हिंद का कैदी : दूसरा कसाब



अनजाने आया भारत, पाक लौटने की चाहत
मुंबई में इन दिनों एक ऐसा इंसान बसता है जो हिंद का कैदी है। वह भले ही मुंबई में रहता है, एक आजाद परिंदा है, लेकिन उसका दिल खुली फिजाओं में भी घुटता है। उसके सीने में 18 सालों से एक गहरा जख्म पलता है, जो हर पल रिसता है। उसका यह जख्म पल-पल टीसता है लेकिन इसका इलाज उसके पास नहीं है। कोई अगर उसकी यह तकलीफ दूर कर सकता है तो वह दो मुल्कों के हुक्मरान। यहां के अफसरान। अफसोस कि किसी को सिराज और उसके परिवार की तकलीफ और हालात से कोई लेना-देना नहीं है। वे तो बस सिराज को हलाकान किए हैं।


सिराज मुराद खान 11 साल की छोटी सी उम्र में एक गलती कर बैठता है, और उसक छोटी सी एक गलती का खामियाजा आज भी भुगत रहा है। पाकिस्तान वापस जाने के लिए बेतरह तड़प रहे सिराज ने हालांकी मुंबई हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन आज भी वह अदालत और सरकार के रहमो-करम पर ही जिंदा है।

29 साल के सिराज का कहना है कि जब वह 11 साल का था, तब पाकिस्तान से अनजाने में भारत आ गया था। वक्त बीतता गया और उसका भारत की एक सुंदर सी लड़की से निकाह भी हो गया। उसके तीन बच्चे भी हो गए लेकिन उसका दिल हर वक्त अपने परिवार से मिलने के लिए तड़पता है। अब वह परिवार के पास पाकिस्तान लौटना चाहता है लेकिन सरहदें उसे रोकती हैं। इंसानों की बनाई सरहदें ही उसके जी का जंजाल बन गई हैं।

मुसीबत दुसरी भी है। मुंबई के लोग हैं कि उसे चैन से जीने नहीं देते। वे उसे पाकिस्तान का गुंडा’… दूसरा कसाब कह कर चिढ़ाते हैं। वह बेचारा मन मसोस कर रह जाता है। वह किसी को पलट कर जवाब भी नहीं दे पाता है। उसे डर लगता है कि कहीं फिर पुलिस जेल की सलाखों के पीछे न ठूंस दे। उसने किसी तरह अपनी जो गृहस्थी बनाई थी, वह एक बार तो पूरी तरह से लुट चुकी है। अब वह फिर सारी जमा-पूंजी और गृहस्थी बरबाद करना नहीं चाहता।


मुंबई हाईकोर्ट जस्टिस एएम खानविलकर की बेंच में सिराज के वकील एजाज नकवी मामला रख चुके हैं। एजाज नकवी के मुताबिक सिराज पीओके के मानशेरा गांव में पैदा हुआ था। रोज-रोज स्कूल जाने और वहां के सख्त मास्टर से बचने के लिए एक दिन घर से भाग निकला। अपने मामा के पास कराची जाने के चक्कर में एक ट्रेन में सवार हो गया। कच्ची उम्र के सिराज को पता न था कि यह ट्रेन कहां जाती है। वो गलती से अटारी सीमा से लाइन ऑफ कंट्रोल अनजाने में पार कर भारत आ गया। बस, यहीं से उसकी मुश्किलात बढ़ चलीं।

अदालत में यह परेशानी पैदा हो गई कि सिराज असल में कहां का रहने वाला है। वो पाक नागरिक है या पाक प्रशासित कश्मीर से है। जब सिराज ने पिता से बात कर अपने गांव के स्कूल के प्रमाण पत्र से लेकर गुमशुदगी से संबंधित इंकलाब अखबार की कतरन तक मुहैय्या करवा दी तो साफ हो गया कि वो भारतीय नागरिक नहीं है। न वो पीओके से ही है। वो पाक नागरिक है। अब उसे मुकदमा झेलना होगा। वो बिना पासपोर्ट, वीजा और अन्य जरूरी दस्तावेजों के भारत आने का अपराध आज से 18 साल पहले जो कर चुका है। बचपन की एक गलती ने उसे इस हाल में पहुंचा दिया कि वो न घर का रहा न घाट का।

1995 में भाग कर भारत आने की एक छोटी सी गलती आज भी सिराज के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है।

अब सवाल यह है कि भारत का कोई निवासी पीओके से हो, तो भारत सरकार की नज़र में वो पाक नागरिक होगा या हिंदुस्तानी? दूसरा सवाल यह भी है कि यदि वो खुद स्वीकारे कि अवैध रूप से भारत आया और रहता है तो अदालत क्या करेगी? वह अदालत में रो-रोकर दुहाई दे कि उसे वापस पाक जमीन पर भेजें तो सरकार क्या करेगी? हाईकोर्ट में महाराष्ट्र सरकार के सामने ये तमाम सवालात उठे तो तत्कालीन एडवोकेट जनरल ने सिराज को भारतीय नागरिक मानते हुए तर्क दिया कि भारतीय संविधान के अनुसार पाक कब्जे वाला कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, इसलिए सिराज भारतीय है। सरकार ने अदालत में सिराज पर लगाए अवैध पाक नागरिक होने का इल्ज़ाम भी वापस ले लिया।

