सट्टे का विश्व कप – 4 : हवाला और बैंकों के छुपे खातों का क्रिकेट सट्टे में इस्तेमाल

· विश्व कप क्रिकेट सट्टे में हवाला और बैंक के छुपे खातों का इस्तेमाल चरम पर 
· बुकियों और पंटरों के बीच सबसे विश्वसनीय है हिंदुस्तानी हवाला कारोबार
· देश के हर कोने में इस्तेमाल होता है हवाला सट्टे के लिए
· विदेशों से भी होता है हवाला क्रिकेट सट्टे के लिए

विवेक अग्रवाल
मुंबई, 15 फरवरी 2015
भारत समेत पूरी दुनिया में हिंदुस्तानी क्रिकेट सट्टाबाजार का बोलबाला है। विदेशी वेबसाईटों से भी अधिक विश्वनीय भारतीय सट्टाबाजारा को माना जाता है। यही कारण है कि विदेशों के अलावा भारत के तमाम अन्य राज्यों और शहरों तक रकम का हर दिन आवागमन करने के लिए बुकियों ने न केवल अपने हवाला नेटवर्क को चाकचौबंद कर लिया है बल्कि कुछ ने तो निजी बैंकों के साथ भी बेनामी खाते खोले हैं। इन बेनामी कंपनियों के खातों के जरिए हजारों करोड़ रुपए का आवागमन बिना किसी की जानकारी में आए मजे से होता रहेगा।

एक सूत्र के हवाले से यह जानकारी सामने आई है कि विश्व कप के दौरान ही हवाला के जरिए 50 से 60 हजार करोड़ रुपए के लेन-देन होने की आशंका है। इसका प्रयोग सबसे अधिक विदेशी पंटरों और बुकियों के बीच लेन-देन में होगा।

हवाला है तो सुरक्षा है
बुकियों को बरसों से जारी हवाला कारोबारियों पर काफी विश्वास है। एक बुकि का कहना है कि हवाला कारोबारी अपने ही स्तर पर हर एजंसी की सेटिंग करते हैं। उनकी व्यवस्था एकदम चुस्त है। उन्हें तो सिर्फ रकम ही हवाला ऑपरेटर के दफ्तर तक पहुंचानी होती है। उसके बाद सारा खतरा हवाला कारोबारी का हो जाता है।

वह बुकि बताता है कि कुछ हवाला कारोबारी तो पुराना संबंध होने के आधार पर या चौथाई अथवा आधा टका अधिक सेवा शुल्क देने पर रकम घर से उठा कर सामने वाले के शहर में उसके घर तक पहुंचाने की व्यवस्था भी कर देते हैं। ऐसे में रकम लेने के लिए खतरा और कम हो जाता है।

हवाला कारोबारियों को लेकर एक बुकि का मानना है कि वे उनके लिए परिवार की तरह होते हैं। एक तरह से उन्हें राजदार ही कहा जाए तो गलत नहीं होगा। वे बुकियों के बारे में जानते हैं लेकिन उनकी सूचना किसी भी हाल में बाहर नहीं निकलने देते हैं।

इस बुकि का मानना है कि किसी बैंक के छुपे खाते का इस्तेमाल करने में भी एक खतरा यह है कि कोई भेदिया चाहे तो एचएसबीसी की तरह ही उनकी जानकारियां भी बाहर दे सकता है या सार्वजनिक कर सकता है। दूसरी ओर हवाला कारोबारी अपने साथ काम करने वाले हर व्यक्ति की पूरी जानकारी रखते हैं। उनके ठिकाने से कोई सूचना कभी लीक नहीं हो पाती है। यही कारण है कि भारतीय हवाला कोराबार सदा से सबसे सुरक्षित व्यवस्था बनी हुई है। यहां तक कि नशा और हथियार तस्कर भी इसका इस्तेमाल करते हैं। अब तो भारतीय हवाला कारोबारियों का इस्तेमाल आतंकवादी भी कर गुजरते हैं।

बैंकों के छुपे खाते
बैंक के जरिए मोटी रकम का लेन-देन करने में यह सावधानी बरती जाती है कि खाते विदेशी बैंकों में ही खुलवाए जाएं। कई बैंक ऐसी सुविधा भी प्रदान करते हैं कि एक बैंक खाते के साथ में दूसरा बैंक खासा बस खाते के अंतिम नंबर में फर्क करके उपलब्ध करवाते हैं। इस दूसरे खाते में कितनी भी रकम का आदान-प्रदान किया जा सकता है और वह उनके बैंकिग सिस्टम में किसी भी एजंसी को नहीं दिखता है।

एक बुकि का कहना है कि इस तरह हजारों नहीं बल्कि लाखों डॉलर की रकम भी मजे से भारत से किसी भी देश भेजी जा सकती है या फिर किसी भी देश से भारत मंगाई जा सकती है। बैंकों को इस तरह के खातों से मोटा मुनाफा होता है। वे न केवल इतनी मोटी रकम के लेन-देन पर मोटा सेवा शुल्क वसूलते हैं बल्कि विदेशी मुद्रा के रुपए में परिवर्तित होने पर भी सेवा शुल्क लगता है। इस तरह बैंकों को दोहरी आमदनी होती है।

इस व्यवस्था पर बुकियों को खासा विश्वास हो चला है क्योंकि वे इसका सफल रूप से संचालन होते पिछले विश्व कप में तो देख ही चुके हैं, उन्होंने हर आपीएल में भी इसका अच्छा इस्तेमाल किया है। इसके जरिए वे जितनी आसानी से रकम का लेन-देन कर पाए हैं, उतना तो हवाला या आंगड़िया भी सुरक्षित साबित नहीं हुआ था।

आंगड़िया और कुरियर भी सहायक
आंगड़िया अथवा कुरियर के जरिए भी रकम भेजी या मंगाई जाएंगी। इसके लिए बस अपने शहर मे बुकि या पंटर को रकम आंगड़िया के दफ्तर में भेजनी होती है। वहां से आंगड़िया अपने दूसरे शहर के दफ्तर में फोन करके बता देता है कि कितनी रकम किसे देनी है, और उस शहर में बुकि या पंटर अपनी रकम हासिल कर लेता है।

आंगड़िया अथवा हवाला कारोबारी को पंटर या बुकि कुछ रकम बतौर सेवा शुल्क अदा करते हैं। आमतौर पर यह सेवा शुल्क एक या दो बार इस सेवा का लाभ उठाने वालों के लिए दो से चार फीसदी तक होता है लेकिन बुकियों के लिए सैंकड़ों करोड़ रुपए की सेवा थोक में देने के कारण यही सेवा शुल्क घट कर महज सौ रुपए पर 25 पैसे से 75 पैसे तक रह जाता है। इसमें अधिकतम सेवाशुल्क एक फीसदी ही होता है।

सूत्रों का कहना है कि कई बार तो किसी बुकि से कोई खास पंटर यह फरमाईश करता है कि उसे किसी खास तरह के नोट ही चाहिएं, तो ये आंगड़िया एक शहर से दूसरे शहर तक वह करंसी नोट भी पहुंचाने का जिम्मा लेते हैं। इसके लिए वे अतिरिक्त सेवा शुल्क भी नहीं लेते हैं। वे चाहते हैं कि रकम छोटी ना हो ताकी उनके लिए काम कर रहे लोगों को दूसरे शहर तक रकम पहुंचाने के बाद उन्हें घाटा न हो।
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