सफेद मोतियों के काले कारोबार की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाने चाहिएं, इस बारे में विचार होना चाहिए। मोती कारोबार से जुड़े कुछ कारोबारियों, विशेषज्ञों और कस्टम्स अधिकारियों से चर्चा करने के बाद यह निष्कर्ष निकला कि यह काला कारोबार आज तक इसलिए जारी रहा है क्योंकि खुद सरकार ऐसा करने की छूट दे रही थी। यही नहीं, इसमें भ्रष्ट कस्टम्स अधिकारियों की मिलीभगत भी होती है।
जानकारों की राय में मोती तस्करी के साथ ही मोतियों पर सीमा शुल्क की चोरी रोकने के कुछ उपाय किए जा सकते हैं।
आरईपी लाईसेंस बंद
आरईपी लाईसेंस की व्यवस्था मोती कारोबार पर तुरंत प्रभाव से खत्म हो। इसी का इस्तेमाल करके सबसे अधिक सीमा शुल्क की चोरी होती है। आरईपी लाईसेंस का इस्तेमाल जैसे ही मोती आयात पर बंद होगा, वैसे ही सीमा शुल्क चोरी का एक बड़ा जरिया खत्म हो जाएगा।
दूसरी कंपनी का आरईपी लाईसेंस बंद
दूसरी कंपनी का आरईपी लाईसेंस इस्तेमाल करना तुरंत प्रभाव से बंद किया जाए। जैसे ही यह काम होगा, सैंकड़ों फर्जी और बेनामी कंपनियां बंद हो जाएंगीं। बहुत सारी हीरा कारोबार से जुड़ी कंपनियों का तो काम ही यही है। वे कच्चा हीरा लाना दिखाती हैं, बाद में उन्हें पॉलिश करके वापस भेजना दिखाती हैं। असल में कच्चा हीरा ही आता है, कच्चा हीरा ही वापस जाता है। एक ही हीरे की खेप भारत में आती-जाती रहती है। उस पर आरईपी लाईसेंस का लाभ लेने का खेल निरंतर जारी रहता है। जब किसी आयातक के पास किसी अन्य कंपनी का आरईपी लाईसेंस इस्तेमाल करने की छूट नहीं होगी, वे मजबूरन सीमा शुल्क चुकाएंगे।
समान सीमा शुल्क
हर किस्म के मोतियों के आयात पर एक समान सीमा शुल्क कर दें। यदि पांच या 10 फीसदी के बदले में हर किस्म के मोतियों पर कुल पांच फीसदी ही सीमा शुल्क होगा तो सीमा शुल्क की चोरी में कमी आएगी। जानकारों का कहना है कि अलग-अलग श्रेणी होने के कारण ही सीमा शुल्क में चोरी की प्रवृत्ति भी अधिक पनपती है। समान सीमा शुल्क होने पर यह समस्या काफी हद तक कम हो सकती है।
जब्ती और नीलामी
मोतियों की कीमत और गुणवत्ता कम बताने वाले आयातकों का पूरा माल जब्त हो। जब्त माल की नीलामी की जाए। उससे जो रकम हासिल हो, उसमें से आयातक द्वारा बताई रकम और उशके ऊपर 10 फीसदी लाभ देकर उसके खाते में कस्टम्स द्वारा भर दें। बाकी रकम सरकारी खजाने में जमा की जाए। नीलामी की दर भी इस किस्म विशेष के मोती के वैश्विक बाजार में उस दिन की कीमत के आधार पर ही तय हो। एक न्यूनतम कीमत तय होनी चाहिए।
यदि किसी खास गुणवत्ता का मोती यदि विश्व बाजार में 1,500 डॉलर प्रति कैरेट का है, उसे आयातक ने महज 50 या 100 डॉलर का दिखा कर ही आयात किया है, तो उसे नीलामी में कम से कम 1,200 डॉलर के भाव पर उतारा जाए। इससे अधिक जो बोली लगा कर माल खरीदेगा, उसी को यह माल सौंपा जाए। इस तरह से दो-चार बार नीलामी हुई तो कोई भी मोती कारोबारी माल लाना बंद कर देगा।
10 साल के मामले खोलें
