मौत की म्यांऊ-म्यांऊ - 8 - मध्यप्रदेश से आ रही है म्याऊं-म्याऊं?

विवेक अग्रवाल
मुंबई, 11 मई 2015

एमडी के तस्करों और नशा फरोशों से एक तरफ जहां पुलिस को यह पता नहीं चल रहा है कि आखिरकार यह खतरनाक नशा आखिरकार आ कहां से रहा, दूसरी तरफ हमारी खोजबीन में पता चला है कि यह जहरीला रसायन मध्यप्रदेश से आ रहा है।

कतिपय सूत्रों का कहना है कि मुंबई में जो भी नशा फरोश एमडी बेच रहे हैं, उन्हें यह पता नहीं है कि माल कहां से आ रहा है। इसका कारण यह है कि अब तक पकड़े गए नशा फरोश बिल्कुल छोटे स्तर के हैं। वे अधिकतम पांच किलो तक की खेप ही एक बार में उठाने में सक्षम हैं। वे जिन बड़े नशा तस्करों और गिरोहबाजों से माल खरीदते हैं, उनमें से भी अभी तक एक ही पुलिस की गिरफ्त में आई है। इसका नाम शशिकला उर्फ बेबी है। उससे भी पुलिस अभी तक कोई इस माल के मूल स्रोत की जानकारी हासिल करने में असफल ही रही है।

मध्यप्रदेश में म्याऊं-म्याऊं
कतिपय सूत्रों का कहना है कि मध्यप्रदेश के इंदौर, उज्जैन और आसपास के कई छोटे शहरों के कारखानों में एमडी का उत्पादन धड़ल्ले से हो रहा है। इस सूत्र का कहना है कि दवा, खाद और रसायन बनाने वाली कंपनियों में एमडी आसानी से बन जाता है। वहां पर हर वक्त कई किस्म के रसायन और पाऊडर पड़े होते हैं। ऐसे में उन पर किसी क शक भी नहीं होता है।

इस सूत्र का कहना है कि केटामाईन और सोडियम के साथ में कुछ और रसायनों का मिश्रण करने से एमडी बनता है। कुछ लोग इसमें मैथ नामक एक और बेहद तीखा रासायनिक नशा मिला रहे हैं।

सूत्रों का यह भी कहना है कि इन छोटे स्तर के कारखानों में एक दिन में बड़े आराम से एक टन तक एमडी बन जाता है। यह बात और है कि वे जितने माल की आपूर्ती का आदेश मिलता है, उतनी ही मात्रा में माल बनाते हैं। बना हुआ माल तुरंत कारखाने से हटा भी देते हैं।

कोकीन के बदले बेचा एमडी
नशा फरोशों ने पहले तो कुछ नशेड़ियों को एमडी यह कह कर भी बेच दिया था कि यह नई तरह की कोकीन है। अधिक नशा देती है। एक नशेड़ी ने बताया कि उसे इतनी सस्ती कीमत पर पहले कभी कोकीन नहीं मिली थी। जब उसने कोकीन समझ कर एमडी ली और उसे सूंघा तो बेहद तीखा और झटकेदार नशा हुआ। उसके बाद जब कुछ दिनों तक लगातार यह नकली कोकीन का सेवन उसने किया तो फर्क समझ में आने लगा। कोकीन के कारण जहां एक तरफ उसे कोई परेशानी नहीं हो रही थी, वहीं दूसरी तरफ एमडी के कारम उसकी बुद्धी कुंद सि हो गई, वह कुछ भी सोचने या विचार करने में सक्षम नहीं रहा।

मुफ्त में भी बांटा एमडी
एक मुखबिर के मुताबिक इन नशा फरोशों ने तो एमडी को चलन में लाने के लिए पहले तो बच्चों और युवाओं में मुफ्त में ही बांटा था। इस वक्त यह एमडी उन्हें महाराष्ट्र के छोटे शहरों और मध्यप्रदेश के कुछ औद्योगिक शहरों से काफी सस्ती कीमत पर मिल रहा था। वे एक किलो में से अगदर आधार किलो माल भी मुफ्त में बांट देते, तो भी उनकी कमाई पर कोई असर नहीं होता था। वे आधे किलो में भी मुफ्त बांटी एमडी की कीमत तो वसूल ही लेते थे, उससे भी अधिक रकम बतौर कमाई हासिल कर लेते थे।

यह मुखबिर बताता है कि आधी किलो एमडी ये नशाफरोश प्रति ग्राम 200 से 300 रुपए की दर पर बेचते थे। इस तरह एक लाख रुपए प्रति किलो की एमडी के लिए कम से कम सवा से डेढ़ लाख रुपए तो तब भी कमा ही लेते थे। जैसे-जैसे नशा फरोशों के पास एमडी के नशेड़ियों की संख्या बढ़ने लगी, वे माल 300 से 400 रुपए प्रति ग्राम की दर पर बेचने लगे।

खाने-पीने में एमडी की मिलावट
उक्त मुखबिर का कहना है कि यह खतरनाक नशा अब कुछ अन्य रूपों में भी अवतरित हो चुका है। स्कूलों के आसपास शीतल पेयों, कुल्फी, आईस्क्रीम, गुटके में मिला कर यह जहरीला नशा बेचा जा रहा है। चूंकि इन खाने-पीने की चीजों में एमडी की मात्रा आधे ग्राम से भी कम ही होती है, उसका नशा भी हल्के से ही चढ़ता है, इसी कारण ये खाने-पीने के सामान भी सस्ती कीमत पर ही बेचे जा रहे हैं।

इस मुखबिर ने बताया कि जो बच्चे या किशोर नाक से एमडी नहीं खींच सकते थे, उन्हें नशाफरोशों ने यह तरीका भी मुफ्त में एमडी देकर सिखाया था ताकी उन्हें गहरा और तीखा नशा हो सके। वे इसके लती हो जाएं ताकी बाद में उनसे ही माल खरीदेंगे।

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