मोती घोटाला – भाग 6 : मोती में आरईपी लाईसेंस का गोरखधंधा

सफेद मोतियों के काले कारोबार में आरईपी लाईसेंस के गोरखधंधे ने खासी मदद दी है। यदि आरईपी लाईसेंस न हो तो समझ लें कि मोतियों के आयात से सरकार को सैंकड़ों करोड़ रुपयों की आमदनी बतौर सीमा शुल्क होनी तय है।

क्या और कैसा है ये आरईपी लाईसेंस का गोरखधंधा? कैसे सहायक है यह मोतियों की कालाबाजारी और तस्करी में? इसकी जानकारी हासिल की तो बड़े सनसनीखेज राज फाश हुए।

मोतियों की तस्करी के मामले में सबसे अधिक सहायक योजना, खुद सरकार द्वारा निर्यात को बढ़ावा देने के नाम पर बनाई है। जाईंट डीचीएफटी के इस लाइसेंस पर मोतियों का पूरा काला धंधा होता है। यही कारण है कि मोती तस्करी के ताकतवर सरगना यह योजना हटाने का विरोध करते हैं। साम – दाम – दंड – भेद – नीति का प्रयोग कर येन-केन-प्रकारेण यह योजना जारी रखवाते हैं।

क्या है आईपी लाईसेंस
यह डायरेक्टर जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड (डीजीएफटी) द्वारा निर्यात के सामने जारी होने वाला आरईपी लाईसेंस होता है। यह ज्वाईंट जीडीएफटी के दफ्तर से जारी होता है। यदि कोई कंपनी 100 करोड़ का माल विदेश भेजती है तो उसे 50 करोड़ का माल विदेश से भारत मंगाने के लिए सीमा शुल्क में लाभ मिल जाता है।

यह कोई भी निजी कंपनी किसी को भी दे सकती है। कोई कंपनी अगर किसी माल का निर्यात करती है तो उसके एवज में यह लाईसेंस मिलता है। इसके तहत किसी भी कंपनी को अपना माल विदेश भेजने के बाद विदेशी मुद्रा कमाने पर किसी और वस्तु का आयात पर सीमा शुल्क में छूट का लाभ मिलता है।

किसी ग्रुप के आरईपी लाईसेंस पर उसी ग्रुप के सामान विदेश से मंगाए जा सकते हैं।

आरईपी लाईसेंस का बाजार
आमतौर पर होता यह है कि बाजार में यह लाईसेंस खरीदा-बेचा जाता है। कई ऐसी कंपनियां हैं जो विशुद्ध रूप से यही कारोबार कर रही हैं। वे आरईपी लाईसेंस से मोटी रकम पीट रही हैं। कई कंपनियां नकली अथवा बेहद घटिया किस्म का माल विदेश भेजती हैं। उसकी कीमत वे काफी अधिक रखती हैं।

इसे कुछ यूं बताया जा सकता है। रेशमी कपड़ा जो सबसे उम्दा गुणवत्ता का दिखाया जाता है, वह असल में बेहद घटिया किस्म की चिंदी भर कर घोटाला करने वाली कंपनी द्वारा विदेश भेजा जाता है। यदि 100 करोड़ की रेशमी चिंदी भेजी है तो उसके सामने 50 करोड़ रुपए का आरईपी लाईसेंस मिल जाता है। यही आरईपी लाईसेंस बाजार में बेच कर मोटी रकम हासिल होती है। इस तरह 100 करोड़ रुपए का काला धन सफेद होकर इस तरह से भारत लौट आता है। दूसरा ये कारोबारी अपना आरईपी लाईसेंस किसी और मोती कारोबारी को बेच कर मोटा मुनाफा पीटते हैं।

आरईपी लाईसेंस और मोती बाजार
बता दें कि यह आरईपी लाईसेंस बाजार में मोती कारोबारियों को किसी भी अन्य कारोबारी से महज .25 से .50 फीसदी की दर से हासिल होता है। गरज अधिक होने पर आरईपी लाईसेंस कभी-कभी एक फीसदी तक की ऊंची दर पर भी लिया जाता है।

जब कोई मोती तस्करी गिरोह या कंपनी अपना माल विदेश से मंगाती है तो इसी आरईपी लाईसेंस का फायदा उठाती है। ये लोग सबसे पहले तो तैयार और मंहगे मोती की खेप को कच्चे और सस्ते मोती के रूप में कम कीमत का दिखाते हैं। इस तरह पहले ही प्रोसेस्ड मोती पर लगने वाली 10 फीसदी का सीमा शुल्क चोरी कर लेते हैं।

अनप्रोसेस्ड मोती पर सीमा शुल्क वैसे ही 5 फीसदी लगता है। 1.50 लाख रुपए प्रति कैरेट के बेहतरीन मोती को जब यह गिरोह महज 10 डॉलर प्रति किलोग्राम मूल्य का दिखाते हैं तो यूं भी उन्हें अधिक सीमा शुल्क नहीं लगता है। बावजूद इसके वे आरईपी लाईसेंस भी इस खेप के साथ जोड़ देते हैं। इस तरह से पूरी खेप ही शून्य सीमा शुल्क के साथ भारत में आ पहुंचती है।

कच्चे के बदले तैयार माल
नियम तो यही होता है कि कोई आयातक कच्चा माल विदेश भेजता है, तो उसके सामने कच्चा माल ही विदेश से भारत लाना होता है। मोती के मामले में भी आरईपी लाईसेंस के तहत सभी माल आयात की जांच करें तो पाएंगे कि तैयार मोती काफी मात्रा में निकलेगा। ऐसे में कस्टम्स अधिकारियों को सीधे यह तैयार मोती की खेप जब्त कर आयात करने वाली कंपनी, सीएचए और संबंधित लोगों को गिरफ्तार कर मुकदमा चलाना चाहिए। कारण यह है कि यदि कच्चे मोतियों के नाम पर आई खेप में यदि तैयार मोती निकलते हैं या जेवरात बने हुए निकलते हैं तो वह आयात ही अवैध हो जाता है।

सबकी मिलीभगत
इस खेल में चूंकी कस्टम्स अधिकारियों से लेकर वैल्यूएशन बोर्ड के सदस्यों तक की मिलीभगत होती है, इसलिए बिना रोक-टोक के सारा माल इस कथित आरईपी लाईसेंस गोरखधंधे के साथ बाजार में जा पहुंचता है।

मुश्किल बात यह है कि किसी भी मामले में कस्टम्स कभी भी जांच के दौरान किसी माल के तस्वीरें नहीं खींचते हैं। ऐसे में यह बता करना असंभव होता है कि जो माल वे पहले छोड़ चुके हैं, वह तैयार माल था या कच्चा... वह तैयार आभूषण था या कुछ और। इन हालात का फायदा हमेशा मोती के कालाबाजार चलाने वाले और तस्करों को ही होता है।

विवेक अग्रवाल, मुंबई
(यह समाचार हिंदी, मराठी, गुजराती के कई प्रसिद्ध समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुका है।)

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