जिन लोगों या कंपनियों ने मोतियों का आयात गलतबयानी के जरिए किया है, पिछले 10 सालों के उनके सभी मोती आयात मामले खोलें व पता करें कि कौन-कितना माल लाया है। इसके हिसाब से उनके खिलाफ मामले बनाएं। उनसे पिछले एक दशक के तमाम आयात पर पूरा जुर्माना और सीमा शुल्क वसूला जाए।
शहर के बाहर की लैब
शहर के बाहर की लैब का निर्धारण किया जाए। यदि कोई माल मुंबई में आयात हुआ है तो उसे देश के किसी और शहर की लैब में जांच के लिए भेजा जाए। इस तरह किसी आयातक का उन लैब में दबाव तंत्र पैदा करने की व्यवस्था खत्म हो जाएगी।
जांच खेप नंबर के आधार पर
जो भी आयातित सामान जिस लैब में भेजा जाए, उस माल पर से तमाम जानकारियां हटा ली जाएं। उन पर सिर्फ खेप नंबर हो। इसकी जानकारी अधिकारियों के एक पैनल को ही होनी चाहिए। खेप नंबर के आधार पर लैब से जांच होकर आए। उसका मिलान आयातक की घोषित जानकारी से हो। गलत निकलने पर कानूनी कार्रवाई हो।
लैब वीडियो रिकॉर्डिंग
लैब में मोतियों की जांच की पूरी वीडियो रिकॉर्डिंग होना चाहिए। लैबकर्मियों के लिए ऐसे में किसी मोती आयातक से सेटिंग कर पाना मुश्किल हो जाएगा।
मूल्य निर्धारण वीडियो रिकॉर्डिंग
बांद्रा स्थित जांच केंद्र में मूल्य निर्धारण प्रक्रिया की पूरी वीडियो रिकॉर्डिंग होनी चाहिए। मोतियों के आकार नापने और उनके मूल्य निर्धारण की वीडियो होगी तो किसी भी वैल्यूअर या अधिकारी के सामने रिश्वतखोरी का कोई रास्ता ही नहीं बचेगा।
उड़ानों की जांच
हांगकांग समेत उन देशों से आने वाली हर उड़ान की जांच गहनता से होनी चाहिए, जहां मोतियों का कोराबार मुख्यतः होता है। जब भी कोई जेम्स एंड ज्वेलरी शो या मेला होता है, उस देश से आने वाली आगामी एक माह तक की तमाम उड़ानों की कड़ी जांच होनी चाहिएं। इन देशों से आने वाले हर संदिग्ध व्यक्ति अथवा यात्री का हेंड बैगेज खोल कर देखने चाहिए ताकी पता चल सके कि तस्करी से मोती तो नहीं आ रहे हैं।
मूल्य निर्धारकों की तौनाती
कारोबार की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञों का दल बेहद ईमानदार होना चाहिए। ऐसे लोगों को बिल्कुल पैनल या दस्ते में न रखा जाए, जो यही कारोबार करते भी हैं। सरकार चाहे तो यह कर सकती है कि इस काम में माहिर लोगों को ऊंचे वेतन पर तैनात करे। जो लोग कारोबार में मुब्तिला हैं, वे अपने सहयोगी कारोबारियों का लाभ और हित देखेंगे ही। इससे बचाव का कोई रास्ता है तो यही कि या तो ईमानदार लोग लाएं, या फिर जानकारों की भर्ती विभाग में की जाए।
मूल्य निर्धारकों की पुख्ता सुरक्षा
ईमानदार मूल्य निर्धारकों को न केवल पूरी सुरक्षा मिले बल्कि उनके साथ गलत व्यवहार करने या धमकियां देने वाले कारोबारियों से कस्टम्स तथा पुलिस विभाग पूरी सख्ती से पेश आए। अदालतों में उनके खिलाफ पुख्ता मामला ले जाएं। जिस तरह से किसी सरकारी अधिकारी को उसके काम से रोकने या धमकाने की जो सजा होती है, वह दिलाने की कोशिश पूरी ईमानदारी से हो। ये मूल्य निर्धारक देश के खजाने में इजाफा करते हैं। उनकी सुरक्षा एक अहम पहलू है।
