· वॉट्सएप और टेलीग्राम का होगा विश्व कप क्रिकेट सट्टे में
· बुकियों ने बनवाए अपने सट्टा एप
· सट्टा एप में भी है पैनिक बटन
· सट्टा एप बनाने वालों की हो गई चांदी
· न रहेगा बैकअप – न बचेगा मुकदमा से बुकि खुश
विवेक अग्रवाल
मुंबई, 16 फरवरी 2015
एक तरफ जहां बुकि परंपरागत सेलफोन और लैंडलाईन वाले
तरीकों से सट्टे का कारोबार करने जा रहे हैं वहीं ईमेल और वेबसाईटों का इस्तेमाल
भी किया जा रहा है। अब इससे भी आगे बढ़ते हुए विश्व कप 2015 के लिए वाट्सएप तथा
टेलीग्राम जैसे एप्स का इस्तेमाल भी प्रचुरता से किया जाएगा।
सूत्रों के मुताबिक ऐसे बहुतेरे बुकियों के बारे
में जानकारी मिली है, जिन्होंने बिल्कुल नए सेल फोन नंबर लिए हासिल किए हैं ताकी उन
पर वॉट्सएप और टेलीग्राम डाला जाए। यह नंबर इन खेलियों अथवा पंटरों तक पहुंचाया
है, जो उनके साथ हमेशा कारोबार करते हैं या सट्टा लगाते हैं। इस तरह से बुकियों ने
एक पुलिस या खुफिया एजंसियों के अधिकारियों या मुखबिरों को दूर रखने की दिशा में
एक और कदम बढ़ाया है।
न रहेगा बैकअप – न बचेगा
मुकदमा
बुकियों का कहना है कि चूंकि उनके फोन चालू नहीं
रहेंगे तो पुलिस या खुफिया एजंसियों के लोग उन्हें रिकॉर्ड करके सबूत नहीं बना
सकेंगे। जहां तक एप्स का रिकॉर्ड हासिल करने की बात है, भारतीय सुरक्षा एजंसियों
को विदेशी कंपनियों से ये हासील करने में पसीने छूट जाते हैं। ऐसे में पुलिस व
जांच अधिकारी अगर उनके खिलाफ कोई मुकदमा बनाते भी हैं तो वह काफी कमजोर बनता है।
बुकि ने कहा कि हर एप के साथ एक अच्छी बात यह है कि
उस पर दर्ज पूरी जानकारी मिटाने में चंद सेकंड का ही समय लगता है। एप को फोन से
जैसे ही मिटाया अथवा निकाला जाता है, उसकी तमाम सूचनाएं भी साथ में ही मिट जाती
हैं। यदि एप में उपलब्ध बैकअप की व्यवस्था को खारिज कर दें तो फोन में उसकी कोई भी
जानकारी या फाईल बची नहीं रह जाती है। इस तरह से जांच अधिकारियों को तुरंत कोई
जानकारी हासिल नहीं होती है।
हैकरों ने बनाए एप
यह भी पता चला है कुछ शातिर दिमाग वेबसाईट और
इंटरनेट इंजीनियरों ने इन बुकियों के लिए अलग से ही एप बना दिए हैं। यह एप किसी भी
पंटर या खेली को बुकि के कहने पर लिंक भेजी जाती है। वह लिंक से एप अपने सेल फोन
में डाऊनलोड कर लिया जाता है। इस तरह से हर पल के भाव भी एप पर ही खेली को मिलते
रहते हैं, और वह अपनी ओर सट्टा भी लगाता रहता है।
सूत्रों के मुताबिक इस एप की तमाम जानकारियां
विदेशों के कुछ छुपे हुए सर्वरों पर जमा होती हैं। इनसे किसी किस्म की जानकारी
हासिल करना असंभव होता है क्योंकि यह साईबर अंडरवर्ल्ड ने अपने लिए सुरक्षित
ठिकाने बना रखे हैं। इनकी जानकारी हैकरों और शातिर दिमाग साईबर इंजीनियरों को ही
होती है।
ये हैकर बुकियों को अपनी सेवाओँ के बदले में मोटी
रकम लेते हैं। पता चला है कि एक एप बनाने के लिए वे 5 से 25 लाख रुपए तक की रकम ले
लेते हैं। उनका मेंटेनेंस और डाटा रिकवरी के लिए भी लगभग इतनी ही रकम हासिल कर
लेते हैं।
पैनिक बटन वाला स्मार्टफोन
कई हैकर तो बड़े बुकियों को खास तरह के सेल फोन ही
तैयार करके देते हैं, जिन पर उनका बनाया एप पहले से ही लगा होता है। उसमें एक खास
पैनिक बटन भी ऊपर ही होता है, जो दबा देने भर से पूरा एप पल भर में पूरे आंकड़ों
समेत मिट जाता है। वह स्मार्ट फोन फिर से ठीक वैसी ही स्थिति में पहुंच जाता है,
जैसा कि वह कारखाने से बाहर निकलते वक्त था।
एक छोटा बुकि, जिसने इस तरह का एप वाला सेल फोन एक
बड़े बुकि के पास जयपुर में देखा था, बताता है कि इस तरहह के एप वाले फोन का बड़ा फायदा
यह है कि उसमें लगे पॉईजन सॉफ्टवेयर के कारण किसी भी पुलिस अधिकारी या साईबर
फोरेंसिक जानकार के लिए आंकड़े हासिल की स्थिति बन ही नहीं सकती है। फोन के आंकड़े
तो हासिल करके पुलिस उनके पंटरों तक जा पहुंचती है लेकिन इन एप के कारण ऐसा होना
संभव ही नहीं रह जाता है।
विदेशी वेबसाईटों का सहारा
कई बुकियों ने तो बेटफेयर.कॉम जैसी कई वेबसाईटों पर
भी अपने खाते बना दिए हैं। वे अपने कुछ ऐसे पंटरों और खेलियों को इन साईट्स पर
अपने खातों में रकम जमा करने के लिए कह देते हैं जो विदेशी क्रेडिट कार्ड रखते
हैं। इसके जरिए उनके पंटर भारतीय बुकि के पास आराम से सट्टा लगा सकते हैं, बदले
में बुकि को उसकी रकम सुरक्षित रूप से उसके विदेशी खातों में मिलती रहती है।
पता चला है कि कई बुकियों और सटोरिए ने अपनी
हार-जीत को बराबर करने के लिए विदेशी क्रेडिट कार्डों का इस्तेमाल करके रकम लगाने
की व्यवस्था इन वेबसाईटों पर की है।
भारतीय बुकियों को विदेशी सट्टा वेबसाईट्स पर जुआ
खेलने और रकम की हार-जीत की बराबरी करने का तरीका उल्हासनगर के एक शातिर दिमाग
छोटे बुकि ने सिखाया है। यह बुकि उसे गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारियों को झूठे
मुकदमों में फंसाने के लिए कुख्यात है। विदेशी वेबसाईट्स पर सट्टा खेलने और खिलाने
के लिए उसने लंदन में पूरा संजाल खड़ा कर रखा है। वह इस खेल में छात्रों को फंसाता
है। उन छात्रों के नाम पर सट्टा वेबसाईट्स पर खाते खोलने और उनके ही क्रेडिट कार्ड
का इस्तेमाल करने के एवज में हर महीने 500 से 2000 पाऊंड तक की रकम देता है। इस
आसान कमाई के चक्कर में भारतीय छात्र पड़ जाते हैं और इस बुकि के लिए काम करने वालों
को भी मोटी कमाई होती रहती है।
समाप्त
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