चकरघिन्नी - मुंबई अंडरवर्ल्ड और पुलिस के बीच मचे घमासान का मजेदार उपन्यास प्रिंट में भी उपलब्ध है, देखें amazon.com व anootha.com
एक आपराधिक घटना से चकरघिन्नी की कहानी बनी है। यह कहानी मुंबई अंडरवर्ल्ड से जुड़ी है। कुछ रोचक, कुछ डरावनी।
कुछ बरसों पहले भारत सरकार के आयकर विभाग द्वारा आयकर चोरी करने वालों के लिए एक क्षमादान योजना बनाई थी, जिसका नाम था - स्वैच्छिक आय घोषणा योजना अर्थात वीडीआईएस।
मुंबई के दाऊद गिरोह ने वीडीआईएस का लाभ लेने वाले तमाम कारोबारियों और उद्योगपतियों की सूची हासिल की, उन्हें एक-एक करके धमकाना शुरू किया कि तुमने सरकारी टैक्स भर दिया, भाई टैक्स नहीं भरा, चलो हमारा टैक्स भरो। दाऊद गिरोह ने काला धन घोषित करने वाले तमाम लोगों से 10 फीसदी रकम की वसूली की। यह बात और है कि इसकी शिकायत करने कोई सामने न आया।
यह खबर मैंने जनसत्ता में बतौर अपराध संवाददाता लिखी थी। इसी घटना को मनोरंजक मसाले में तब्दील करने का विचार उपजा। उसी से यह कथानक आकार लेता गया। फिल्म का कथानक व पटकथा का साहित्य रूप में आकार लेना अब नई बात नहीं रही क्योंकि विवेक अग्रवाल लिखित फिल्म 'अदृश्य' पहले प्रदर्शित हुई, उसके बाद बशक्ल उपन्यास आ गई। ऐसा ही चकरघिन्नी के साथ हो रहा है, फर्क इतना है कि यह पटकथा रूप में पहले लिख ली, अब उपन्यास में तब्दील हुई है। फिल्म अभी बनी नहीं है।
कॉमेडी फिल्में ऐसी ही होती हैं, कुछ मस्ती, कुछ बेसिरपैर की बातें। ऐसा ही कुछ चकरघिन्नी में भी है। यह साहित्य नहीं, महज मनोरंजन का मसाला है। इसमें जो साहित्यिक समाधान चाहते हैं, उन्हें निराशा होगी। इसमें जिन्हें तथ्य व लॉजिक चाहिएं, उन्हें भी कुछ खास नहीं लगेगा। इसके बावजूद यह पठनीय जनप्रिय लेखन है।
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