मूल्य निर्धारण निदेशालय और डीआरआई को शामिल करें
कस्टम्स के मूल्य निर्धारण निदेशालय और डीआरआई को भी इस प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जाए। इससे पूरी प्रक्रिया और भी पारदर्शी बनेगी। इससे सीमा शुल्क की जोरी करने वालों पर लगाम लगेगी।
बाजार में भाव निकालें
कस्टम्स अधिकारियों को मोतियों की आयातित खेप का एक हिस्सा लेकर बाजार में किसी को भेजना चाहिए। वह बाजार में माल बेचने वाला बन कर घूमे। उसकी गुणवत्ता और कीमत के बारे में कम से कम तीन या पांच जगहों से जानकारी ले। इसके बाद जो सही कीमत का आकलन हो, वही तय किया जाए। कस्टम्स के नियमों में मूल्य निर्धारण के लिए पैनल बनाने की व्यवस्था ही नहीं है। जो व्यवस्था है, वह बाजार से ही भाव निकालने की है। ऐसे में मूल्य निर्धारकों के पैनल बनाने की पूरी प्रक्रिया ही गलत और अवैध है। यह कस्टम्स अधिकारियों ने अपनी जान बचाने के लिए नियमों के बाहर अपने ही तौर पर व्यवस्था खड़ी कर ली है।
विदेशी कारोबारी पत्रिकाओं से मूल्य जानकारी
मूल्य निर्धारण के लिए कस्टम्स को मोती कारोबार की विदेशी पत्रिकाओँ में छपे मूल्य का सहारा लेना चाहिए। चीन, जापान, हांगकांग, सिंगापुर में कई ऐसी मोती कारोबार पर आधारित पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं, जिनमें ताजा विश्वस्तरीय भाव होते हैं। मूल्य निर्धारण में उनमें प्रकाशित भावों पर ध्यान दे सकते हैं।
कारोबारी संस्थाओं का दखल बंद हो
कारोबारियों की संस्थाओं जैसे जीजेईपीसी का दखल मूल्य निर्धारकों की तैनाती और कस्टम्स के अन्य दैनिक कार्यों में तुरंत प्रभाव से बंद किया जाए। यह तो वही बात है कि बिल्ली को दूध की रखवाली का काम सौंपा है।
बेनामी कंपनियों की जांच
तुरंत प्रभाव से ऐसी बेनामी कंपनियों के बारे में जांच की जाए जो कि मोतियों का आयात करती हैं। यह काम बड़े आराम से हर खेप के आयात पर उन कंपनियों के दफ्तरों पर खुद ही जांच करने के लिए अपने अधिकारियों के दस्ते भेजने से साबित हो जाएगी।
तमाम ऐसी कंपनियां हैं, जो कम गुणवत्ता और कीमत दिखा कर मोती लाती हैं, कुछ महीनों तक चलती हैं, उसके बाद बंद हो जाती हैं। इस तरह वे न केवल सीमा शुल्क की चोरी करती हैं बल्कि बिक्री कर, आयकर, एक्साईज इत्यादी की भी चोरी करती हैं। इन पर बंदिश से भी मोती तस्करी और कालाबाजारी पर प्रभावी तरीके से रोकथाम लग सकेगी।
ईडी को जांच में करें शामिल
किसी मोती आयात कंपनी की किसी खेप में गड़बड़ी मिलने पर तुरंत उसका मामला प्रर्वर्तन निदेशालय या ईडी को भेजना चाहिए। उस कंपनी विशेष द्वारा हवाला के जरिए अधिक रकम के मोतियों की खरीद की जाने की जांच होनी चाहिए। हवाला के सबूत मिलने पर सख्त कारवाई की जाए।
कारोबारी संस्थानों की मदद लेना बंद करें
मुंबई स्थित जेमोलॉजी इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया का संचालन मोती और जेवरात कारोबार से जुड़े लोग ही करते हैं। इसके लोगों में भी सहयोगी कारोबारियों को मदद करने की प्रवृत्ति हो सकती है। इसके बदले में किसी सरकारी विभाग के विशेषज्ञों की मदद ली जाए।
