है कि श्री जाट का नाम और तस्वीरें कुछ आला अफसरान ने अपनी विशुद्ध मूर्खता का परिचय देते हुए तमाम राष्ट्रीय व दैनिक अखबारों में भी छपवा दीं। उनकी पहचान गोपनीय न रही। सिमी के आतंकियों ने उन्हें धमकी दी कि जब वे छूट कर बाहर आएंगे, उनसे निपट लेंगे।

इससे भी बुरी बात यह हुई कि इतनी महान उपलब्धि पर भी जो 150 पुलिसकर्मियों और अफसरान की सूची बनी, जिन्होंने इन सिमी आतंकियों की गिरफ्तारी के लिए मेहनत की थी, उनमें आईपीएस अधिकारियों से लेकर कार चालकों तक के नाम थे... बस नहीं था तो साहेब सिंह जाट का नाम। 
 
इतना ही नहीं एसआईबी के एक जलनखोर आईपीएस अधिकारी ने श्री जाट का तबादला राजबाड़ा पुलिस चौकी में कर दिया, उनकी सुरक्षा के लिए मिली पिस्तौल भी जमा करवा ली, उन्हें राजबाड़ा पर साधारण पुलिसवालों की तरह बंदोबस्त में लगा दिया। अब उन पर सिमी का एक अदना सा सदस्य भी कभी एक चाकू से भी हमला करता तो उनके पास बचाव का कोई जरिया न था। 
 
आज साहेब सिंह जाट इंदौर के ही एक बने बाल पुलिस थाने में काम कर रहे हैं। सिमी आतंकियों का यह जीवित सूचना कोष अपने ही शानदार कार्यों के कारण विस्थापित जीवन जीने के अभिशप्त है।
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