बंद शोकेश से गायब लाखों के जेवर : पुलिस लापरवाही से जौहरी दिवालिया होने की कगार पर

विशेष संवाददाता
मुंबई, 26 मई 2015

मुंबई पुलिस के कामकाज को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं। जिस तरह से जांच की जा रही है औऱ जिस तरह आम नागरिकों के साथ पुलिस अधिकारी व्यवहार कर रहे हैं, उसके बारे में लोगों में रोष बढ़ता ही जा रहा है। ऐसा ही एक मामला आया है दहिसर के एक जौहरी सुरेश चंद्र पामेचा का, जिनकी दुकान में कुछ दिनों पहले आग लग गई थी। आग लगने के दौरान पता चला कि वहां से लाखों रुपए कीमत के सोने के जेवरात गायब है। यह साफ हो गया कि चोर ने ही आग लगाई है ताकी वह सबूत मिटा दे। अब मुसीबत यह बन चली है कि आग लगने और चोरी की जानकारी सामने आने के बावजूद पुलिस अधिकारी चोरी के आरोपी की खोज के बदले में जोहरी के साथ खो-खो खेल रहे हैं। इसके कारण यह जौहरी दिवालिया होने की कगार पर आ पहुंचा है।

10 मई 2015 को बोरीवली पूर्व में सावरपाड़ा के गणेश चौक स्थित राजमणि ज्वैलर्स में लगी इस रहस्यमय आग में दुकान के मालिक सुरेश पामेचा 1 किलो 112 ग्राम के सोने के जेवरात गायब हो गए। इनकी कुल कीमत 28 लाख 91 हजार 200 रुपए है।

श्री पामेचा का आरोप है कि इस मामले में दहिसर थाने के पुलिस अधिकारी बस उन्हें टाल ही रहे हैं। उनका कहना है कि जांच के दौरान यह साफ हो जाता कि आखिरकार वहां से लाखों रुपए के जेवरात किसने चुराए हैं। जैसे-जैसे वक्त बीतता जा रहा है, वैसे-वैसे उनकी चोरी गई संपत्ति मिलने के आसार भी धुंधले होते जा रहे हैं।

श्री पामेचा के मुताबिक उन्होंने यह दुकान मांगीलाल खेमराज कुमावत को सोने-चांदी का माल भर कर पूरे फर्नीचर के साथ चलाने के लिए दी थी। वे अप्रैल 2011 से ही यह दुकान चला रहे हैं। इस कारोबार में उनके बीच 40 व 60 फीसदी मुनाफे के बंटवारे की बात तय हुई थी। इस दुकान की तिजोरी और सभी अल्मारियों की चाबियां सिर्प मांगीलाल और श्री पामेचा के पास ही हैं। श्री पामेचा ने बताया कि उन्होंने इस दुकान का बीमा नहीं करवा रखी था।
लाल घेरे में वह शोकेस चिसका ताला बंद था लेकिन जेवरात गायब हैं
श्री पामेचा के मुताबिक 10 मई की शाम पौने तीन बजे उन्हें मांगीलाल का फोन आया और कहा कि दुकान में आग लगी है। जब वे 3 बजे दुकान पर पहुंचे तो पाया कि दुकान के लोहे का दरवाजा और जाली खुले हुए हैं। वहां आग धधक रही थी। जब उन्होंने पूछा कि दरवाजे और जाली किसने खोले हैं तो मांगीलाल ने बताया कि उसने ही ये काम किया है। लगभग साढ़े तीन बजे दमकलकर्मी पहुंचे और पांच बजे तक आग बुझा दी।

श्री पामेचा का दावा है कि जब वे दुकान के अंदर पहुंचे तो पाया कि किसी भी शोकेस में कोई भी जेवर नहीं था। दुकान के अंदर न तो दीवार कहीं से टूटी थी, न छत टूटी थी, न कोई खिड़की की सुरक्षा जालियां कटी या टुटी थीं। इशका मतलब यही था कि ये चोरी किसी ने दुकान के सामने वाले दरवाजे से अंदर जाकर ही की है।

वे यह भी दावा करते हैं कि जिन शोकेस में सोने के जेवरात रखे थे, उनके भी ताले व कांच जस के तस थे। ये ताले या कांच का न टूटना भी साफ जाहिर करता है कि यह काम किसी ऐसे व्यक्ति ने ही किया है, जिसके पास इनकी चाबियां होंगी। इसके अलावा जब वे दुकान के अंदर मौजूद सीसीटीवी कैमरे के डीवीआर लेने पहुंचे तो पाया कि वह भी गायब है। इससे उनका संदेह पुख्ता हो गया कि इस मामले में किसी न किसी अंदरूनी व्यक्ति का ही हाथ है।

श्री पामेचा का कहना है कि उन्होंने इसके बारे में और तफ्तीश की थी तो उन्हों पता चला था कि दुकान में तमाम जेवरात दोपहर 12 बजे तक तो मौजूद थे। फिर यह चमत्कार कैसे हो गया कि दिनदहाड़े इतनी व्यस्त सड़क और इलाके में मौजूद दुकान से चोरी हो जाती है और किसी को पता नहीं चलता है?

वे कहते हैं कि अगर पुलिस ने देर की तो उनके जेवर वापस पाने की आशाएं क्षीण होती जाएंगीं। चोर न केवल उनकी दुकान के तमाम जेवरात ठिकाने लगा देंगे बल्कि उनसे हासिल रकम भी इधर-उधर कर देंगे। अगर ऐसा होता है तो वे कहीं के न रहेंगे।


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सवाल जो उठते हैं:
 

  • आखिर पुलिस ने जांच इस दिशा में क्यों नहीं की कि चोरी में अंदरूनी हाथ है? 
  • अगर किसी अंदरूनी व्यक्ति ने चोरी नहीं की है तो क्या यह काम आग बुझाने के दौरान किसी व्यक्ति ने या दमकलकर्मियों ने किया था?
  • अगर वहां से सीसीटीवी कैमरों का डीवीआर गायब है तो वह दिनदहाड़े कौन ले गया?
  • पुलिस ने आसपास के जौहरियों व दुकानों के सीसीटीवी कैमरों के फुटेज हासिल करके इस मामले की जांच क्यों नहीं की?
  • नामजद रपट दर्ज करवाने के बावजूद नामित आरोपी को उतनी ढील पुलिस क्यों दे रही है?
  • क्या कारण है कि पुलिस अधिकारियों को वे शोकेस नहीं दिखे, जिन पर अभी तक ताला लगा है और अंदर से चमत्कारिक रूप से सोने के लाखों के गहने गायब हैं?
  • क्या चोर को सोने – चांदी के जेवरात की इतनी समझ थी कि उसने सिर्फ बड़े सोने के जेवर ही चोरी किए? उसने चांदी के छोटे जेवर क्यों नहीं चोरी किए?
हिंदी दैनिक वृत्त मित्र व मराठी दैनिक मुंबई मित्र में प्रथम प्रकाशन (अंक 27 मई 2015)

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