जानकारों की राय में मोती तस्करी के साथ ही मोतियों पर सीमा शुल्क की चोरी रोकने के कुछ उपाय किए जा सकते हैं।
आरईपी लाईसेंस बंद
आरईपी लाईसेंस की व्यवस्था मोती कारोबार पर तुरंत प्रभाव से खत्म हो। इसी का इस्तेमाल करके सबसे अधिक सीमा शुल्क की चोरी होती है। आरईपी लाईसेंस का इस्तेमाल जैसे ही मोती आयात पर बंद होगा, वैसे ही सीमा शुल्क चोरी का एक बड़ा जरिया खत्म हो जाएगा।
दूसरी कंपनी का आरईपी लाईसेंस बंद
दूसरी कंपनी का आरईपी लाईसेंस इस्तेमाल करना तुरंत प्रभाव से बंद किया जाए। जैसे ही यह काम होगा, सैंकड़ों फर्जी और बेनामी कंपनियां बंद हो जाएंगीं। बहुत सारी हीरा कारोबार से जुड़ी कंपनियों का तो काम ही यही है। वे कच्चा हीरा लाना दिखाती हैं, बाद में उन्हें पॉलिश करके वापस भेजना दिखाती हैं। असल में कच्चा हीरा ही आता है, कच्चा हीरा ही वापस जाता है। एक ही हीरे की खेप भारत में आती-जाती रहती है। उस पर आरईपी लाईसेंस का लाभ लेने का खेल निरंतर जारी रहता है। जब किसी आयातक के पास किसी अन्य कंपनी का आरईपी लाईसेंस इस्तेमाल करने की छूट नहीं होगी, वे मजबूरन सीमा शुल्क चुकाएंगे।
समान सीमा शुल्क
हर किस्म के मोतियों के आयात पर एक समान सीमा शुल्क कर दें। यदि पांच या 10 फीसदी के बदले में हर किस्म के मोतियों पर कुल पांच फीसदी ही सीमा शुल्क होगा तो सीमा शुल्क की चोरी में कमी आएगी। जानकारों का कहना है कि अलग-अलग श्रेणी होने के कारण ही सीमा शुल्क में चोरी की प्रवृत्ति भी अधिक पनपती है। समान सीमा शुल्क होने पर यह समस्या काफी हद तक कम हो सकती है।
जब्ती और नीलामी
मोतियों की कीमत और गुणवत्ता कम बताने वाले आयातकों का पूरा माल जब्त हो। जब्त माल की नीलामी की जाए। उससे जो रकम हासिल हो, उसमें से आयातक द्वारा बताई रकम और उशके ऊपर 10 फीसदी लाभ देकर उसके खाते में कस्टम्स द्वारा भर दें। बाकी रकम सरकारी खजाने में जमा की जाए। नीलामी की दर भी इस किस्म विशेष के मोती के वैश्विक बाजार में उस दिन की कीमत के आधार पर ही तय हो। एक न्यूनतम कीमत तय होनी चाहिए।
यदि किसी खास गुणवत्ता का मोती यदि विश्व बाजार में 1,500 डॉलर प्रति कैरेट का है, उसे आयातक ने महज 50 या 100 डॉलर का दिखा कर ही आयात किया है, तो उसे नीलामी में कम से कम 1,200 डॉलर के भाव पर उतारा जाए। इससे अधिक जो बोली लगा कर माल खरीदेगा, उसी को यह माल सौंपा जाए। इस तरह से दो-चार बार नीलामी हुई तो कोई भी मोती कारोबारी माल लाना बंद कर देगा।
10 साल के मामले खोलें
जिन लोगों या कंपनियों ने मोतियों का आयात गलतबयानी के जरिए किया है, पिछले 10 सालों के उनके सभी मोती आयात मामले खोलें व पता करें कि कौन-कितना माल लाया है। इसके हिसाब से उनके खिलाफ मामले बनाएं। उनसे पिछले एक दशक के तमाम आयात पर पूरा जुर्माना और सीमा शुल्क वसूला जाए।
शहर के बाहर की लैब