इससे बात नहीं बनी। सिराज की तकलीफ ही दूसरी थी। उसका घर तो असल में पाकिस्तान में था। उसने जब साबित कर दिखाया कि वो पाक निवासी है, तो उसके खिलाफ तमाम आरोप फिर आयद हो गए। अब वह फिर एक अदृश्य पिंजरे में फंस कर आजाद होने के फड़फड़ाने लगा।

सिराज कहता है कि उसके लिए जुबान भी एक बड़ी मुसीबत बन गई। वह अपनी भाषा पश्तो नहीं बोल पाता। उसे उर्दू जुबान भी नहीं आती। वह तो हिंदी बोलता है। उसके माता-पिता ये जुबान नहीं जानते। यह पूछने पर कि क्या उसकी मां से बात होती है, सिराज की आंखों से आंसुओं की धारा बह निकलती है। वह कहता है कि बात तो क्या होती है, बस वे रोती रहती हैं, कुछ कहती हैं लेकिन समझ में नहीं आता। इधर बेचारा सिराज रोता है, वह जो कुछ कहता है, वे समझ  नहीं पाती हैं। वे जो कहती हैं, उसके अब्बा किसी तरह तर्जुमा करके बताते हैं। वे पूछते हैं कि क्या मौत के बाद वापस घर लौटेगा?

सिराज का कहना है कि वो कुछ समय बनारस में भी रहा। उसके बाद मुंबई आया, यहां उनकी शादी एक भारतीय मुसलिम लड़की से सन 2003 में हुई। सिराज अब तीन बच्चों का पिता है, जिसमें जुड़वां लड़के हैं।

सिराज पाकिस्तान जाने के चक्कर में वाघा सीमा तक गया लेकिन जा नहीं पाया क्योंकी अधिकारियों ने उससे कहा कि यदि सरहद पार जाना है तो सही दस्तावेज और मुंबई पुलिस के साथ आए, तो ही उसके लिए गांव जाने के रास्ते खुलेंगे।

सिराज की आँखों  में तब आंसू भर आते हैं, जब वह पाकिस्तान दूतावास के बारे में बात करता है। वह एक बार दिल्ली स्थित पाकिस्तान दूतावास गया और गुहार लगाई कि उसे अपने गांव पाक भेजें लेकिन वहां के अफसरान ने उससे मिलना भी उचित नहीं समझा। उसे डांट-डपट कर भगा दिया। सिराज ने कई बार दिल्ली स्थित पाक दूतावास के चक्कर लगाए लेकिन उनकी सुनने के लिए वहां कोई तैयार न था। सिराज को इस से बेहद तकलीफ होती है कि मादरे वतन के ही अफसरान ऐसा खराब बरताव कर रहे हैं।

पाक दूतावास के जरिए भी जब घर लौटने में सिराज को सफलता न मिली तो उसने मुंबई सीआईडी से कहा कि उसे पाकिस्तान भेजें। यहां भी अफसरान ने पहले तो उससे सहानुभूति दिखलाई, फिर कहा कि तमाम जरूरी दस्तावेज पेश करे, साबित करे कि वो पाकिस्तानी है, उसे वापस भेज देंगे। उसने सब कुछ किया लेकिन अफसरान ने उसकी बातों पर न तो गौर किया, न ही उसे वापस भेजा।

अंततः सिराज ने एक वकील के जरिए मुंबई हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत में गुहार लगाई कि उसे पाकिस्तान भेजा जाए। सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार को डांट लगाई कि एक अवैध नागरिक को अब तक मुंबई में रहने की इजाज़त कैसे और किसने दी है, ऐसी लापरवाही देश के लिए खतरा बन सकती है।

महाअधिवक्ता डेरिस खंबाटा ने याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस एएम खानविलकर और एआर जोशी की खंडपीठ में कहा कि खान के खिलाफ दर्ज सभी मामले वापस होंगे लेकिन यह बात पूरी तरह सच नहीं निकली।

आज सिराज एक कैटरिंग कंपनी में नौकरी करता है, जहां उसे हर दिन 350 से 450 रुपए मिलते हैं। वह भी उस दिन, जब वह काम पर जाए। जितने दिन उसके पास काम नहीं होता, उतने दिन वह सपरिवार फाकाकाशी करता है। उसका दर्द यही है कि कोई उसे पक्की नौकरी नहीं देता। उसका साथ मुंबई में देने वाला कोई नहीं है। यहां तक कि मुसलिम परिवार भी उससे दूरी बनाए रखते हैं, उन्हें भी पाक या आईएसआई एजंट या आतंकियों का मददगार समझे जाने का खतरा जो सताता है।
विवेक अग्रवाल, 08 अक्तूबर 2014

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