शहर के बाहर की लैब का निर्धारण किया जाए। यदि कोई माल मुंबई में आयात हुआ है तो उसे देश के किसी और शहर की लैब में जांच के लिए भेजा जाए। इस तरह किसी आयातक का उन लैब में दबाव तंत्र पैदा करने की व्यवस्था खत्म हो जाएगी।
जांच खेप नंबर के आधार पर
जो भी आयातित सामान जिस लैब में भेजा जाए, उस माल पर से तमाम जानकारियां हटा ली जाएं। उन पर सिर्फ खेप नंबर हो। इसकी जानकारी अधिकारियों के एक पैनल को ही होनी चाहिए। खेप नंबर के आधार पर लैब से जांच होकर आए। उसका मिलान आयातक की घोषित जानकारी से हो। गलत निकलने पर कानूनी कार्रवाई हो।
लैब वीडियो रिकॉर्डिंग
लैब में मोतियों की जांच की पूरी वीडियो रिकॉर्डिंग होना चाहिए। लैबकर्मियों के लिए ऐसे में किसी मोती आयातक से सेटिंग कर पाना मुश्किल हो जाएगा।
मूल्य निर्धारण वीडियो रिकॉर्डिंग
बांद्रा स्थित जांच केंद्र में मूल्य निर्धारण प्रक्रिया की पूरी वीडियो रिकॉर्डिंग होनी चाहिए। मोतियों के आकार नापने और उनके मूल्य निर्धारण की वीडियो होगी तो किसी भी वैल्यूअर या अधिकारी के सामने रिश्वतखोरी का कोई रास्ता ही नहीं बचेगा।
उड़ानों की जांच
हांगकांग समेत उन देशों से आने वाली हर उड़ान की जांच गहनता से होनी चाहिए, जहां मोतियों का कोराबार मुख्यतः होता है। जब भी कोई जेम्स एंड ज्वेलरी शो या मेला होता है, उस देश से आने वाली आगामी एक माह तक की तमाम उड़ानों की कड़ी जांच होनी चाहिएं। इन देशों से आने वाले हर संदिग्ध व्यक्ति अथवा यात्री का हेंड बैगेज खोल कर देखने चाहिए ताकी पता चल सके कि तस्करी से मोती तो नहीं आ रहे हैं।
मूल्य निर्धारकों की तौनाती
कारोबार की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञों का दल बेहद ईमानदार होना चाहिए। ऐसे लोगों को बिल्कुल पैनल या दस्ते में न रखा जाए, जो यही कारोबार करते भी हैं। सरकार चाहे तो यह कर सकती है कि इस काम में माहिर लोगों को ऊंचे वेतन पर तैनात करे। जो लोग कारोबार में मुब्तिला हैं, वे अपने सहयोगी कारोबारियों का लाभ और हित देखेंगे ही। इससे बचाव का कोई रास्ता है तो यही कि या तो ईमानदार लोग लाएं, या फिर जानकारों की भर्ती विभाग में की जाए।
मूल्य निर्धारकों की पुख्ता सुरक्षा
ईमानदार मूल्य निर्धारकों को न केवल पूरी सुरक्षा मिले बल्कि उनके साथ गलत व्यवहार करने या धमकियां देने वाले कारोबारियों से कस्टम्स तथा पुलिस विभाग पूरी सख्ती से पेश आए। अदालतों में उनके खिलाफ पुख्ता मामला ले जाएं। जिस तरह से किसी सरकारी अधिकारी को उसके काम से रोकने या धमकाने की जो सजा होती है, वह दिलाने की कोशिश पूरी ईमानदारी से हो। ये मूल्य निर्धारक देश के खजाने में इजाफा करते हैं। उनकी सुरक्षा एक अहम पहलू है।
मूल्य निर्धारण निदेशालय और डीआरआई को शामिल करें
कस्टम्स के मूल्य निर्धारण निदेशालय और डीआरआई को भी इस प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जाए। इससे पूरी प्रक्रिया और भी पारदर्शी बनेगी। इससे सीमा शुल्क की जोरी करने वालों पर लगाम लगेगी।
बाजार में भाव निकालें
कस्टम्स अधिकारियों को मोतियों की आयातित खेप का एक हिस्सा लेकर बाजार में किसी को भेजना चाहिए। वह बाजार में माल बेचने वाला बन कर घूमे। उसकी गुणवत्ता और कीमत के बारे में कम से कम तीन या पांच जगहों से जानकारी ले। इसके बाद जो सही कीमत का आकलन हो, वही तय किया जाए। कस्टम्स के नियमों में मूल्य निर्धारण के लिए पैनल बनाने की व्यवस्था ही नहीं है। जो व्यवस्था है, वह बाजार से ही भाव निकालने की है। ऐसे में मूल्य निर्धारकों के पैनल बनाने की पूरी प्रक्रिया ही गलत और अवैध है। यह कस्टम्स अधिकारियों ने अपनी जान बचाने के लिए नियमों के बाहर अपने ही तौर पर व्यवस्था खड़ी कर ली है।
विदेशी कारोबारी पत्रिकाओं से मूल्य जानकारी
मूल्य निर्धारण के लिए कस्टम्स को मोती कारोबार की विदेशी पत्रिकाओँ में छपे मूल्य का सहारा लेना चाहिए। चीन, जापान, हांगकांग, सिंगापुर में कई ऐसी मोती कारोबार पर आधारित पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं, जिनमें ताजा विश्वस्तरीय भाव होते हैं। मूल्य निर्धारण में उनमें प्रकाशित भावों पर ध्यान दे सकते हैं।
कारोबारी संस्थाओं का दखल बंद हो
कारोबारियों की संस्थाओं जैसे जीजेईपीसी का दखल मूल्य निर्धारकों की तैनाती और कस्टम्स के अन्य दैनिक कार्यों में तुरंत प्रभाव से बंद किया जाए। यह तो वही बात है कि बिल्ली को दूध की रखवाली का काम सौंपा है।
बेनामी कंपनियों की जांच
तुरंत प्रभाव से ऐसी बेनामी कंपनियों के बारे में जांच की जाए जो कि मोतियों का आयात करती हैं। यह काम बड़े आराम से हर खेप के आयात पर उन कंपनियों के दफ्तरों पर खुद ही जांच करने के लिए अपने अधिकारियों के दस्ते भेजने से साबित हो जाएगी।
तमाम ऐसी कंपनियां हैं, जो कम गुणवत्ता और कीमत दिखा कर मोती लाती हैं, कुछ महीनों तक चलती हैं, उसके बाद बंद हो जाती हैं। इस तरह वे न केवल सीमा शुल्क की चोरी करती हैं बल्कि बिक्री कर, आयकर, एक्साईज इत्यादी की भी चोरी करती हैं। इन पर बंदिश से भी मोती तस्करी और कालाबाजारी पर प्रभावी तरीके से रोकथाम लग सकेगी।
ईडी को जांच में करें शामिल
किसी मोती आयात कंपनी की किसी खेप में गड़बड़ी मिलने पर तुरंत उसका मामला प्रर्वर्तन निदेशालय या ईडी को भेजना चाहिए। उस कंपनी विशेष द्वारा हवाला के जरिए अधिक रकम के मोतियों की खरीद की जाने की जांच होनी चाहिए। हवाला के सबूत मिलने पर सख्त कारवाई की जाए।
कारोबारी संस्थानों की मदद लेना बंद करें
मुंबई स्थित जेमोलॉजी इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया का संचालन मोती और जेवरात कारोबार से जुड़े लोग ही करते हैं। इसके लोगों में भी सहयोगी कारोबारियों को मदद करने की प्रवृत्ति हो सकती है। इसके बदले में किसी सरकारी विभाग के विशेषज्ञों की मदद ली जाए।
विवेक अग्रवाल, मुंबई
(यह
समाचार हिंदी, मराठी, गुजराती के कई
प्रसिद्ध समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुका है।)
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